Wednesday, October 16, 2024
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कानून धर्म के लिए होना चाहिए न कि धर्म निरपेक्षता की रक्षा के लिए!

कानून धर्म के लिए होना चाहिए न कि धर्म निरपेक्षता की रक्षा के लिए! भारत देश का धर्म क्या है और भारत देश का कानून क्या है? क्या इन दोनों में तालमेल नहीं होना चाहिए?

जो हिन्दू धर्म पूरी दुनिया में जाकर शांति, अहिंसा और परस्पर सद्भाव से जीना सिखाता है, क्या उस धर्म की रक्षा नहीं होनी चाहिए? क्या ऐसे अहिंसक धर्म के प्रति भी कानून को निरपेक्ष अर्थात् उदासीन बने रहना चाहिए?

आज पूरी दुनिया की शांति खतरे में पड़ी हुई है। रूस-यूक्रेन युद्ध तथा मध्य-एशिया में चल रहे इजराइल-हिज्बुल्ला युद्ध की आग फैलती ही जा रही है। तालिबान से लेकर, आईसिस, हमास और हूती जैसे आतंकी संगठन तेजी से दुनिया में पैर पसार रहे हैं जिससे आदमी का अस्तित्व ही खतरे में दिखाई देता है।

न जाने किस क्षण धरती पर परमाणु बमों की वर्षा आरम्भ हो जाए और धरती भयभीत होकर अपनी धुरी से खिसक कर इस अनंत ब्रह्माण्ड में कहीं खो जाए! ऐसी धरती पर कोई प्राणी नहीं होगा, केवल खतरनाक परमाणु विकीरण का अस्तित्व होगा! भगवान जाने कि वह फिर कभी ऐसी सुंदर धरती बनाएगा भी या नहीं!

आज विश्व में अग्रणी अमरीका और इंग्लैण्ड जैसे देश भी युद्ध की विभीषिका को अपने दरवाजे पर देखकर भयभीत हैं। ऐसी भयंकर परिस्थितियों में केवल भारत ही ऐसा देश है जिसके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर युद्ध के विरुद्ध बोल रहे हैं तथा विश्व शांति की स्थापना का उद्घोष करते हुए घूम रहे हैं।

भारत के प्रधानमंत्री किस प्रतिष्ठा के बल पर विश्वशांति की बात करते हुए घूम रहे हैं? केवल हिन्दू धर्म की प्रतिष्ठा के बल पर! क्योंकि हिन्दू धर्म की ऐसी प्रतिष्ठा है कि वह शांति और सद्भाव में जीने का उपदेश दे सकता है। नरेन्द्र मोदी न केवल हिन्दुओं के देश भारत के प्रधानमंत्री हैं अपितु स्वयं भी हिन्दू हैं और हिन्दू धर्म के उदात्त सिद्धांतों पर जीते हैं। 

क्या किसी मुस्लिम या ईसाई देश का राष्ट्राध्यक्ष कभी भी विश्वशांति के पक्ष में खड़ा हो पाया है? क्या रूस, अमरीका, यूक्रेन, ईरान, अफगानिस्तान, बांगलादेश, तुर्की जैसे देश शांति के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं?

केवल हिन्दुओं  का देश, दुनिया का एकमात्र हिन्दू देश विश्वशांति के पक्ष में खड़ा है। जब तक हिन्दू धरती पर बचेगा, तब तक वह शांति के लिए खड़ा रहेगा।

जबसे नेपाल में हिन्दू राजा का राज्य समाप्त हुआ है और उसने चीन के कम्युनिस्टों को अपना स्वामी बनाया है, तब से न केवल नेपाल की शांति भंग हो गई है, अपितु सदियों से चले आ रहे भारत-नेपाल के शांतिपूर्ण सम्बन्ध भी खतरे में पड़ गए हैं। नेपाल के लोग फिर से हिन्दू धर्म के शासन की तरफ लौटना चाहते हैं।

चीनी कम्युनिस्टों ने तिब्बत का क्या हाल बनाया, हॉन्गकॉन्ग का क्या हाल बनाया? ताइवान का क्या हाल बनाना चाहता है।

उत्तर कोरिया दुनिया पर कैसी भयंकर विपत्ति लाना चाहता है!

जब से बर्मा ने धर्मविहीन चीन को अपना स्वामी बनाया, बर्मा से लोकतंत्र समाप्त हो गया, लोग बंदूकों के साए में जी रहे हैं।

जब से लंका ने चीनी कम्युनिस्टों को अपने देश की धरती पर पैर रखने दिए, तब से श्रीलंका जैसे शांतिप्रिय बौद्ध देश में भुखमरी और अशांति फैल गई।

ईसाई देश अमरीका द्वारा पाले हुए सांपों ने हाल ही में बांगलादेश की सड़कों पर मौत का जो नंगा नाच किया है, वह सबके सामने है।

ईसाई देश कनाडा ने खालिस्तानी आतंकियों को बढ़ावा देकर भारत में नए उपद्रवों का जो सिलसिला शुरू है, वह भी किसी से छिपा हुआ नहीं है।

हम आंखें मूंदकर बैठे हैं तो क्या हुआ, सच्चाई कुछ ही वर्षों में सामने आ जाएगी कि पंजाब के हालात कितने खराब हो चुके हैं। कुछ समय पहले हम इसका एक ट्रेलर देख भी चुके हैं जब भारत के प्रधानमंत्री को पंजाब की पुलिस द्वारा बीच सड़क पर रोक दिया गया और उन्हें प्रधानमंत्री के सुरक्षाकर्मियों द्वारा वहीं से वापस दिल्ली लाया गया।

पिछले लोकसभा चुनावों में ही जेल में बंद खालिस्तानी आतंकी अमृतपालसिंह को जेल में बंद होते हुए पंजाब की जनता ने लोकसभा का सदस्य चुना। क्या उस क्षेत्र में हिन्दू वोटरों की संख्या अधिक होती तो अमृतपालसिंह कभी भी सांसद चुना जाता?

काश्मीर का राशिद इंजीनियर जेल में बंद खतरनाक अपराधी था किंतु वह भी किस मजहब के मतदाताओं के बल पर भारत की लोकसभा का सदस्य चुन लिया गया? क्या उस क्षेत्र में हिन्दू वोटरों की संख्या अधिक होती तो राशिद इंजीनियर कभी भी सांसद चुना जाता?

थोड़ा पीछे चलकर देखें, 1947 में जब भारत आजादी की चौखट पर खड़ा था, भारत की शांति क्यों भंग हुई और देश में लाखों लोगों का कत्ल, लाखों स्त्रियों से बलात्कार, करोड़ों लोगों का पलायन किस मजहबी जिद के कारण हुआ? क्या मानवता के इतिहास ने उस नरसंहार को पूरी तरह भुला दिया है।

क्या हिन्दू धर्म ने कभी भी धरती के किसी भी हिस्से में अपने लिए अलग देश की मांग की? नहीं की क्योंकि हिन्दू को सहअस्तित्व में रहना आता है।

क्या दुनिया में कोई भी ऐसा देश है जिसने ईरान से जान बचाकर भागे पारसियों को अपनी छाती से लगाया? भारत के अतिरिक्त किसी ने नहीं लगाया। जब जर्मनी से यहूदी मारकर भगाए गए, तब भी भारत ही उनके लिए सद्भाव का हाथ बढ़ा सका।

क्या किसी भी देश में हिन्दुओं के कारण उस देश के कानून को, उस देश के धर्म को, उस देश की संस्कृति को, उस देश के लोगों को, उस देश की अर्थव्यवस्था को कोई आघात पहुंचा है? नहीं पहुंचा।

यदि इस्लामी देशों को छोड़ दें तो हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा कि जहाँ-जहाँ हिन्दू पहुंचा है, वहाँ-वहाँ शांति, सद्भावना और उदार भावों का संचार हुआ है। आज विश्वभर में लाखों ईसाई हैं जो हिन्दू धर्म का महत्व समझ रहे हैं और उसे अपना रहे हैं।

क्या हिन्दू धर्म कभी भी किसी अन्य धर्म के मनुष्यों को हिन्दू धर्म में कन्वर्ट करने के लिए किसी भी प्रकार का प्रयास करता है? क्या हिन्दू धर्म अन्य मजहबों के इंसानों को हिन्दू बनाने के लिए भय, लालच और षड़यंत्र का सहारा लेता है? नहीं लेता क्योंकि हिन्दू धर्म में किसी को कन्वर्ट किया ही नहीं जा सकता। ऐसा कोई विधान ही नहीं है। लोग स्वतः हिन्दू जीवन शैली अपना लेते हैं।

जिस प्रकार पारसी किसी को पारसी धर्म में कन्वर्ट नहीं करते, जिस प्रकार यहूदी किसी को यहूदी धर्म में कन्वर्ट नहंी करते, उसी प्रकार हिन्दू भी किसी अन्य धार्मिक विश्वास वाले मानव को अपने धर्म में कन्वर्ट नहीं करते। आज पारसी, हिन्दू और यहूदी तीनों ही खतरे में हैं!

कोई भी मजहब या पंथ किसी अन्य धर्मिक विश्वास के मानव समुदाय को अपने मजहब या पंथ में कन्वर्ट करता है, वह कभी भी विश्वशांति जैसी दुर्लभ बातें नहीं कर सकता।

विश्वशांति सबको अपनाने से होती है, किसी को कन्वर्ट करने से नहीं होती।

बिना किसी संकोच के, बिना किसी पूर्वाग्रह के, बिना किसी दंभ या पाखण्ड के यह कहा जा सकता है कि धरती पर सबसे अहिंसक और सबसे शांत मानव समुदाय केवल और केवल हिन्दू है जो मानवों को परस्पर सद्भाव से जीना सिखाता है, प्राणी मात्र में भगवान के स्थित होने का भाव रखता है, ऐसा दुर्लभ धार्मिक समुदाय आज अपने ही घर में खतरे में है।

क्या संसार के समझदार और गंभीर लोगों को यह दायित्व नहीं है कि वे विश्वशांति के लिए आधार भूमि तैयार करने में सक्षम हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए प्रयास करें। ऐसा करने के लिए उन्हें हिन्दू धर्म अपनाना नहीं होगा, केवल हिन्दू धर्म पर प्रहार करने वालों के खतरनाक इरादों का साथ देने से बचना होगा।

एक ऐसा संसार जिसमें सभी प्राणी शांति और सद्भावना के साथ रह सकें, तभी बन सकता है जब हिन्दू धर्म इस धरती पर सुरक्षित रहे।

ईश्वर न करे किंतु यदि कभी ऐसा दिन आया कि हिन्दू धर्म धरती से समाप्त हो जाए, तो विश्वशांति जैसी बातें करने वाला कोई भी नहीं बचेगा! वह धरती कैसी होगी, इसकी कल्पना मात्र से भय लगता है। शायद धरती होगी ही नहीं, वह परमाणु बमों की आग में झुलस कर नष्ट हो जाएगी।

क्या ऐसे उदार धर्म के प्रति उसी देश के कानून को निरपेक्ष भाव अर्थात् उदासीन भाव रखना चाहिए? क्या देश का धर्मनिरपेक्ष कानून यह कहता है कि भारत का कोई धर्म नहीं है, यदि वह ऐसा ही कहता है तो उसे धर्मनिरपेक्ष नहीं होना चाहिए। दुनिया में भारत और नेपाल के अतिरिक्त और कोई देश धर्मनिरपेक्ष नहीं है जबकि वास्तविकता यह है कि दोनों देश हिन्दू हैं। हिन्दू धर्म की ऊर्जा से बने हैं।

क्या भारत का धर्मनिरपेक्ष कानून हिन्दू धर्म की रक्षा करने में समर्थ है? या फिर देश का धर्मनिरपेक्ष कानून हिन्दुओं की रक्षा करने में समर्थ तो है किंतु जानबूझ कर नहीं कर रहा क्योंकि कानून का शासन चलाने वालों में, कानून की व्याख्या करने वालों में और कानून को कार्यान्वित करने वालों में हिन्दू धर्म की रक्षा करने का भाव ही मिट चुका है?

आज हर ओर से हिन्दू धर्म पर प्रहार हो रहे हैं जिनके चलते देश की डेमोग्राफी बदल रही है, बंगाल और असम जैसी सीमावर्ती राज्य ही नहीं हरियाणा, हिमाचल और उत्तराखण्ड जैसे प्रांतों की भी डेमाग्राफी तेजी से बदल चुकी है। इसे देखकर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि भारत का कानून भारत के अपने मूल धर्म की रक्षा के लिए क्यों नहीं बना है?

