अकबर सुन्नी मुसलमान था किंतु अकबर द्वारा सूर्य-पूजन करने का उल्लेख अनेक समकालीन ग्रंथों में मिलता है। अकबर द्वारा सूर्य-पूजन आरम्भ किए जाने के पीछे एक रोचक इतिहास छिपा हुआ है।
पुरुषोत्तम एवं देवी आदि हिंदू उपदेशकों के सानिध्य से अकबर की रुचि जीव-हिंसा को रोकने में बढ़ती जा रही थी तथा उसने साल में किसी न किसी दिन एक जीव को मारने, उसका मांस खाने तथा उसके प्रति हिंसात्मक कार्य करने पर रोक लगाई थी। संभवतः रामायण एवं महाभारत जैसे ग्रंथों को पढ़ने के बाद अकबर द्वारा सूर्य-पूजन आरम्भ किया गया तथा हिन्दू धर्म की अन्य बातों की तरफ भी उसकी रुचि जागृत हुई।
मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि जब हिजरी 991 आरम्भ हुआ तब अकबर ने आदेश जारी किया कि उसकी सल्तनत में कोई भी व्यक्ति रविवार के दिन मांस न खाए। मुल्ला लिखता है कि अकबर ने हिंदुओं को खुश करने के लिए आदेश जारी किया कि फारवरदीन महीने के अंतिम 18 दिन तथा पूरे आबन महीने में एक भी जीव की हत्या नहीं की जाए। वस्तुतः इन्हीं दिनों में चैत्र शुक्ला प्रतिपदा का आगमन होता है जिसे हिन्दुओं में नववर्ष का आरम्भ माना जाता है तथा इन्हीं दिनों में चैत्रीय नवरात्रि आते हैं।
मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि उपवास के इन दिनों में अकबर स्वयं भी मांस से दूर रहा। धीरे-धीरे अकबर ने मांस न खाने के दिनों में इतनी वृद्धि कर दी कि साल में केवल आधे दिनों में ही मांस खाया जा सकता था। अकबर चाहता था कि उसकी प्रजा में मांस को लेकर यह विचार उत्पन्न हो जाए कि इसे खाना आवश्यक नहीं है। इसे न खाना ही ठीक है। मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि इसी वर्ष अकबर ने एक आदेश यह भी दिया कि दिन में चार बार अर्थात् प्रातःकाल, मध्याह्नकाल, सायंकाल एवं मध्यरात्रि में सूर्यपूजा की जाए। शहंशाह ने सूर्य के एक हजार नाम एकत्रित किए जिन्हें वह रोज दोपहर में सूर्य की ओर मुंह करके पढ़ा करता था। सामान्यतः उस समय अकबर अपने दोनों कानों को पकड़े रहता, चारों ओर घूमता जाता और कान के निचले हिस्से को मुट्ठी से छूता था।
मुल्ला बदायूंनी ने अकबर पर आरोप लगाया है कि वह हिंदुओं की तरह ललाट पर तिलक लगाता तथा मध्यरात्रि और प्रभात के समय बाजे बजवाता। उसने मस्जिदों और इबादतखानों को भण्डार कक्ष और हिन्दू रक्षक कक्षों में तब्दील कर दिया। वह ‘जमाअत’ शब्द की जगह ‘जिमाअ’ और ‘हय्या अला’ के लिए ‘यल्ला तल्ला’ शब्द काम में लेने लगा। कहा नहीं जा सकता कि इस वाक्य में मुल्ला बदायूंनी क्या कहना चाहता है!
मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि अकबर ने दीवारों के अंदर के कब्रिस्तान को बेकार होने दिया। अकबर ने नया साल आरम्भ होने पर अपनी माँ हमीदा बानू बेगम को एक लाख रुपया नगद, सोना, चांदी, कुछ हाथी तथा सोना चढ़े बर्तन दिए। उसने अपनी चाची गुलबदन बेगम तथा घर की अन्य बड़ी-बूढ़ियों को भी कपड़े, आभूषण, रुपए एवं बर्तन आदि दिए। अकबर ने एक सार्वजनिक आदेश जारी किया कि उसके दरबार में प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह कितना ही बड़ा हो और चाहे कितना ही छोटा, बादशाह के लिए कुछ भेंट लेकर आएगा। इस प्रकार अकबर ने नया साल हिंदू परम्पराओं के अनुसार मनाया।
अकबर ने फतहपुर सीकरी से बाहर दो स्थान बनवाए। इनमें से एक स्थान का नाम धर्मपुरा था जहाँ हिन्दुओं को भोजन करवाया जाता था। दूसरे स्थान का नाम खैरपुरा था जहाँ गरीब मुसलमानों को भोजन करवाया जाता था। कुछ समय बाद फतहपुर सीकरी के पास जोगियों की बहुत बड़ी संख्या एकत्रित हो गई। ये भी शाही भण्डारे से भोजन करना चाहते थे। अकबर ने उनके लिए भी पृथक् व्यवस्था करवा दी और इस स्थान को जोगीपुरा कहा गया।
मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि अकबर इन जोगियों पर बड़ा विश्वास करता था। वह उन्हें रात को अपने महल में बुलवाता तथा उनसे योग करने, समाधि लगाने, शरीर से अनुपस्थित रहने तथा सोना बनाने की विधियां सीखता था।
मुल्ला लिखता है कि जोगी लोग एक विशेष रात को एक स्थान पर एकत्रित होते थे जिसे वे शिवरात्रि कहते थे। अकबर भी उस रात उन जोगियों के बीच गया और वहीं पर उन्हीं के साथ भोजन-पानी किया। जोगियों ने अकबर को रसायन शास्त्र का ज्ञान दिया तथा सोना बनाने की विधि सिखाई। अकबर ने एक बार अपने द्वारा बनाए गए सोने का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन भी किया। मुल्ला लिखता है कि इन लोगों ने अकबर को विश्वास दिला दिया था कि अकबर दूसरे लोगों की अपेक्षा तीन-चार गुना जिएगा।
जब चापलूस किस्म के बुद्धिमान और चालाक दरबारियों एवं हकीमों को ज्ञात हुआ कि जोगियों ने अकबर की लम्बी आयु की भविष्यवाणी की है तो वे चापलूस दरबारी एवं हकीम भी शहंशाह को इस बात का विश्वास दिलाने में जुट गए कि शहंशाह की उम्र काफी लम्बी है। उन्होंने अकबर को बताया कि चंद्रमा का चक्र जिसके दौरानी आदमी की उम्र कम हो जाती है, अब बंद होने को आ रहा है। शनि का चक्र पास आ रहा है जिससे नए समय की शुरुआत होगी और इस कारण मानवता की दीर्घायु होगी वह फिर से चालू हो जाएगी।
इसी तरह कुछ नजूमियों ने अकबर को बताया कि कुछ धर्मग्रंथों में मान्यता है कि मनुष्य हजार साल जीता था जबकि कुछ संस्कृत ग्रंथों में आदमी के दस हजार साल जीने का वर्णन है। तिब्बत में अब भी लामाओं और साथे के संतों की उम्र दो सौ साल व उससे अधिक होती है। इस कारण शहंशाह ने लामाओं की तरह हरम में समय बिताना कम कर दिया, खाने और पीने में कमी कर दी। मांस खाने से दूरी बना ली। सिर मुंडवाने लगा और आस-पास के बाल बढ़ा लिए क्योंकि अकबर को विश्वास हो गया कि मृत्यु के समय रूह सिर में से होकर निकलती है जो कि शरीर का दसवां द्वार है।
अकबर को विश्वास हो गया था कि मृत्यु के समय तूफान जैसा शोर होता है जिसे मर रहा व्यक्ति प्रसन्नता एवं निर्वाण का प्रमाण मान सकता है और जो इस बात का संकेत है कि उसकी आत्मा पुनर्जन्म के माध्यम से किसी बड़े राजा के शरीर में चली जाएगी। शहंशाह ने इस धर्म व्यवस्था को नाम दिया तौहीद ए इलाही।
अकबर द्वारा सूर्य-पूजन करने पर व्यंग्य कसते हुए मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने लिखा है कि आप इस संसार को अपनी इच्छानुसार रखना चाहते हो और मजहब को भी, ये दोनों बातें संभव नहीं हैं। जन्नत किसी शहंशाह की गुलाम नहीं है!