Sunday, December 22, 2024
spot_img

अब्दुर्रहीम खानखाना से छल 171

अकबर के विश्वासघाती नामुराद शहजादे मुराद ने संकट में सहायक बनने वाले अब्दुर्रहीम खानखाना से छल किया तथा उसकी हत्या करने का षड़यंत्र रचा!

खानखाना अब्दुर्रहीम ने शहजादे मुराद के अनुरोध पर अपने पांच आदमियों के साथ अहमदनगर के किले में प्रवेश किया तथा चांद बीबी से संधि करके उसे इस बात पर सहमत कर लिया कि वह बरार का क्षेत्र मुगलों को सौंप दे तथा मुगलों के साथ मित्रवत् व्यवहार करे।

यद्यपि बादशाह अकबर और शहजादा मुराद दोनों चाहते थे कि केवल बरार नहीं अपितु सम्पूर्ण अहमदनगर राज्य मुगल सल्तनत में सम्मिलित किया जाए किंतु चांद बीबी इसके लिए सहमत नहीं थी और खानखाना किसी भी हालत में चांद बीबी को क्षति नहीं पहुंचाना चाहता था। इसलिए शहजादा मुराद दुविधा में फंस गया।

शहजादे को फतहपुर सीकरी छोड़कर आए हुए तीन साल बीत चुके थे और वह अब तक अपने पिता अकबर को अपनी विजय का एक भी समाचार नहीं भेज पाया था। इससे मुराद की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।

जब खानखाना ने अहमदनगर की सुलताना चाँद बीबी की ओर से प्राप्त प्रस्ताव मुराद के समक्ष रखा कि यदि मुराद अहमदनगर से चला जाये तो चाँद उसे बरार का समस्त क्षेत्र दे सकती है तो मुराद ने इसी पर संतोष करना उचित समझा और उसने संधि पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये।

मुराद ने खानखाना को आदेश दिए कि अब अहमदनगर में खानखाना का काम पूरा हो गया है। इसलिए खानखाना जालना चला जाए। मुराद का यह आदेश सुनकर खानखाना का मुंह उतर गया। वह समझ किया कि मुराद चांद बीबी के साथ धोखा करेगा। फिर भी उसके पास आदेश मानने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं था। 

मुगलों से संधि हो जाने पर चांद सुलताना ने खानखाना अब्दुर्रहीम का बड़ा आभार व्यक्त किया। जब खानखाना जालना के लिये रवाना होने लगा तो चाँद बीबी ने खानखाना के सम्मान में अहमदनगर के किले में बड़ा दरबार आयोजित किया। इस दरबार में खानखाना पूरे ठाठ-बाट के साथ उपस्थित हुआ।

Teesra-Mughal-Jalaluddin-Muhammad-Akbar
To Purchase This Book Please Click On Image

उन दिनों खानखाना का ठाठ-बाट किसी भी मुगल शहजादे से बढ़कर हुआ करता था। यहाँ तक कि कई बार अकबर का दरबार भी खानखाना के दरबार के सामने फीका दिखाई देने लगता था। स्वयं अकबर को इस बात से कोई कठिनाई नहीं थी कि मरहूम बैराम खाँ का बेटा अब्दुर्रहीम इस ठाठ-बाट के साथ रहता है।

रहीम के इस ठाठ-बाट के कई कारण थे। एक तो रहीम का स्वयं का व्यक्तित्व इतना मधुर था कि कोई भी व्यक्ति उससे नाराज हो ही नहीं सकता था। उससे सलाह प्राप्त करने से हर किसी को लाभ होता था, इसलिए लगभग समस्त हिन्दू एवं मुसलमान अमीर एवं उमराव, शहजादे एवं राजे-महाराजे, कवि एवं साधु-संत, फकीर एवं दरवेश, रहीम के दरबार में हाजरी देते थे।

रहीम के दरबार की भव्यता का दूसरा कारण यह था कि अकबर के मन में बैराम खाँ की हत्या के कारण ग्लानि का जो स्थाई भाव बना रहता था, वह रहीम की उन्नति को देखकर कुछ कम होता था।

तीसरा कारण यह था कि स्वयं सलीमा बेगम जो किसी समय बैराम खाँ की बीवी थी और अब अकबर की बेगम थी, वह अब्दुर्रहीम पर विशेष महरबान रहती थी। रहीम की माँ खानजादा बेगम भी अकबर के हरम में रहती थी।

स्वयं अकबर भी अब्दुर्रहीम को अपने पुत्र की तरह प्रेम देता था और भरे दरबार में वह रहीम को अपना बेटा कह चुका था। अकबर ने यह विश्वास केवल दो ही व्यक्तियों पर व्यक्त किया था एक तो कुंअर मानसिंह कच्छवाहे पर और दूसरे खानखाना अब्दुर्रहीम पर।

जब खानखाना अब्दुर्रहीम चांद बीबी के निमंत्रण पर अहमदनगर के दरबार में उपस्थित हुआ तो मुराद की छाती पर सांप लोट गए। उसे यह सहन नहीं था कि मालिक बैठा रहे और उसका नौकर दावत खाता फिरे! मुराद स्वयं को खानखाना का मालिक समझता था किंतु उसे पता नहीं था कि लोगों से सम्मान प्राप्त करने के लिए मनुष्य में स्वयं में क्या गुण होने चाहिए!

अहमदनगर के अमीरों ने खानखाना को महंगे नजराने पेश किये और उसके प्रति बड़ा आभार व्यक्त किया। उन्हें विश्वास नहीं था कि यह मामला इतनी अच्छी तरह से सुलझ जाएगा। बहुत से अमीर तो खानखाना की अंगुली पकड़कर मुगल सल्तनत में बड़ी जागीरें प्राप्त करने का सपना देख रहे थे।

वस्तुतः मुराद ने खानखाना को दिखाने के लिए यह संधि स्वीकार की थी और अकबर को यह सूचना भी भेज दी थी कि चांद बीबी से बरार का क्षेत्र प्राप्त कर लिया गया है किंतु अंदरखाने मुराद इस संधि से बिल्कुल भी सहमत नहीं था। वह अहमदनगर का सम्पूर्ण राज्य जीत कर अपने पिता की झोली में डालना चाहता था।

 खानखाना को अहमदनगर से गये हुए अभी कुछ ही दिन बीते होंगे कि मुराद ने अहमदनगर राज्य से की गई संधि तोड़ दी और बराड़ से आगे बढ़कर पाटड़ी में भी अपना अमल कर लिया।

इस पर दक्षिण के अन्य शिया शासकों को भी अपना भविष्य अंधकारमय दिखायी देने लगा। उन्हें लगा कि इस विपदा से अकेले रहकर मुकाबला नहीं किया जा सकता। इसके लिये उन्हें एकजुट होकर प्रयास करना पड़ेगा।

चाँद सुलताना ने अपने विश्वस्त सेनापति सुहेल खाँ को मुगलों का रास्ता रोकने के लिये लिखा। आदिलशाह और कुतुबशाह ने भी अपनी-अपनी सेनाएं भेज दीं। उस वक्त मुराद शाहपुर में और खानखाना जालना में था।

जब खानखाना को ये सारे समाचार मिले तो वह शहजादे के पास गया और वचन भंग करने के लिये उसे भला-बुरा कहा। शहजादा उस समय तो खानखाना से कुछ नहीं बोला किंतु उसने मन ही मन खानखाना से पीछा छुड़ाने का निश्चय कर लिया।

मुराद स्वयं तो शाहपुर में ही बैठा रहा और उसने अपने आदमियों के साथ शहबाज खाँ कंबो, खानदेश के जागीरदार रजाअली खाँ रूमी तथा खानखाना अब्दुर्रहीम को चांद बीबी के सेनापति सुहेल खाँ पर चढ़ाई करने के लिये भेजा।

मुराद के आदमियों ने मुराद के कहे अनुसार अब्दुर्रहीम खानखाना से छल करके युद्ध की कपटपूर्ण व्यूह रचना की जिसका भेद बहुत कम आदमियों को मालूम था।

पहर भर दिन चढ़ने के बाद युद्ध शुरू हुआ। मुराद की योजनानुसार खानखाना की सेना को इस प्रकार नियोजित किया गया कि वह शत्रु सेना के तोपखाने की सीधी चपेट में आ जाये। खानखाना के गुप्तचरों को इस बात का पता नहीं चल सका किंतु खानदेश के शासक रजाअली खाँ रूमी को अब्दुर्रहीम खानखाना से छल किए जाने की बात की जानकारी हो गई।

उसने खानखाना की रक्षा करने का निश्चय किया तथा अपने विश्वस्त आदमियों से कहा- ‘दोस्तो! मरने का दिन आ गया।’

Related Articles

1 COMMENT

  1. Hello there! Do you know if they make any plugins to
    assist with SEO? I’m trying to get my blog to rank
    for some targeted keywords but I’m not seeing very good results.
    If you know of any please share. Cheers! You can read
    similar blog here: Eco wool

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source