Saturday, February 22, 2025
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मीना बाजार (135)

हिन्दू कवियों की दृष्टि में जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर गौरवहीन पुरुष और निर्लज्जा नारियों को खरीदने के लिए मीना बाजार लगाने वाला निर्लज्ज ग्राहक था!

जब कुंअर पृथ्वीराज राठौड़ को महाराणा की ओर से समुचित उत्तर मिल गया तो कुंअर पृथ्वीराज राठौड़ बहुत प्रसन्न हुआ और महाराणा की प्रशंसा में उसका उत्साह बढ़ाने के लिये उसने यह गीत लिखकर भेजा-

नर जेथ निमाणा निलजी नारी, अकबर गाहक बट अबट।

चोहटै तिण जायर चीतोड़ो, बेचै किम रजपूत घट।।

रोजायतां तणैं नवरोजै, जेथ मसाणा जणो जण।

हींदू नाथ दिलीचे हाटे, पतो न खरचै खत्रीपण।।

परपंच लाज दीठ नह व्यापण, खोटो लाभ अलाभ खरो।

रज बेचबा न आवै राणो, हाटे मीर हमीर हरो।।

पेखे आपतणा पुरसोतम, रह अणियाल तणैं बळ राण।

खत्र बेचिया अनेक खत्रियां, खत्रवट थिर राखी खुम्माण।।

जासी हाट बात रहसी जग, अकबर ठग जासी एकार।

है राख्यो खत्री ध्रम राणै, सारा ले बरतो संसार।।

अर्थात्-

जहाँ गौरवहीन पुरुष और निर्लज्ज नारियां हैं और जैसा चाहिये वैसा ग्राहक अकबर है, उस बाजार में चित्तौड़ का स्वामी राणा प्रताप रजपूती को कैसे बेचेगा?

 मुसलमानों के नौरोज में प्रत्येक व्यक्ति लुट गया किंतु हिन्दुओं का स्वामी प्रतापसिंह दिल्ली के उस बाजार में अपने क्षात्रत्व को नहीं बेचता।

राणा हम्मीर का वंशधर प्रताप, प्रपंची अकबर की लज्जाजनक दृष्टि को अपने ऊपर नहीं पड़ने देता और पराधीनता के सुख के लाभ को बुरा तथा अलाभ को अच्छा समझकर बादशाही दुकान पर रजपूती बेचने कदापि नहीं आता।

अपने पुरखों के उत्तम कर्त्तव्य देखते हुए महाराणा प्रताप ने भाले के बल से क्षत्रिय धर्म को अचल रक्खा, जबकि अन्य क्षत्रियों ने अपने क्षत्रियत्व को बेच डाला।

अकबर रूपी ठग भी एक दिन इस संसार से चला जायेगा और उसकी यह हाट भी उठ जायेगी परन्तु संसार में यह बात अमर रह जायगी कि क्षत्रियों के धर्म में रहकर उस धर्म को केवल राणा प्रतापसिंह ने ही निभाया।

अब पृथ्वी भर में सबको उचित है कि उस क्षत्रियत्व को अपने बर्ताव में लावें अर्थात् राणा प्रतापसिंह की भांति विपत्ति भोगकर भी पुरुषार्थ से धर्म की रक्षा करें।

इस पद में नौरोज के उत्सव में अपने वाले गौरवहीन पुरुषों, निर्लज्ज नारियों एवं अकबर जैसे ग्राहक का उल्लेख किया गया है। यह बताना समीचीन होगा कि नौरोज का उत्सव ईरानी प्रथा के अनुसार प्रत्येक नये सौर वर्ष के प्रारंभ में 1 फरवरी से 19 दिन तक मनाया जाता था।

मुगल बादशाह भी यह उत्सव बहुत धूमधाम से मनाते थे। अकबर इस दौरान हिन्दू राजाओं की तरह भव्य पोषाक धारण करके एवं ब्राह्मणों से तिलक लगवाकर शामियाने में बैठ जाता था।

इस अवसर पर अकबर के आदेश से मीना बाजार सजाया जाता था जिसमें मुसलमान अमीरों एवं हिन्दू उमरावों की औरतें दुकानें लगाती थीं जिन पर बादशाह तथा उसके हरम की औरतें खरीददारी करती थीं। रात भर नाच-गाना होता था।

कहीं-कहीं लिखा है कि इस बाजार में केवल अकबर तथा मुगल शहजादे ही सामान खरीदने आते थे जबकि कहीं-कहीं यह भी लिखा है कि इस मेले में अकबर ही एकमात्र पुरुष होता था, शेष सब महिलाएं होती थीं।

कुछ लोगों का मानना है कि अकबर देश-विदेश की स्त्रियों से अपनी हवस बुझाता था। उसके हरम में देश-विदेश की पांच हजार औरतें थीं जो उसकी वासना-पूर्ति का खिलौना भर थीं। इन औरतों से भी अकबर को संतुष्टि नहीं होती थी। इसलिए उसने मीना बाजार का चलन आरम्भ किया जहाँ से वह अपनी पसंद की शहजादियों, अमीर जादियों एवं हिन्दू कुमारियों को अपने महल में बुलाता और अपने हरम में डाल लेता था।

विंसेट स्मिथ तथा अबुल फजल आदि ने अकबर के हरम का विस्तार से उल्लेख किया है। पी. एन. ओक ने अकबर के हरम में औरतों की स्थिति पशु-समूह के समान बताई है।

अबुल फजल के हवाले से सर जदुनाथ सरकार ने लिखा है कि जब किसी मुगल अथवा हिन्दू अमीर की पत्नी अथवा पुत्री को अकबर के हरम में प्रवेश करने की इच्छा होती थी तब उसे लिखित में अनुमति मांगनी होती थी और उसे एक महीने तक शहंशाह के हरम में रहकर शहंशाह की सेवा करने के बाद अपने पति अथवा परिवार के पास लौट जाना होता था।

हालांकि मुझे इतिहास की किसी पुस्तक में उल्लेख नहीं मिला किंतु आधुनिक समय में डॉ. विवेक आर्य एवं नसीब सैनी आदि बहुत से लेखक हिन्दू वीरांगना किरण देवी का उल्लेख करते हैं।

उनके अनुसार जब अकबर ने बीकानेर के राजकुमार पृथ्वीराज की रानी किरण देवी को अपनी हवस की शिकार बनाना चाहा तो किरण देवी ने अपनी कटार निकालकर अकबर पर आक्रमण कर दिया। बड़ी कठिनाई से अकबर के प्राण बच सके।

यद्यपि आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव, जवाहर लालनेहरू एवं राहुल सांकृत्यायन आदि आधुनिक लेखकों ने अकबर के मीना बाजार का उल्लेख नहीं किया है तथापि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अकबर द्वारा लगाए जाने वाले मीना बाजार को धिक्कारते हुए लिखा है- 

मैं वीर पुत्र, मेरी जननी के जगती में जौहर अपार।

अकबर के पुत्रों से पूछो, क्या याद उन्हें मीना बाजार?

क्या याद उन्हें चित्तौड़ दुर्ग में जलने वाला आग प्रखर?

जब हाय सहस्रों माताएं, तिल-तिल जलकर हो गईं अमर।

वह बुझने वाली आग नहीं, रग-रग में उसे समाए हूँ।

यदि कभी अचानक फूट पड़े विप्लव लेकर तो क्या विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर से!

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