Thursday, November 21, 2024
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बाबर के बेटों की दर्दभरी दास्तान

बाबर के बेटों की दर्दभरी दास्तान शीर्षक से लिखी गई यह पुस्तक बाबर के चार बेटों के परस्पर संघर्ष, लालच, स्वार्थ, घृणा एवं जिजीविषा का इतिहास है।

अत्यंत प्राचीन काल से चीन देश के उत्तरी रेगिस्तिन में तुर्क एवं मंगोल नामक युद्ध-जीवी कबीले रहा करते थे जो पेट भरने के लिए अपना मूल स्थान छोड़कर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जाया करते थे। समय के साथ इन कबीलों ने मध्य-एशिया के ट्रांसऑक्सियाना क्षेत्र में अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए।

मध्य-एशिया में ही तुर्कों एवं मंगोलों में रक्त-मिश्रण की प्रक्रिया चली जिससे तुर्को-मंगोल जाति उत्पन्न हुई। चौदहवीं शताब्दी ईस्वी में इन्हीं तुर्को-मंगोल परिवारों में तैमूर लंग नामक एक क्रूर एवं आतताई योद्धा पैदा हुआ जिसने ई.1369 में समरकंद पर अधिकार कर लिया और मध्य-एशिया में ‘तैमूरी राजवंश’ की स्थापना की। वर्तमान समय में समरकंद ‘उज्बेकिस्तान’ नामक देश में स्थित है।

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ई.1380 से ई.1387 के बीच तैमूर लंग ने खुरासान, सीस्तान, अफगानिस्तान, फारस, अजरबैजान और कुर्दिस्तान के विशाल क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया। ई.1393 में उसने बगदाद तथा समस्त ईराक पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त की। ई.1398-99 में उसने हिन्दुकुश पर्वत पार करके सिंधु नदी से लेकर पंजाब, दिल्ली तथा जम्मू-काश्मीर तक के विशाल भू-भाग में स्थित राज्यों को जीता तथा पंजाब में अपना गवर्नर नियुक्त कर दिया।

ई.1405 में तैमूर लंग की मृत्यु हुई। उस समय उसका राज्य पश्चिम-एशिया से लेकर मध्य-एशिया एवं दक्षिण-एशिया में भारत के पंजाब प्रांत तक फैला था। उसकी गणना संसार के क्रूरतम व्यक्तियों में होती है।

तैमूर लंग के खानदान को मुगल खानदान, चंगेजी खानदान, तैमूरी खानदान, चगताई खानदान तथा कजलबाश आदि नामों से पुकारा जाता था। तैमूर लंग की पांचवी पीढ़ी में बाबर नामक एक बादशाह हुआ जिसकी माता कुतलुग निगार खानम, मंगोल शासक ‘चंगेज खाँ’ की तेरहवीं पीढ़ी की वंशज थी। इस प्रकार बाबर की रगों में तैमूर लंग तथा चंगेज खाँ जैसे क्रूर आतताइयों का रक्त बहता था।

ई.1501 के आसपास उज्बेग योद्धा शैबानी खां ने बाबर को समरकंद से निकाल दिया। इसके बाद बाबर ने अपने जीवन में बहुत कष्ट सहे तथा अफगानिस्तान में अपने लिए एक नवीन राज्य का निर्माण किया किंतु अफगानिस्तान एक निर्धन देश था जो बाबर जैसे महत्वाकांक्षी युवक की आकांक्षाएं पूरी नहीं कर सकता था। इसलिए ई.1526 में बाबर ने भारत पर आक्रमण करके अपने लिए एक और नवीन राज्य की स्थापना की जिसे मुगल सल्तनत के नाम से जाना गया। बाबर इस नवीन राज्य का उपभोग अधिक दिनों तक नहीं कर सका और ई.1530 में मृत्यु को प्राप्त हुआ।

बाबर के कई पुत्र थे जिनमें से अधिकांश पुत्रों की मृत्यु शैशव काल में ही हो गई थी। जिस समय बाबर की मृत्यु हुई, उसके केवल चार पुत्र जीवित थे जिनके नाम मिर्जा हुमायूँ, मिर्जा कामरान, मिर्जा अस्करी तथा मिर्जा हिंदाल थे। बाबर की मृत्यु के समय उसका राज्य बल्ख, बदख्शां, टालिकान, काबुल, कांधार, गजनी, मुल्तान, लाहौर, दिल्ली, आगरा, संभल, चुनार, कालिंजर एवं ग्वालियर आदि तक विस्तृत था।

अपनी मृत्यु से पहले बाबर ने अपने चारों पुत्रों में इस राज्य का बंटवारा किया। बाबर नहीं चाहता था कि उसका राज्य बिखर जाए। इसलिए बाबर ने अपने राज्य को चार भागों में बांटा तथा उन्हें अपने एक-एक पुत्र के अधीन कर दिया किंतु उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र हुमायूं को उन चारों भागों का बादशाह बना दिया।

बाबर ने हुमायूं को अपनी सल्तनत का सर्वेसर्वा तो बनाया किंतु उसे यह जिम्मेदारी भी दी कि चाहे उसके भाई उसके प्रति कितने ही अपराध क्यों न करें, हुमायूं अपने भाइयों को क्षमा करे तथा उन्हें कभी दण्डित न करे। हुमायूं ने जीवन भर अपने पिता की इस आज्ञा का पालन किया किंतु हमायूं के भाई जीवन भर हुमायूं से धोखा करते रहे जिसके कारण हुमायूं का राज्य नष्ट हो गया तथा उसे ईरान भाग जाना पड़ा। हुमायूं के भाई बार-बार हुमायूं के साथ छल एवं कपट करते रहे किंतु हुमायूं उन्हें क्षमा करता रहा। इस कारण हुमायूं का जीवन अत्यंत कष्टमय हो गया।

अंत में हुमायूं को अपने भाइयों के विरुद्ध कठोर कदम उठाने पड़े। अपने भाइयों से छुटकारा पाने के बाद ही हुमायूं अपने खोए हुए राज्य को फिर से प्राप्त कर सका। इस पुस्तक में बाबर तथा उसके बेटों का इतिहास लिखा गया है जिसे ‘बाबर के बेटों की दर्द भरी दास्तान’ शीर्षक से प्रकाशित करवाया जा रहा है।

बाबर के बेटों की दर्दभरी दास्तान पुस्तक का लेखन यूट्यूब चैनल ‘ग्लिम्प्स ऑफ इण्डियन हिस्ट्री बाई डॉ. मोहनलाल गुप्ता’ पर प्रसारित एतिहासिक धारावाहिक ‘बाबर के बेटों की दर्द भरी दास्तान’ के लिए किया गया था। ये कड़ियां आज भी यूट्यूब चैनल पर देखी जा सकती हैं। इस पुस्तक को भारत का इतिहास डॉट कॉम पर निःशुल्क पढ़ा जा सकता है। शुभम्।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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