जिस कांग्रेस ने देश की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया, उसी कांग्रेस ने आगे चलकर वक्फबोर्ड जैसी संस्थाएं खड़ी कीं और उनके पक्ष में अंधे कानून बनाकर हिन्दू धर्म को कमजोर करने का षड़यंत्र किया। उसी कांग्रेस ने धर्मस्थलों की 1947 वाली स्थिति बनाए रखने जैसा खतरनाक कानून बनाया।

उसी कांग्रेस ने देश में चारों तरफ से पाकिस्तानियों एवं बांग्लादेशियों को चोरी-छिपे घुसने के मार्ग तो बनाए किंतु उन देशों में आजादी के समय रह गए हिन्दुओं, बौद्धों, सिक्खों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रयास नहीं किया। जिसका परिणाम यह है कि आज अफगानिस्तान से आखिरी गुरुग्रंथ साहब भी भारत लौट आया है।

आज देश में लव जेहाद, लैण्ड जेहाद, थूक जेहाद, पेशाब जेहाद, वक्फ जेहाद अपने चरम पर हैं, अस्पतालों एवं रेलवे स्टेशनों पर मजारें बन चुकी हैं, सरकारी जमीनों पर हजारों मस्जिदें खड़ी हैं। ऐसे बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं।

इन परिस्थितियों में हिन्दू धर्म अपना अस्तित्व कैसे बचाए रख सकता है? हिन्दू सड़कों पर लड़ने का अभ्यस्त नहीं है, न देश का कानून इसकी अनुमति देता है।

किसी भी देश में लोगों को सड़कों पर लड़ने की अनुमति होनी भी नहीं चाहिए किंतु कुछ तो ऐसा किया जाना चाहिए कि उस देश के लोगों को अपना मूल धर्म बचाने के लिए सड़कों पर आने की आवश्यकता ही अनुभव न हो!

जब हिन्दू धर्म का बाह्य शरीर ही खण्डित हो जाएगा, अर्थात् देश की जनसंख्या का स्वरूप ही बदल जाएगा तो हिन्दू धर्म का भीतरी स्वरूप भी बचा नहीं रहेगा।

यदि देश का कानून हिन्दू धर्म को बचाने में समर्थ होगा, तथी हिन्दू दुनिया भर में जाकर मानवों को शांति से रहने के लिए प्रेरित कर सकेगा।

भारत का कानून हिन्दू धर्म की रक्षा करने के आड़े कैसे आता है, इसके दो उदाहरण ही देने पर्याप्त हैं। आज यदि सरकार थूक जेहाद और पेशाब जेहाद रोकने के लिए केवल इतना सा आदेश देती है कि हर होटल, ढाबे और रेढ़ी वाला अपनी दुकान के सामने अपना नाम लिखे, तो कानून सामने आकर इस आदेश पर रोक लगा देता है।

यदि किसी ने सरकारी भूमि पर कब्जा कर रखा है, और वह आदमी दंगों या जघन्य अपराधों में लिप्त भी पाया जाता है और सरकार ऐसे मनुष्य के अवैध घर या दुकान को हटाने की कार्यवाही करती है तो कानून उस पर रोक लगा देता है।

देश में कानून का शासन होना चाहिए किंतु कानून भी तो अच्छा होना चाहिए। कानून को कार्यान्वित करने के लिए भावना भी तो अच्छी होनी चाहिए।

क्या कानून को केवल बहुसंख्यक के खिलाफ ही होना चाहिए, क्या उसे केवल अल्पसंख्य के पक्ष में ही खड़े होना चाहिए?

कानून को निष्प्राण नहीं होना चाहिए। प्राणवान होना चाहिए और केवल प्राणवान ही नहीं होना चाहिए, धर्मप्राण भी होना चाहिए।

कानून अंधा नहीं होना चाहिए, आंख वाला होना चाहिए!

कानून धर्म के लिए होना चाहिए न कि धर्म निरपेक्षता की रक्षा के लिए! भारत देश के धर्म एवं कानून में तालमेल होना चाहिए।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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