जिन दिनों अकबर अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पाकर अत्यंत शक्तिशाली होकर फतहपुर सीकरी में स्थापित हो चुका था, उन्हीं दिनों मेवाड़ का मेवाड़ के महाराणा प्रताप का बड़रा भाई जगमाल राज्य पाने की लालसा से अकबर की सेवा में पहुंचा।
अकबर के गाजीपुर तथा पटना से लौट आने के बाद भी खानखाना मुनीम खाँ और राजा टोडरमल ने बंगाल के सुल्तान दाऊद खाँ का पीछा करना जारी रखा। राजा टोडरमल ने इस अभियान में बहुत वीरता दिखाई जिसका इतिहास हम आलेख संख्या 37 तथा 73 में विस्तार से बता चुके हैं।
राजा टोडरमल ई.1576 में बंगाल का अभियान पूरा करके फतेहपुर सीकरी लौट आया। उसने अफगानों की सेना से लूटे गए 304 हाथी अकबर को भेंट किए। अकबर इस भेंट को पाकर प्रसन्न हुआ और उसने टोडरमल को तत्काल ही गुजरात के शासक वजीर खाँ की सहायता के लिए भेज दिया तथा टोडरमल की जगह ख्वाजा शाह मंसूर शिराजी को वित्तमंत्री बना दिया।
जब ई.1577 के अंत में टोडरमल गुजरात में शांति स्थापित करके तथा सैंकड़ों लोगों को बंदी बनकर लौटा तो अकबर ने टोडरमल को फिर से वित्तमंत्री बना दिया। इसके साथ ही मुगल सल्तनत के समस्त प्रांतीय राजस्व मंत्रियों जिन्हें उन दिनों दीवान कहा जाता था, टोडरमल के अधीन कर दिया। अब तक अकबर के लगभग समस्त विरोधी या तो उनके राज्यों से बाहर निकाले जा चुके थे या फिर उन्हें संसार से ही बाहर भेज दिया था। इसलिए अकबर की रुचि युद्धों से कम होने लगी तथा वह स्वयं युद्धक्षेत्र में जाने की बजाय अपने सेनापतियों को ही विभिन्न अभियानों की कमान सौंपने लगा था। अब अकबर मजहब के क्षेत्र में कुछ बड़ा करके दिखाना चाहता था। इसलिए अकबर ने सीकरी में इबादतखाना का निर्माण करवाया जिसे भारत में पनप रहे विभिन्न धर्मों के धर्माचायों के साथ विचार-विमर्श एवं बहस-मुसाहिबे के लिए बनाया गया था। इबादत खाने में हुई गतिविधियों की चर्चा करने से पहले हमें इतिहास के घटनाक्रम को संसार की प्राचीनतम पर्वतमालाओं में से एक अरावली में स्थित हल्दीघाटी की ओर ले चलना पड़ेगा। अरावली पर्वतमाला उत्तर-पूर्व में दिल्ली से आरंभ होकर दक्षिण-पश्चिम गुजरात के पालनपुर कस्बे के निकट खेड़ब्रह्मा तक विस्तृत है।
कभी यह संसार की विशालतम एवं उच्चतम पर्वतमालाओं में से एक थी किंतु वर्तमान में इस पर्वतमला की कुल लम्बाई 692 किलोमीटर ही बची है। इसकी पहाड़ियों की ऊंचाई भी हवा एवं पानी से घिसकर बहुत कम रह गई है। 692 किलोमीटर में से 550 किलोमीटर पर्वतमाला राजस्थान में स्थित है।
मेवाड़ का यशस्वी राज्य इसी अरावली पर्वतमाला की गोद में स्थित था जिसके शासक भगवान राम के वंशज थे। मेवाड़ के शासकों की वंश परम्परा में बप्पा रावल, खुमाण (तृतीय), गुहिल, राणा हमीर, राणा कुंभा तथा राणा सांगा जैसे प्रातःवंदनीय शासक हुए थे जो न केवल अप्रतिम योद्धा थे अपितु देश के उद्धारक, हिन्दू धर्म के उन्नायक, प्रजापालक एवं अपने वचनों पर दृढ़ रहने के लिए विख्यात थे। इस कुल के राजा आठवीं शताब्दी ईस्वी से खलीफा की सेनाओं से लड़ते आए थे।
आठवीं शताब्दी ईस्वी में बप्पा रावल ने, नौवीं शताब्दी ईस्वी में खुमांण (तृतीय) ने, बारहवीं शताब्दी ईस्वी में सामंतसिंह तथा जैत्रसिंह ने, तेरहवीं शताब्दी में रावल समरसिंह ने, चौदहवीं शताब्दी ईस्वी में रावल रत्नसिंह ने, पंद्रहवीं शताब्दी ईस्वी में महाराणा कुंभकर्ण ने, सोलहवीं शताब्दी ईस्वी में महाराणा संग्रामसिंह तथा महाराणा उदयसिंह ने अरब से आने वाली खलीफा की सेनाओं से लेकर, अफगानी आक्रांताओं और दिल्ली, मालवा एवं गुजरात के मुस्लिम शासकों से बड़े-बड़े युद्ध किए थे और उनके कई-कई हजार सैनिकों को बारम्बार तलवार के घाट उतारा था।
पाठकों को स्मरण होगा कि अकबर ने ई.1568 में मेवाड़ राज्य की राजधानी चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था। उस समय महाराणा उदयसिंह मेवाड़ का शासक था। ई.1572 में जिस समय अकबर गुजरात के अभियान पर जा रहा था, उस समय महाराणा उदयसिंह की मृत्यु हो गई।
महाराणा उदयसिंह ने अपनी प्रिय रानी भटियाणी के पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया किंतु मेवाड़ी सरदारों ने जगमाल को अपना राजा स्वीकार नहीं किया तथा स्वर्गीय महाराणा उदयसिंह के बड़े पुत्र प्रतापसिंह को महाराणा बनाया।
इस पर जगमाल अकबर की सेवा में पहुंचा। अकबर ऐसे अवसरों की तलाश में रहा करता था। इसलिए अकबर ने जगमाल को चित्तौड़ का दुर्ग देकर मेवाड़ का महाराणा घोषित कर दिया। कुम्भलगढ़ के विश्वविख्यात दुर्ग में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक उत्सव हुआ। उस समय प्रताप की आयु 32 वर्ष थी।
जगमाल ने चित्तौड़ दुर्ग में आकर मेवाड़ के सरदारों को अपने पक्ष में आने के लिए आमंत्रित किया किंतु कोई भी मेवाड़ी सरदार जगमाल की तरफ नहीं गया। इस प्रकार मेवाड़ी सरदारों में फूट डालने का अकबर का षड़यंत्र विफल हो गया।
पाठकों को स्मरण होगा कि जिस समय महाराणा उदयसिंह जीवित था, उस समय ई.1567 में उदयसिंह का पुत्र शक्तिसिंह भी अपने पिता से नाराज होकर अकबर की सेवा में उपस्थित हुआ था।
गौरी शंकर हीराचंद ओझा ने लिखा है कि राणा उदयसिंह का पुत्र शक्तिसिंह अपने पिता से नाराज होकर अकबर की सेवा में उपस्थित हुआ। अकबर उस समय धौलपुर में शिविर लगाए पड़ा था।
अकबर ने कुंवर शक्तिसिंह से कहा- श्बड़े-बड़े जमींदार मेरे अधीन हो चुके हैं, केवल राणा उदयसिंह अभी तक नहीं हुआ। अतः मैं उस पर चढ़ाई करने वाला हूँ। क्या तुम इस कार्य में मेरी सहायता करोगे?श्
इस पर शक्तिसिंह ने विचार किया कि मेरे अकबर के पास आने से सब लोग यही समझेंगे कि मैं ही अकबर को मेवाड़ पर चढ़ा लाया हूँ। इससे मेरी बड़ी बदनामी होगी। इसलिए शक्तिसिंह उसी रात बिना कोई सूचना दिए अकबर के शिविर से निकल गया और चित्तौड़ पहुंच गया। इस प्रकार उस समय भी अकबर द्वारा मेवाड़ी राजपरिवार में फूट डालने का प्रयास विफल रहा था।
जब जगमाल द्वारा मेवाड़ी सरदारों को अपने पक्ष में किए जाने के सारे प्रयत्न निष्फल हो गए तो अकबर ने चित्तौड़ का किला जगमाल से वापस ले लिया तथा उसने अपनी सेनाओं का मुँह एक बार फिर से मेवाड़ की तरफ मोड़ दिया।
महाराणा प्रताप को इसी दिन की प्रतीक्षा थी। वह जानता था कि अकबर पूरे भारत को निगल जाने के लिए तत्पर है। महाराणा यह भी जानता था कि मेवाड़ का राज्य महाराणा सांगा के समय से ही मुगलों के निशाने पर है, केवल चित्तौड़ दुर्ग हासिल करके मुगल चौन से बैठने वाले नहीं हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर से!