कांग्रेस की घटती हैसियत का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अब उसे आप जैसी पिद्दी पार्टियाँ भी मुँह लगाने से बचती हैं!
पिछले एक दशक में भारत की राजनीति पूरी तरह करवट ले चुकी है। इस कारण कांग्रेस अब भारत के राजनीतिक परिदृश्य में छुटभैया राजनीतिक दलों की छोटी बहिन बनकर जिएगी। कांग्रेस के लिए अब कभी भी जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी. वी. नरसिंहाराव और मनमोहनसिंह जैसे दौर लौट कर नहीं आएंगे।
कांग्रेस गठबंधन की सरकारों में पहले भी रही है किंतु तब वह क्षेत्रीय दलों की बड़ी बहिन हुआ करती थी। अब कम्युनिस्टों, अवसरवादी पार्टियों एवं क्षेत्रीय दलों की छोटी बहिन बन कर जी रही है। इससे कांग्रेस की घटती हैसियत का पता चलता है।
पिछले लोकसभा चुनावों तथा हाल ही में हुए जम्मू कश्मीर एवं हरियाणा विधान सभा के चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब कांग्रेस का भविष्य छोटी बहिन के रूप में ही बचा है। छोटी बहिन होना कोई बुरी बात नहीं है किंतु लम्बे समय तक जो पार्टी बड़ी बहिन बनकर रही अब उसी को छोटी बहिनों की छोटी बहिन बनकर रहना पड़े तो निश्चित रूप से अच्छी बात तो कतई नहीं। कांग्रेस के साथ वही हुआ है।
जम्मू कश्मीर में कांग्रेस का फारुख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला की पार्टी से गठबंधन था। ये वही अब्दुल्ला लोग हैं जिनके पूर्वज शेख अब्दुल्ला कभी जवाहर लाल नेहरू के मित्र हुआ करते थे किंतु जवाहर लाल नेहरू ने शेख से तंग आकर उसे जेल में पटक दिया था।
उन्हीं अब्दुल्लाओं की छत्रछाया में कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर में विधान सभा का चुनाव लड़ा। अब्दुल्लाओं की पार्टी ने 42 सीटें जीतकर पहला स्थान प्राप्त किया, बीजेपी 29 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही, स्वतंत्र उम्मीदवार 7 सीटें जीतकर तीसरे स्थान पर रहे। जबकि सबसे छोटी बहिन की तरह कांग्रेस 6 सीटों के साथ चौथे नम्बर पर आकर बैठी।
हालांकि राहुल गांधी की तरह महबूबा मुफ्ती भी मुुंह खोलते ही अपनी आंख, नाक, कान से धुंआ निकालती हैं, फिर भी महूबबा की बात जाने दो, वह फिर कभी।
हरियाणा में बीजेपी ने 48 और कांग्रेस ने 37 सीटें जीतीं। हरियाणा में कांग्रेस को आप पार्टी की छोटी बहिन बनकर चुनाव लड़ना था किंतु आप पार्टी ने कांग्रेस को मुंह नहीं लगाया।
कुछ समय पहले हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली में आप पार्टी की छोटी बहिन बनकर चुनाव लड़ा था किंतु न तो बड़ी बहिन की भूमिका में 4 सीटों पर लड़ने वाली आप पार्टी और न छोटी बहिन की भूमिका में 3 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस एक भी सीट जीत सकी। इसी कारण आप पार्टी ने हरियाणा विधान सभा के चुनावों में कांग्रेस को मुंह नहीं लगाया।
वर्ष 2022 में हुए पंजाब विधान सभा के चुनावों में भी आप पार्टी ने कांग्रेस को मुंह नहीं लगाया। इन दोनों बहिनों ने आमने-सामने चुनाव लड़ा। आप पार्टी ने 117 में से 92 तथा कांग्रेस ने केवल 18 सीटों पर जीत हासिल की। इस प्रकार कांग्रेस ने हर जगह या तो छोटी बहिन बनकर चुनाव लड़ा, या फिर बड़ी बहिन बनने के प्रयास में हाथ-पांव तुड़वा कर औंधे मुंह गिर पड़ी।
2022 के हिमाचल प्रदेश विधान सभा चुनाव और 2023 के कर्नाटक विधान सभा चुनाव ही ऐसे रहे हैं जिनमें कांग्रेस ने अपने दमखम पर चुनाव लड़े और जीत हासिल की। इन दो चुनावों के अतिरिक्त कांग्रेस को कोई जीत हासिल नहीं हुई।
2024 का लोकसभा चुनाव तो कांग्रेस ने 24 दलों के साथ मिलकर लड़ा। हालांकि यहां उसने बड़ी बहिन बनने की चेष्टा की तथा 328 सीटों पर चुनाव लड़ी किंतु 99 सीटों पर जीत हासिल करके मुंह की खाकर बैठ गई।
इन 99 सीटों के बल पर कांग्रेस ने देश भर में ऐसा प्रदर्शन किया मानो वह लोकसभा में बहुमत पाकर सरकार बनाने में सफल हो गई है तथा बीजेपी तथा उसकी सहयोगी पार्टियां 293 सीटों पर सिमटकर अपना सब कुछ गंवा बैठी है।
कांग्रेस के नेताओं का इससे अधिक फूहड़ प्रदर्शन शायद ही कभी देखा गया हो। कांग्रेस की घटती हैसियत का इससे अधिक बड़ा प्रमाण क्या होगा!
दिन प्रति दिन कांग्रेस के पैरों के नीचे से जमीन खिसकती जा रही है और राहुल गांधी के हाथों में से राजनीतिक ताकत मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसलती जा रही है किंतु राहुल गांधी के हौंसलों की दाद देनी पड़ेगी। जब भी बोलते हैं, देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए, देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बीजेपी के लिए स्तरहीन शब्दों का ही प्रयोग करते हैं।
यह देखकर हैरानी होती है कि राहुल गांधी अपने वास्तविक प्रतिद्वंद्वियों से लड़ने की बजाय आरएसएस, अम्बानी और अडानी पर हमले करते रहते हैं। पता नहीं राहुल गांधी ने ये तीन प्रतिद्वंद्वी जबर्दस्ती क्यों खड़े कर लिए हैं। शायद राहुल गांधी ने आरएसएस, अम्बानी और अडानी हिन्दू शक्ति के प्रतीक मान लिए हैं जिन पर आक्रमण करे बिना राहुल गांधी की कोई जनसभा पूरी नहीं होती।
जो भी हो, आने वाले समय में हम देखेंगे कि न तो गांधी परिवार हिन्दू विरोधी राजनीति से दूर होगा और न कांग्रेस गांधी परिवार से अपना पीछा छुड़ा पाएगी। छोटी बहिन दिन पर दिन और छोटी होती चली जाएगी। कांग्रेस की घटती हैसियत उसे कितनी छोटी पार्टी बना देगी, इसका अनुमान भी कांग्रेस के नेताओं को नहीं है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता