भारत की राजनीति में यह एक कमाल का कारनामा हुआ है, जिस समय तक केजरीवाल जेल में बंद थे, तब तक तो वे सरकारी कागज पर हस्ताक्षर कर सकते थे किंतु जेल से बाहर आने पर उनकी यह शक्ति छीन ली गई है। इस पर भी केजरीवाल ने जेल से बाहर आते ही यह वक्तव्य दिया है कि उनका हौंसला कम नहीं हुआ है, अपितु सौ गुना बढ़ गया है।
अमृत वही अच्छा होता है जिसमें किसी को अमर करने की क्षमता हो, विष वह अच्छा होता है जो किसी के प्राण ले ले। मुख्यमंत्री वही अच्छा होता है जिसकी कलम में ताकत हो किंतु जिस मुख्यमंत्री की कलम ही छीन ली जाए और उससे कह दिया जाए कि वह किसी भी सरकारी कागज पर हस्ताक्षर नहीं करेगा, तो वह कैसा मुख्यमंत्री है!
पूजा में वही फूल काम में लिए जाते हैं जिनमें सुगंध हो! नागराज वही पूजनीय होते हैं जिनके मुख में दांत हों, जिस नाग के दांत तोड़ दिए जाएं, वह पूजा किए जाने के योग्य नहीं रहता, खिलौना बन जाता है। उसी प्रकार जिस मुख्यमंत्री से हस्ताक्षर करने के अधिकार छीन लिए जाएं, वह भी मुख्यमंत्री नहीं रहता, खिलौना बन जाता है। केजरीवाल अब दिल्ली के ऐसे ही मुख्यमंत्री हैं। वे न अपने कार्यालय में जा सकते हैं, न किसी सरकारी कागज पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।
भारत की राजनीति में यह एक कमाल का कारनामा हुआ है, जिस समय तक केजरीवाल जेल में बंद थे, तब तक तो वे सरकारी कागज पर हस्ताक्षर कर सकते थे किंतु जेल से बाहर आने पर उनकी यह शक्ति छीन ली गई है। इस पर भी केजरीवाल ने जेल से बाहर आते ही यह वक्तव्य दिया है कि उनका हौंसला कम नहीं हुआ है, अपितु सौ गुना बढ़ गया है।
कमाल है भाई! कलम चलाने का अधिकार छिन जाने पर भी आपका हौंसला बना रहता है। ऐसा हौंसला आप लाए कहाँ से हैं?
जब समाज के पास मनोरंजन के आधुनिक साधन नहीं थे, तब गांवों में कठपुतलियों को नचाकर लोगों का मनोरंजन करने वाले घूमा करते थे। कठपुतलियों का एक मजाकिया खेल आज की राजनीति पर बड़ा सटीक बैठता है। इस खेल में बड़े-बड़े राजाओं-महाराजाओं का एक दरबार सजता है जिसमें बड़ी-बड़ी मूंछों एवं बड़ी-बड़ी तलवारों वाले राजा एकत्रित होते हैं। वे देश को दुश्मन से आजाद करवाने के लिए बड़ी-बड़ी चिंताएं व्यक्त करते हैं।
जब एक ढोलक बजाने वाले को पता चलता है कि यहाँ राजाओं का दरबार सजा हुआ है तो वह दरबार में आकर उन्हें प्रणाम करता है और अपनी ढोलक बजाकर उन्हें सुनाता है। राजा लोग उसकी ढोलक को सुनकर प्रसन्न होते हैं तथा उसे पुरस्कार देते हैं। ढोली उत्साहित होता है तथा जोर-जोर से ढोलक बजाता है। इस बार भी राजा लोग प्रसन्न होते हैं तथा उसे थोड़ा पुरस्कार और देते हैं। ढोली फिर ढोलक बजाता है। अब राजाओं में ढोलक के प्रति पहले जैसा आकर्षण दिखाई नहीं देता। ढोली फिर से ढोलक बजाता है, राजा लोग ढोली की तरफ ध्यान देना बंद करके अपना विचार-विमर्श आरम्भ कर देते हैं।
ढोली चुप होकर राजाओं की बात सुनता है किंतु कुछ देर बाद ढोली को लगता है कि राजा लोग उसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे, उनका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए ढोली फिर से ढोलक बजाता है। इस पर एक राजा ढोली को शांत रहने का संकेत करता है। ढोली थोड़ी देर शांत रहकर फिर से ढोलक बजाता है। इस पर एक राजा, ढोली को पुनः शांत रहने का संकेत करता है। ढोली शांत हो जाता है और कुछ देर बाद फिर से ढोलक बजाता है।
इस पर एक राजा नाराज होकर ढोली को पीट देता है। ढोली फिर शांत हो जाता है किंतु कुछ देर बाद फिर से ढोलक बजाने लगता है। इस बार सारे राजा मिलकर ढोली को पीटते हैं। इस पर ढोली को भी गुस्सा आ जाता है और वह जोर-जोर से ढोलक बजाता हुआ चिल्लाता है- थोड़ी-थोड़ी और बजेगी।
केजरीवाल का यही हाल है, उनका हौंसला टूटना तो दूर, कम नहीं होता! अपितु छः महीने की जेल काटकर हौंसला पहले से ज्यादा बढ़ जाता है। इसी को कहते हैं- थोड़ी-थोड़ी और बजेगी!
समय के साथ माहौल में काफी बदलाव आ गया है। इस बार केजरीवाल की थोड़ी-थोड़ी और बजेगी केवल मजाक नहीं है, कांग्रेस के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है। अगले महीने होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनावों में केजरीवाल की ढोलक थोड़ी-थोड़ी नहीं बजेगी, पूरे जोर से बजेगी और राजाओं की हालत पतली हो जाएगी।
दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में आम आदमी पार्टी का अच्छा प्रचार और प्रभाव है। इस कारण दूसरे राजनीतिक दलों की चिंताएं बढ़ गई हैं। आम आदमी पार्टी हरियाणा में भले ही सीटें न जीत पाए किंतु निश्चित रूप से कांग्रेस के वोटों में बड़ी सेंध लगाएगी। जेजेपी और इनेलो की भी मुसीबत बढ़ गई है।
आप पार्टी बीजेपी का भी कुछ न कुछ नुक्सान अवश्य करेगी किंतु अंततः बीजेपी को लाभ होगा।
इसलिए कहा जा सकता है कि इस बार ढोली केवल ढोलक बजाने नहीं आया है, राजाओं के ताज गिराने आया है। इसलिए केजरीवाल की ढोलक पूरे जोश से बजेगी।
जिस प्रकार पिछले लोकसभा चुनावों में दिल्ली क्षेत्र के चुनावों से एक महीना पहले केजरीवाल को जमानत पर छोड़ा गया था, इस बार भी हरियाणा विधान सभा के चुनावों से लगभग पंद्रह दिन पहले जेल से बाहर निकाल दिया गया है।
यही हाल राशिद इंजीनियर का भी है। वह भी जम्मू-कश्मीर में होने जा रहे विधान सभा चुनावों से ठीक पहले अपनी ढोलक लेकर जेल से बाहर आ गया है। उसकी ढोलक निश्चित रूप से फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस तथा महबूबा मुफ्ती की पीडीपी का खेल पूरी तरह से बिगाड़ देगी।
राशिद इंजीनियर तो चुनावों के बाद फिर से जेल में चला जाएगा किंतु जेल जाने से पहले अब्दुल्ला परिवार और मुफ्ती परिवार की राजनीतिक ढोलकों की थाप अच्छी तरह बिगाड़ जाएगा!
जिस प्रकार केजरीवाल का हौंसला जेल में रहकर कम नहीं हुआ, उस प्रकार राशिद इंजीनियर भी जेल में रहकर नया हौंसला पा गया है।
नेताओं के हौंसले कभी कम नहीं होते, हौंसले तो लालू यादव के भी कम नहीं हुए भले ही बिहार की जनता ने उनके परिवार एवं उनकी पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनावों बुरी तरह नकार दिया हो किंतु हौंसला वही है। उनकी भी ढोलक जोर से बज रही है। हौंसले तो ममता बनर्जी के भी कम नहीं हुए। पूरा पश्चिमी बंगाल गुस्से की आग में जल रहा है, किंतु ममता का हौंसला कहाँ टूटा है। ममता भी थोड़ी-थोड़ी और बजेगी गाती रहेंगी। राजनीति की ढोलक बजाती रहेंगी।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता