जब मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह ने अपनी प्रजा के दुखों से दुखी होकर अकबर से संधि करने का मन बनाया तो अब्दुर्रहीम खानखाना ने अमरसिंह से कहलवाया कि खुरासान से आया बादशाह तो मर जाएगा किंतु हिन्दू धर्म और धरती यहीं रहेंगे!
शहजादे मुराद ने बादशाह अकबर से खानखाना अब्दुर्रहीम की शिकायत कर दी कि वह अहमदनगर की सुल्ताना चांद बीबी से मिल गया है। इस पर अकबर रहीम पर बहुत बिगड़ा और उसने रहीम को लाहौर बुलवाया जहाँ इन दिनों अकबर प्रवास कर रहा था।
जब खानखाना लाहौर में अकबर की सेवा में उपस्थित हुआ तो अकबर ने उसकी ड्यौढ़ी बंद कर दी। यह बताना समीचीन होगा कि बादशाह के खास अमीरों को बादशाह के महलों में ड्यौढ़ी पर हाजिर होने का अधिकार होता था। जब बादशाह किसी अमीर से नाराज हो जाता था तो उसका यह अधिकार छीन लिया जाता था।
अब्दुर्रहीम खानखाना शहंशाह अकबर के सामने शहजादे मुराद की अकारण अप्रसन्नता, सादिक खाँ की शत्रुता और अपनी बेगुनाही के बारे में तरह-तरह से निरंतर अर्ज करता रहा किंतु अकबर ने उसे क्षमा नहीं किया। जब कई माह बीत गये और कोई परिणाम नहीं निकला तो एक दिन खानखाना ने एक दोहा लिखकर अकबर को भिजवाया-
‘रहिमन एक दिन वे रहे, बीच न सोहत हार।
बायु जु ऐसी बह गयी, बीचन परे पहार।’
अर्थात्- कभी ऐसा था कि हार का भी व्यवघान असह्य था और कुछ ऐसी हवा चली कि वे हार छाती पर पहाड़ हो गये हैं और ऐसी स्थिति में चुपचाप सहना ही एक मात्र विकल्प रह गया है।
अकबर इस दोहे को पढ़कर पसीज गया। उसने अब्दुर्रहीम को अपने समक्ष बुलवाया। जब खानखाना बादशाह की सेवा में उपस्थित हुआ तो बादशाह ने पूछा- ‘मिर्जा खाँ! दक्षिण फतह का क्या उपाय है?’
-‘यदि बादशाह सलामत शहजादे मुराद को वहाँ से हटाकर युद्ध की समस्त जिम्मेदारी मुझे सौंप दें तो दक्षिण पर फतह की जा सकती है।’
खानखाना का जवाब सुनकर अकबर का चेहरा फक पड़ गया। उसे अनुमान नहीं था कि खानखाना भरे दरबार में शहजादे पर तोहमत लगायेगा। इसके बाद उसने खानखाना से कोई बात नहीं की और खानखाना को अपने मन से उतार कर फिर से उसकी ड्यौढ़ी बंद कर दी।
जब अकबर लाहौर से आगरा के लिये रवाना हुआ तो खानखाना तथा खानेआजम धायभाई अजीज कोका को भी आगरा कूच करने का आदेश दिया गया। मार्ग में अम्बाला पहुंचने पर खानखाना की पत्नी माहबानूं बीमार पड़ गयी। माहबानूं अकबर की धाय माहम अनगा की पुत्री थी और खानेआजम कोका की बहिन थी। अकबर ने माहबानूं की देखभाल के लिये खानखाना और खानेआजम दोनों को अम्बाला में ही रुकने की अनुमति दी और स्वयं आगरा चला गया। कुछ दिन बाद माहबानूं मर गयी।
भाग्य का पहिया उलटा घूमना आरंभ हो गया था। अब तक अब्दुर्रहीम को संसार में मिलता ही रहा था किंतु माहबानूं की मृत्यु के साथ अब्दुर्रहीम से नित्य प्रति दिन कुछ न कुछ छिन जाने का सिलसिला आरंभ हो गया था। माहबानूं को अम्बाला में ही दफना कर रहीम आगरा चला आया। एक दिन मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह का एक चारण अब्दुर्रहीम खानखाना की सेवा में उपस्थित हुआ। उसने खानखाना से कहा कि हुजूर! महाराणा ने कहलवाया है-
हाड़ा कूरम राव बड़, गोखाँ जोख करंत।
कहियो खानखानाँ ने, बनचर हुआ फिरंत।।
तुबंरा सु दिल्ली गई, राठौड़ां कनवज्ज।
राणपयं पै खान ने वह दिन दीसे अज्ज।।
अर्थात्- हाड़ा चौहान, कच्छवाहे और राठौड़ राजा अपने-अपने महलों में विश्राम कर रहे हैं। खानखाना से कहना कि हम सिसोदिये तो वनचर हुए फिर रहे हैं। तंवरों से दिल्ली गयी, राठौड़ों से कन्नौज गया, क्या खानखाना को राणाओं के लिये अब भी स्वतंत्रता दिखायी देती है?
चारण की बात सुनकर खानखाना सोच में पड़ गया। उसने चारण से कहा, अपने महाराणा से कहना-
धर रहसी रहसी धरम, खप जासी खुरसाण।
अमर विसंभर ऊपराँ राखो नहचो राण।’
अर्थात्- यह धरती रहेगी, धर्म रहेगा। खुरासान देश से आया हुआ यह बादशाह मिट जायेगा। इसलिये हे राणा अमरसिंह! विश्वंभर पर विश्वास रखो।
चारण इस महान् आत्मा को नमस्कार करके भलीभांति नतमस्त होकर चला गया। यह बताना समीचीन होगा कि कुछ वर्ष पहले जब अकबर ने अब्दुर्रहीम खानखाना को मेवाड़ पर आक्रमण करने भेजा था, तब खानखाना के परिवार की महिलाओं को मेवाड़ की सेनाओं ने पकड़ लिया था। महाराणा अमरसिंह ने खानखाना के परिवार को आदर सहित खानखाना के पास भिजवा दिया था। तब से खानखाना अब्दुर्रहीम मेवाड़ के राजपरिवार को आदर की दृष्टि से देखता था और यह नहीं चाहता था कि मेवाड़ कभी भी मुगलों की अधीनता स्वीकार करे।
जब से हिन्दू राजाओं को यह बात ज्ञात हुई थी, तब से मेवाड़, रीवां तथा कुछ अन्य हिन्दू राजपरिवार खानखाना अब्दुर्रहीम से सलाह लिया करते थे। वैसे भी इस समय तक खानखाना अब्दुर्रहीम की प्रसिद्धि उस काल के प्रसिद्ध वैष्णव भक्तों में होने लगी थी।
कुछ दिनों बाद दक्षिण के मोर्चे से एक बुरी खबर आई जिसे सुनकर अकबर थर्रा उठा। खबर यह थी कि शहजादा मुराद शराब के नशे में मिरगी आने से मर गया। इस पर अकबर ने शहजादे दानियाल को दक्षिण के मोर्चे पर नियुक्त किया।
जब दानियाल दक्षिण के लिये रवाना हो गया तो अकबर खानाखाना अब्दुर्रहीम के डेरे पर गया और उसने खानखाना से कहा कि वह भी दानियाल के साथ दक्षिण जाए और किसी भी कीमत पर शहजादे को फतह दिलवाए। खानखाना नहीं चाहता था कि वह फिर से दक्षिण में जाए। वह जानता था कि दक्षिण उसके लिये दो पाटों की चक्की बन चुका है।
एक तरफ बादशाह है तो दूसरी तरफ चाँद बीबी। यदि वह किसी एक के साथ हो जाता है तो दूसरे के साथ अन्याय होना निश्चित ही है किंतु भाग्य की विडम्बना को स्वीकार कर खानखाना दक्षिण के लिये रवाना हो गया। हालांकि वह अच्छी तरह जानता था कि खुरासान से आया बादशाह एक न एक दिन मर ही जाएगा।
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