नसरुल्ला का जनाजा कैसे निकलेगा, इस पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं। क्या नसरुल्ला का जनाजा दुनिया को किसी बड़े युद्ध में झौंक देगा, या फिर यह कार्य बिना किसी विघ्न के पूरा हो जाएगा!
हिज्बुल्ला का चीफ नसरुल्ला हजारों मुसलमानों को मरवाकर, लाखों मुसलमानों का अंग-भंग करवाकर तथा लाखों मुसलमानों को बेघर करवाकर चिर निद्रा में सो गया। मृत्यु की देवी ने उसे अपने अंक में शांति दी जहाँ अब वह कयामत होने तक सोता रहेगा।
इस बात से कोई इन्कार नहीं किया जा सकता कि लेबनान तथा बेरुत में जितने भी मुसलमानों का नुक्सान हुआ या उनकी मौत हुई, उनमें से अधिकांश निरीह थे, उनका कोई दोष नहीं था, वे किसी के विरुद्ध नहीं लड़ रहे थे, हमारी तरह सामान्य सी शांत जिंदगी जी रहे थे, अपने बच्चों को पाल रहे थे और उनके लिए सुखद जीवन की तलाश कर रहे थे।
वे इंसान ही थे किंतु हिज्बुल्ला ने उन्हें इंसान नहीं समझा, केवल मुसलमान समझा। हिज्बुल्ला के अनुसार उनमें से प्रत्येक का कर्तव्य था कि वह इजराइल के यहूदी काफिरों के विरुद्ध लड़े तथा लड़ता हुआ कौम के काम आए। हिज्बुल्ला की हरकतों के कारण लेबनान और बेरुत के निरीह लोग बिना लड़े ही कौम के काम आ गए।
यही कारण है कि लेबनान की जनता अब हिज्बुल्ला के आतंकवादी लड़ाकों को सड़कों पर पीट रही है। हिज्बुल्ला लेबनान के लोगों की सहानुभूति खो चुका है।
जब नसरुल्ला की मौत की खबर दुनिया भर में फैली तब यह बात कही गई कि 80 हजार किलो बारूद के नीचे दबकर या बारूद की आग में जलकर नसरुल्ला के शरीर का क्या हुआ, कुछ पता नहीं चला किंतु बाद में खबर आई कि नसरुल्ला का शव मिल गया है।
नसरुल्ला के शव पर एक खंरोच तक नहीं मिली। उसका शरीर पूरी तरह सुरक्षित है। दुनिया भर के लोगों का अनुमान है कि नसरुल्ला की मौत एक सुरक्षित बंकर में पहुंच रही बम धमाकों की आवाज सुनकर हृदयाघात से हुई।
अब नसरुल्ला का शव मिले भी कई दिन बीत चुके हैं किंतु अभी तक उसे कब्र तक नहीं पहुंचाया जा सका है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि हिज्बुल्ला के सभी बड़े कमाण्डरों को इस जनाजे में भाग लेना है जो लेबनान में अलग-अलग बंकरों में छिपे हुए हैं।
साथ ही ईरान के मजहबी नेता अली खामनेई को भी इस जनाजे में भाग लेना है जो इजराइली मिसाइलों के भय से किसी अत्यंत गुप्त स्थान में छिपा हुआ है।
यदि हिज्बुल्ला के बड़े कमाण्डर और अली खामनेई नसरुल्ला के जनाजे में चलेंगे तो इजराइल इसे अपने लिए अच्छा अवसर समझकर इस जनाजे पर मिसाइल देकर मारेगा जिससे इजराइल के सारे बड़े दुश्मन एक साथ ही समाप्त हो जाएंगे।
जनाजे पर मिसाइल मारना नैतिक रूप से गलत है। मानवता की दरकार है कि मरे हुए व्यक्ति से कोई दुश्मनी न रखी जाए किंतु इजराइल इस समय नैतिकता और मानवता की सीमाओं को स्वीकार करके अपने देश के सैनिकों को अनंत काल तक युद्ध की आग में झौंके हुए नहीं रखना चाहेगा।
इसलिए बहुत संभव है कि इजराइल नसरुल्ला के जनाजे पर बम या मिसाइल बरसाए। इस कारण हिज्बुल्ला नसरुल्ला का जनाजा उठाने में असमंजस की स्थिति में है।
पर्याप्त संभव है कि हिज्बुल्ला यूनाइटेड नेशन्स के माध्यम से या किसी और शक्ति के माध्यम से एक दिन के सीज फायर की कोशिश करे ताकि जनाजे पर मिसाइलें नहीं बरसें।
इजराइल ने यूएन के सेक्रेटरी जनरल अंटोनियो गुटेरस से पहले ही कह दिया है कि वह इजराइल की धरती पर पैर न रखे।
कोई नहीं जानता कि जनाजे के लिए की जा रही सीज फायर की कोशिशों का क्या परिणाम निकलेगा किंतु इस संदर्भ में भारत के धर्मशास्त्रों में वर्णित दो घटनाओं का उल्लेख किया जा सकता है।
जिस समय लक्ष्मणजी ने मेघनाद को मारा, उस समय मेघनाद की पत्नी सुलोचना अपने पीहर में थी। मेघनाद की मृत्यु की सूचना पाकर वह लंका आई किंतु लंका के चारों ओर बंदरों की सेना ने घेरा डाल रखा था।
सुलोचना ने बंदरों से प्रार्थना की कि वे मुझे लंका के भीतर जाने दें किंतु बंदरों ने उसे रोक लिया तथा हनुमानजी को सूचना दी। हनुमानजी ने सुलोचना को तत्काल लंका में प्रवेश करने की अनुमति दे दी।
दूसरी घटना रावण की मृत्यु के बाद की है। जैसे ही रावण मारा गया, वैसे ही रामजी ने विभीषणजी को आज्ञा दी कि वे लंका में प्रवेश करके राक्षसराज रावण की अंत्येष्टि करवाएं।
भारत की संस्कृति शत्रु के शव को शत्रु नहीं मानती है किंतु इजराइल की संस्कृति इस स्थिति में क्या करने को कहती है, यह तो समय ही बताएगा!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता