Saturday, December 21, 2024
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मुराद की पगड़ी (168)

शहंशाह अकबर के बेटे मुराद ने अपनी पगड़ी अब्दुर्रहीम के कदमों में रख दी! नामुराद मुराद की पगड़ी अपने पैरों में पड़ी देखकर खानखाना अब्दुर्रहीम का हृदय पसीज गया।

अकबर ने अपने पुत्र मुराद, खानखाना अब्दुर्रहीम तथा शहबाज खाँ कम्बो को अहमदनगर पर आक्रमण करने भेजा था किंतु मुराद ने अपने सेनापतियों से इतनी बदतमीजी की कि वे मन ही मन शहजादे के विरोधी हो गए और उसे नीचा दिखाने का अवसर खोजने लगे।

इस कारण अहमदनगर की सेना पर मुराद के दो हमले विफल हो गए। क्योंकि मुराद अपने सेनापतियों को जो भी आदेश देता था, उसके सेनापति उसका ठीक उलटा करते थे। 

इस पर शहजादे मुराद के विश्वस्त मंत्रियों ने मुराद को समझाया कि खानखाना अब्दुर्रहीम इस लड़ाई को इस तरह चलाना चाहता है कि जीत का सेहरा शहजादे के सिर पर न बंध कर खानखाना के सिर पर बंधे। मुराद तो स्वयं भी इस युद्ध को इस प्रकार चलाना चाहता था कि जीत का सेहरा केवल मुराद के सिर पर बंधे।

इसलिए मुराद ने अपने मंत्रियों की बातों का विश्वास कर लिया तथा एक ऐसी योजना बनाई जिससे खानखाना को इस युद्ध से दूर रखा जा सके। उसने अहमदनगर के बाहर एक मुगल थाना कायम किया और खानखाना को उस पर बैठा दिया ताकि खानखाना अपनी जगह से हिल भी न सके।

उधर मुराद और उसकी सेना के अत्याचार देखकर चाँद बीबी ने बीजापुर तथा गोलकुण्डा के शासकों से सहायता मांगी। बीजापुर और गोलकुण्डा के बादशाह भी जानते थे कि यदि मुगलों ने अहमदनगर फतह कर लिया तो वे सेनाएं वहीं से आगरा नहीं लौटेंगी अपितु वे बीजापुर और गोलकुण्डा पर भी आक्रमण करेंगी।

इसलिए बेहतर होगा कि तीनों राज्य मिलकर मुगलों से मोर्चा लें। पहले भी दक्षिण के पांचों शिया राज्य विजयनगर के विरुद्ध मिलकर लड़ते रहे थे। इसलिए बीजापुर और गोलकुण्डा अपनी-अपनी सेनाएं लेकर आ गए।

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अब अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा ने मिलकर मुगल सेना के विरुद्ध मोर्चा बांधा। बीजापुर का बादशाह इस संयुक्त सेना का सेनापति नियुक्त हुआ। उसके नेतृत्व में साठ हजार घुड़सवारों और त्वरित गति से चलायमान तोपखाने की सेना मुगलों से लड़ने के लिये आयी।

मुराद ने इस सेना के आने से पहले ही अहमदनगर को लेने का विचार किया और खानखाना को बताये बिना अपने डेरे से लेकर किले की दीवार तक पाँच सुरंगें बिछा दीं। मुराद ने जुम्मे की नमाज पढ़ने के बाद इन सुरंगों में आग लगाने का निश्चय किया।

चाँद बीबी को इन सुरंगों का पता चल गया। उसने दो सुरंगों की बारूद तो शुक्रवार दोपहर से पहले ही निकलवा ली। जब वह तीसरी सुरंग से बारूद निकलवा रही थी तब मुराद ने सुरंगों को आग दिखा दी। इससे किले की पचास गज की दीवार उड़ गयी।

किले के भीतर सुरंग खोद रहे लोगों में से कुछ तो मौके पर ही मारे गये और बाकी के भाग खड़े हुए। सुलताना चाँद बीबी फौरन महल से निकली और तलवार लेकर वहीं आ खड़ी हुई। उसे देखने के लिये दोनों ओर के सिपाहियों की भीड़ जुट गयी।

उधर शहजादा और उसके अमीर शेष सुरंगों के फटने की प्रतीक्षा करते रहे और इधर चाँद बीबी ने तोपों, धनुरधारियों और बन्दूकधारी सैनिकों द्वारा किले का रास्ता अवरुद्ध कर दिया। खानखाना अब्दुर्रहीम अपने थाने पर चुपचाप बैठा हुआ तमाशा देखता रहा।

जब मुराद की फौज धावे के लिये आयी तो चाँद बीबी ने उस पर ऐसे बान और गोले मारे कि मुराद की सेना घबरा कर लौट गयी। चाँद बीबी पूरी रात किले के परकोटे पर खड़ी रही और उसने अपने सामने वह दीवार फिर से बनवा ली।

मुराद ने खानखाना को पूरी तरह से इस युद्ध से अलग रखा था। इसलिये वह पूरी तरह निष्क्रिय बना रहा। इस दौरान वह तभी क्रियाशील हुआ जब उससे कुछ करने के लिये कहा गया। मुराद का हमला विफल हो गया और वह बुरी तरह पिट कर अपने खेमे में लौटा।

अहमदनगर के किले पर अधिकार करने में असफल रहने के बाद मुराद समझ गया कि खानखाना की सहायता प्राप्त किये बिना अहमदनगर का किला नहीं जीता जा सकता। उसके मन में बड़ी इच्छा थी कि अपने पिता अकबर के बाद वही बादशाह बने। वह जानता था कि यदि वह दक्खिन के मोर्चे से असफल होकर लौटेगा तो उसे बादशाहत मिलनी तो दूर, राजधानी आगरा में प्रवेश भी नहीं मिलेगा।

अतः मुराद ने मुगलिया राजनीति की चौसर का सबसे आजमाया हुआ दांव खेलने की तैयारी की। उसने खानखाना को अपने डेरे में बुलाया। जब खानखाना अपने आदमियों के साथ शहजादे की सेवा में हाजिर हुआ तो मुराद ने बड़ी लल्लो-चप्पो के साथ खानखाना का स्वागत किया।

उसने कहा कि क्या खानखाना जानते हैं कि शहंशाह ने इस मोर्चे पर आपकी भी उतनी ही जिम्मेदारी तय की है, जितनी कि मेरी?

इस पर रहीम ने जवाब दिया कि मैं अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से पहचानता हूँ। आपने मुझे जो भी आदेश दिये हैं, मैं उन्हें पूरा कर रहा हूँ। इस पर शहजादे ने कहा कि आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि आप मोर्चे पर मौजूद हों और मुगल सेना को फतह हासिल न हो?

खानखाना ने अत्यंत उदासीन भाव से उत्तर दिया कि शहजादे स्वयं बड़ी से बड़ी फतह हासिल करने में सक्षम हैं। मुराद भी पूरा घाघ था, वह समझ गया कि खानखाना आसानी से उसे अपने पुट्ठे पर हाथ नहीं धरने देगा।

इसलिए मुराद ने बहुत रिरिया कर कहा कि सच तो यह है खानखाना कि आपके या आपके पिता मरहूम खानखाना बैराम खाँ के बिना मुगलिया सल्तनत आज तक कोई भी बड़ी लड़ाई नहीं जीत सकी। हम जानते हैं कि आप हमसे नाराज हैं।

खानखाना ने कहा कि मेरे दुश्मनों ने आपसे यह बात कही होगी, मैं शहंशाह का गुलाम हूँ। मुगलों को फतह हासिल हो, इससे अच्छी और क्या बात होगी?

शहजादे ने कहा कि यह जीत आपके बिना नहीं हो सकती। आप ही बताईये कि क्या किया जाये? खानखाना ने कहा कि मेरे अकेले के किये कुछ नहीं होगा। आप अपने विश्वस्त आदमियों से सलाह करें। जैसी सबकी राय बने, वैसा ही करें।

खानखाना की उदासीनता से मुराद समझ गया कि खानखाना सहयोग करने के मूड में नहीं है किंतु मुराद भी पूरा कांईयां था। उसने ठान ली थी कि वह खानखाना के माध्यम से ही अहमदनगर हासिल करेगा।

मुराद ने अपने डेरे से सब अमीरों को बाहर जाने का संकेत किया और खानखाना को वहीं ठहरने के लिये कहा। जब डेरा खाली हो गया तो मुराद ने अपनी पगड़ी उतार कर खानखाना के पैरों में रख दी और गिड़गिड़ाकर बोला, मेरी लाज आपके हाथ में है खानखाना।

समय का पहिया पूरी तरह घूम कर फिर से उसी बिंदु पर आ गया था। एक दिन अकबर की पगड़ी बैराम खाँ के कदमों में पड़ी रहती थी और आज अकबर के बेटे मुराद की पगड़ी बैराम खाँ के बेटे के कदमों में पड़ी थी।

 खानखाना अब्दुर्रहीम शहजादे मुराद के इस अभिनय से पसीज गया। उसने मुराद की पगड़ी उठाकर फिर से मुराद के सिर पर रख दी और उसे वचन दिया कि वह पूरे मनोयोग से यत्न करेगा। उस काल की मुगलिया राजनीति में नामुराद मुराद की पगड़ी का एक सेनापति के कदमों में होना कोई बड़ी बात नहीं थी। मुगल शहजादे सत्ता पाने के लिए कुछ भी कर सकते थे।

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