Thursday, September 19, 2024
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डॉ. मोहन भागवत की बातें आधी-अधूरी सी लगती हैं!

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन मधुकर भागवत सार्वजनिक मंचों पर दिए गए भाषणों के माध्यम से हिन्दुओं को उनका धर्म स्मरण कराते रहते हैं। मैं भी हिन्दू हूँ तथा बचपन से ही संघ के संस्कारों में पला-बढ़ा हूँ, डॉ. हेडगवार, गुरु गोलवलकर, छत्रपति शिवाजी महाराजा और वीर विनायक दामोदर सावरकर के चित्रों को देख-देखकर बड़ा हुआ हूँ और आरएसएस को हिन्दुओं की सबसे अच्छी, सबसे बड़ी, अनुशासित और अनुकरणीय संस्था मानकर आरएसएस में श्रद्धा रखता हूँ।

इसलिए मैं भी डॉ. मोहन भागवत की बातों को बहुत ध्यान से सुनता हूँ किंतु मुझे हमेशा से लगता है कि डॉ. मोहन भागवत की बातें आधी-अधूरी हैं। इन बातों से हिन्दू जाति का और भारत राष्ट्र का कल्याण होगा, इसमें मुझे संदेह है। आज से नहीं, जब से डॉ. मोहन भागवत सर संघचालक के रूप में सार्वजनिक रूप से बोल रहे हैं, तभी से मुझे उनकी बातों पर संदेह है। मैं अपना संदेह पहले भी कई आलेखों में व्यक्त कर चुका हूँ।

15 सितम्बर 2024 को जयपुर में स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण कार्यक्रम में डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमें अपने राष्ट्र को समर्थ करना है। हमने प्रार्थना में ही कहा है कि यह हिंदू राष्ट्र है क्योंकि हिंदू समाज इसका उत्तरदायी है। इस राष्ट्र का अच्छा होता है तो हिंदू समाज की कीर्ति बढ़ती है।

इस राष्ट्र में कुछ गड़बड़ होता है तो इसका दोष हिंदू समाज पर आता है, क्योंकि वे ही इस देश के कर्ताधर्ता हैं। राष्ट्र को परम वैभव संपन्न और सामर्थ्यवान बनाने का काम पुरुषार्थ के साथ करने की आवश्यकता है और हमें समर्थ बनना है, जिसके लिए पूरे समाज को योग्य बनाना पड़ेगा।’

डॉ. भागवत ने कहा कि जिसे हम हिंदू धर्म कहते हैं यह वास्तव में मानव धर्म है, विश्व धर्म है और सबके कल्याण की कामना लेकर चलता है। हिंदू का अर्थ विश्व का सबसे उदारतम मानव, जो सब कुछ स्वीकार करता है, सबके प्रति सद्भावना रखता है। पराक्रमी पूर्वजों का वंशज है जो विद्या का उपयोग विवाद पैदा करने के लिए नहीं करता, ज्ञान देने के लिए करता है। हिंदू धन का उपयोग मदमस्त होने के लिए नहीं करता, दान के लिए करता है और शक्ति का उपयोग दुर्बलों की रक्षा के लिए करता है। यह जिसका शील है, यह जिसकी संस्कृति है वह हिंदू है। चाहे वह पूजा किसी की भी करता हो, भाषा कोई भी बोलता हो, किसी भी जात-पात में जन्मा हो, किसी भी प्रांत का रहने वाला हो, कोई भी खानपान, रीति रिवाज को मानता हो। ये मूल्य और संस्कृति जिनकी है, वे सब हिंदू हैं।

डॉ. मोहन भागवत की इन बातों से मुझे काई आपत्ति नहीं है। ये सारे विचार स्तुत्य हैं और हिन्दू धर्म का मूल हैं। हिन्दू को ऐसा ही होना चाहिए किंतु इससे आगे क्या……? क्या यह सहिष्णुता हिन्दू धर्म की रक्षा करने में समर्थ है? क्या हिन्दू की उदारता राष्ट्र की सुरक्षा करने में समर्थ है? डॉ. मोहन भागवत की इन बातों में न तो ऐसे प्रश्नों को उठाया जाता है और न उनका समाधान देने का प्रयास किया जाता है।

इसी कारण मुझे लगता है कि मोहन भागवन अपनी बातों को आधी-अधूरी छोड़ देते हैं। सहिष्णु तो खरगोश और हिरण भी हैं वे भी जंगल के किसी प्राणी के दाना-पानी पर अपना अधिकार नहीं जमाते तो क्या हिंसक जंगली जानवर खरगोशों और हिरणों को जीवित छोड़ देते हैं, पलक झपकते ही मारकर खा जाते हैं!

सहिष्णु तो धरती माता भी है जो सबको धारण करती है, सबका पेट पालती है इस पर क्या संसार के समस्त मानव धरती को अपनी माता मानकर उसकी रक्षा करते हैं, पलक झपकते ही इस पर बारूद और एटम बम फोड़कर धरती को दहला देते हैं!

सहिष्णु और उदार तो गंगाजी भी हैं, बिना किसी भेदभाव के लोक-लाभ और परलोक निबाहू के सिद्धांत पर अटल रहती हैं। लोग अपने घरों में गंगाजल रखते हैं तथा मरते समय मुख में गंगाजल लेकर मरते हैं, तो क्या बुरे लोग गंगाजी में मल-मूत्र छोड़ने से बाज आ जाते हैं। मृत पशुओं के शव बहाने से बाज आ जाते हैं!

ऐसे सैंकड़ों-हजारों उदाहरण दिए जा सकते हैं।

हाल ही में बाबा बागेश्वर ने आदि जगत्गुरु शंकराचार्य की तरह पूरे भारत में हिन्दू एकता यात्रा पर निकलने की घोषणा की है। अर्थात् बाबा बागेश्वर को पता है कि हिन्दू धर्म और भारत राष्ट्र की रक्षा के लिए उदारता और सहिष्णुता जैसे सिद्धांत पर्याप्त नहीं हैं। क्योंकि ये सिद्धांत तो हिन्दू धर्म के पास सदियों से हैं, तो फिर हिन्दू पूरी धरती से सिमटता-सिकुड़ता क्यों जा रहा है?

उदारता और सहिष्णुता तो बांगला देश के हिन्दुओं में भी थी, फिर उन्हें क्यों नष्ट किया जा रहा है। इस्कॉन मंदिर आज भी बांगलादेश में गंगाजी की बाढ़ से पीड़ित लोगों को धर्म का भेद किए बिना पूड़ी-सब्जी बांट रहा है किंतु इस्कॉन मंदिर के सामने ही उदार और सहिष्णु हिन्दुओं को गाजर-मूली की तरह मारा जा रहा है!

भगवान राम और सीता के वनगमन के समय का एक प्राचीन आख्यान है जिसमें सीताजी रामजी से कहती हैं कि आपको वन्यपशुओं का आखेट करके हिंसा नहीं करनी चाहिए। अपने धनुष-बाण त्याग देने चाहिए। इसके उत्तर में रामजी कहते हैं कि मैं आपको छोड़ सकता हूँ किंतु मैंने ऋषियों की रक्षा के लिए जो प्रतिज्ञा की है, उसे नहीं छोड़ सकता। ऋषि-मुनियों की रक्षा करने के लिए मुझे अपने शस्त्रों का अभ्यास निरंतर करना पड़ेगा ताकि मैं राक्षसों का संहार कर सकूं।

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कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में कहा था कि अब सनानत को भी सोचना पड़ेगा। सनातन को क्या सोचना पड़ेगा, बिना बताए ही यह बात सब जानते हैं। प्रधानमंत्री मोदी हिन्दू समाज की दुर्दशा से क्यों व्यथित हैं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है।

डॉ. मोहन भागवत ने अपने जयपुर के भाषण में यह भी कहा कि पहले संघ को न कोई नहीं जानता था और न कोई मानता था किंतु अब सब जानते भी हैं और मानते भी हैं। हमारा विरोध करने वाले भी जीभ से तो विरोध करते हैं किंतु मन से तो मानते ही हैं। इसलिए अब हमें हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति और हिंदू समाज का संरक्षण राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए करना है।

बिल्कुल ठीक बात है कि हमें हिन्दू धर्म, समाज एवं संस्कृति की उन्नति राष्ट्र की उन्नति के लिए करनी है किंतु क्या मोहन भागवत की यह बात सही है कि अब विरोधी भी आरएसएस को मन से मान रहे हैं? क्या मान रहे हैं? कौन मान रहे हैं? क्या राहुल गांधी, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और दिग्विजय सिंह जैसे नेता आरएसएस को मान रहे हैं?

यदि विरोधी भी संघ की शक्ति को, सिद्धांतों को, आदर्श को मान रहे हैं तो हिन्दू विरोधी मानसकता से ग्रस्त राजनीतिक पार्टियाँ, सोरोस के द्वारा खरीदे गए लोग आरएसएस पर आए दिन यह आरोप क्यों लगाते हैं कि बीजेपी और आरएसएस समाज को तोड़ने का काम करती हैं। यदि लोग संघ के हाथ में पकड़ी हुई लाठी को मान रहे हैं तो फिर हिंसक एवं विरोधी मानसिकता के लोग रामनवमी की शोभायात्रा से लेकर गणेश पाण्डाल एवं दुर्गापूजा के पाण्डालों पर पत्थर क्यों फैंके रहे हैं?

यदि विरोधी लोग हिन्दुओं की उदारता और सहिष्णुता को मान रहे हैं, तो फिर आए दिन बाजार में बिकने वाली खाद्य वस्तुओं में थूकने, पेशाब करने, गाय का मांस मिलाने जैसे घटनाएं क्यों घट रही हैं?

कुछ माह पहले भारत के एक बड़े प्रतिष्ठित संत, जहाँ तक मुझे स्मरण है श्री अवधेशानंदजी ने यह घोषणा की थी कि यदि हिन्दू धर्म पर संकट आया तो मेरे लाखों नागा साधु आपको देश के बॉर्डर पर मिलेंगे। क्यों मिलेंगे, क्या वे वहाँ शत्रुओं को उदारता और सहिष्णुता का विचार बांटने जाएंगे? या फिर हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने जाएंगे। स्पष्ट है कि राष्ट्र की रक्षा करने के लिए मरने और मारने जाएंगे!

संसार के प्रत्येक प्राणी को चाहे वह पशु हो या मनुष्य, उसे अपना जीवन सुरक्षित बनाने के लिए केवल उदारता और सहिष्णुता नहीं चाहिए, इसकी एक सीमा है। सहिष्णुता और उदारता तभी सफल है जब दूसरे भी आपके इन गुणों में विश्वास रखते हों, जहाँ सिर धड़ से अलग किए जा रहे हों, वहाँ सहिष्णुता और उदारता कब तक किसी प्राणी की रक्षा कर सकते हैं?

रामधारीसिंह दिनकर ने लिखा है- क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो!

यर्जुवेद कहता है- तेजोऽसि तेजो मयि धेहि वीर्यमसि वीर्यं महि धेहि बलमसि बलं मयि धेहि ओजोऽसि ओजो मयि धेहि मन्युरसि मन्यु मयि धेहि सहोऽसि सहो मयि धेहि अस्यो जो मम देहि।

अर्थात् हे परमात्मा! आपमें जो गुण हैं, वे मुझे दें। आपमें तेज है, मुझे तेज दें! आपमें वीरता है मुझे वीरता दें, आपमें बल है मुझे बल दें, आप में ओज है मुझे ओज दें, आप में क्रोध है मुझे क्रोध दें, आप में सहिष्णुता है आप मुझे सहिष्णुता दें। इस प्रकार वेद भी सहिष्णुता के साथ क्रोध की आवश्यकता को स्वीकार करता है। फिर हम केवल उदारता और सहिष्णुता की बात करके अपनी बात अधूरी क्यों छोड़ देते हैं?

प्रकृति के सत्य बड़े कठोर हैं, हिन्दू समाज को उनसे भी परिचित होना चाहिए। गुलाब के ठीक नीचे कांटे लगे रहते हैं। गुलाब सुगंध छोड़ता है और कांटा चुभन देता है। यदि गुलाब की झाड़ी को बरसों-बरस जीवित रहकर फूलों की सुगंध छोड़ते रहना है तो उसे अपनी शाखाओं पर चुभने वाले कांटे भी धारण करने होंगे। कांटा जबर्दस्ती किसी को जाकर नहीं चुभता अपितु उसे चुभता है जो गुलाब तोड़ने के लिए गुलाब की झाड़ी की तरफ हाथ बढ़ाता है।

कोई हिन्दू यह नहीं कह सकता कि हिन्दू को कांटे जैसा कठोर बनना चाहिए किंतु कांटे से ही कांटा निकाला जा सकता है, इसे भी समझना चाहिए। हिन्दू सहिष्णु है इसका अर्थ केवल इतना है कि किसी का गला नहीं उतारना है अपितु अपना गला भी तो बचाना है, उसके लिए भी तो हिन्दू में समझ, शक्ति एवं प्रयास का तत्व मौजूद होना चाहिए!

आज ही अर्थात् 16 सितम्बर 2024 को आदित्यनाथ योगी ने कहा है कि कृष्ण के होठों पर मुरली अच्छी लगती है किंतु उनके हाथों में सुदर्शन चक्र भी चाहिए। डॉ. मोहन भागवत को भी ऐसी बातें हिन्दू जाति को बतानी चाहिए। आखिर वे भी हिन्दू समाज के अग्रणी पुरुष हैं, हिन्दू जाति के संरक्षक हैं!

मेरा डॉ. मोहन भागवत से कोई विरोध नहीं है। वे संसार का सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन चला रहे हैं और बिना किसी भेद-भाव एवं विवाद के चला रहे हैं। इस देश को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की बहुत आवश्यकता है। मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ के सर संघचालक हिन्दुओं का पूरा मार्गदर्शन करें, आधा-अधूरा नहीं। हिन्दू जाति को सहिष्णुता और उदारता के साथ-साथ कम से कम इतना तेज और क्रोध भी धारण करने के लिए कहें जिससे हिन्दू जाति अपनी रक्षा कर सके।

डॉ. मोहन भागवत से अधिक इस बात को कौन जानता होगा कि हिन्दू जाति कितने खतरे में है, हर शहर, हर गांव, हर गली में एक भेड़िया घूम रहा है जो दबे पांव हिन्दू लड़कियों की तरफ बढ़ रहा है। पलक झपकते ही हिन्दू लड़की गायब हो जाती है। मैं जानता हूँ कि आरएसएस की शक्ति क्या है! जिस दिन मोहन भागवत हुंकार भरेंगे, सारी हिन्दू लड़कियां भेड़ियों की पहुंच से दूर हो जाएंगी। भेड़िए दूर तक भी दिखाई नहीं देंगे! प्रश्न केवल इतना सा है कि डॉ. मोहन भागवत ऐसा कब चाहेंगे?

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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