Saturday, December 21, 2024
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मुताह (159)

मध्य एशियाई मंगोलों की संस्कृति में शरीर की भूख मिटाने के लिए किसी भी औरत से बनाए गए शारीरिक सम्बन्ध को मुताह कहते थे। अकबर ने नियम बनाया कि कितनी ही लौंडियों को मुताह करके बीवी बनाया जा सकता है!

 मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने लिखा है कि आजकल अकबर जिन प्रश्नों को पूछा करता था उनमें पहला यह था कि कितनी स्वतंत्र पैदा औरतों से एक आदमी निकाह कर सकता है? अकबर का दूसरा प्रश्न यह था कि क्या मुताह से की गई शादी वैध है? स्वतंत्र पैदा औरतों से अकबर का आशय ऐसी औरतों से था जो न तो स्वयं किसी की गुलाम थीं और न किसी गुलाम माता-पिता की संतान के रूप में उत्पन्न हुई थीं।

मध्यकाल में अरब के लोगों में गुलाम-दम्पत्तियों की पुत्रियों एवं गुलाम औरतों को पत्नी के रूप में भोगने का चलन था और उसे निकाह की सीमा से बाहर माना जाता था। कुछ लोग ऐसी औरतों से मुताह के माध्यम से शादी कर लेते थे और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में भोगते थे। ‘मुताह’ मध्यएशियाई भाषाओं अर्थात् अरबी, फारसी एवं चगताई आदि किसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है- ‘आनंद’ अथवा ‘मज़ा’। अर्थात् अपनी पत्नी के अलावा किसी अन्य औरत के साथ शारीरिक सम्बन्धों का आनंद उठाने के लिए मुताह किया जाता था।

चूंकि इस्लाम में वेश्यावृत्ति हराम है, किसी औरत का जिस्म बेचने या खरीदने पर पाबंदी है तथा निकाह के अलावा किसी भी तरह के शारीरिक-सम्बन्ध को ‘गुनाह’ अथवा पाप माना जाता है। इसलिए अवैध शारीरिक सम्बन्धों को मुताह का आवरण दिया गया ताकि इसे वेश्यावृत्ति से अलग किया जा सके। मुताह को मिस्यार निकाह भी कहा जाता था।

मुताह एक तरह की कॉन्ट्रैक्ट मैरिज होती थी जिसमें एक निश्चित समय के लिए, मेहर की मोटी रकम तय करके निकाह होता था। इसमें मेहर का भुगतान शादी से पहले किया जाता था। मुताह की अवधि तीन दिन से लेकर कितने ही वक्फे हो सकती थी। एक बार मियाद तय होने के बाद वह बदली नहीं जा सकती थी। मुताह मौखिक एवं लिखित दोनों तरह से तय हो सकता था। यह परम्परा मुख्यतः शिया मुसलमानों में प्रचलित थी जबकि सुन्नी इसका विरोध करते थे।

मुताह के द्वारा जिस औरत से विवाह किया जाता था उसे पवित्र होना, मुस्लिम होना, अहले किताब होना तथा अविवाहित, विधवा अथवा तलाकशुदा होना आवश्यक था। शादीशुदा, व्यभिचार में लिप्त तथा नाबालिग औरतों से मुताह नहीं किया जा सकता था। मुताह करने वाला मर्द किसी भी उम्र का, पहले से शादी-शुदा एवं कुंआरा हो सकता था। मुताह की अवधि समाप्त होते ही वह औरत उस मर्द की बीवी के रूप में नहीं रह सकती थी। हालांकि मुताह की अवधि बीत जाने पर भी मर्द उन औरतों को भोगते रहते थे। मुताह के दौरान उत्पन्न हुए बच्चे नाजायज औलाद माने जाते थे। उन्हें अपने पिता की सम्पत्ति में से कुछ नहीं मिलता था।

ऐसा प्रतीत होता है कि मुताह की परम्परा यतीम एवं बेवा औरतों, गुलाम लौण्डियाओं एवं दूसरे देशों से लूटकर लाई गई औरतों को भोगने के लिए आरम्भ हुई थी। उस काल में मध्यएशियाई कबीलों के बीच हर समय युद्ध चला करते थे जिनमें बड़ी संख्या में लड़ाकों की मृत्यु होती थी। इस कारण कबीलों में बड़ी संख्या में पति-विहीन एवं यतीम औरतें रहती थीं। बहुत से लोग उनसे कुछ समय के लिए विवाह कर लेते थे ताकि उनकी सैक्स सम्बन्धी इच्छाओं को पूरा किया जा सके और उन्हें रोटी-पानी तथा आश्रय दिया जा सके।

जब अरब वालों ने मध्यएशियाई क्षेत्रों पर कब्जा किया तो मुताह की परम्परा अरब से मध्य एशिया में आ गई। जब मध्य एशियाई कबीले हिन्दूकुश पर्वत पार करके भारत में घुस आए तो मुताह की परम्परा उनके साथ भारत आ गई। बहुत से मुस्लिम अमीर एवं धनी लोग मनचाही संख्या में औरतों से मुताह करके उन्हें अपने हरम में रखते थे।

कानूनन स्वयं अकबर की भी चार बीवियां ही हो सकती थीं किंतु अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं। अकबर ने उलेमाओं से पूछा कि मैंने अपनी जवानी के आरम्भ में जितनी चाही, उतनी शादियां कीं, स्वतंत्र पैदा या गुलाम, दोनों तरह की औरतों से। क्या मेरी इन शादियों को वैध घोषित किया जा सकता है?

अकबर के दरबारियों ने इस प्रश्न का उत्तर अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार दिया किंतु अकबर उनके उत्तरों से संतुष्ट नहीं हुआ। अकबर ने अपने दरबारियों से कहा कि अब्दुन्नबी ने एक बार कहा था कि एक मुज्तहिद अर्थात् इस्लामी कानून के व्याख्याकार ने नौ शादियों की अनुमति दी है।

मुल्ला बदायूंनी ने मुंतखब उत तवारीख में लिखा है कि जो लोग कुरान की उदारवादी व्याख्या करना चाहते थे, उन्होंने शहंशाह को बताया कि कोई भी व्यक्ति 18 शादियां कर सकता है। कुछ लोगों ने बादशाह को बताया कि कितनी ही औरतों से निकाह करो, दो और दो, तीन और तीन, चार और चार किंतु यह व्याख्या नकार दी गई।

कुछ लोगों का मानना था कि एक व्यक्ति को उतनी औरतों से शादी करनी चाहिए जितनी औरतों की औलादों का वह भरण-पोषण कर सके। इन लोगों के अनुसार एक आदमी को बीवियों की संख्या सीमित रखकर यतीम लड़कियों अथवा खरीदी हुई लड़कियों पर संतोष करना चाहिए। अर्थात् निकाह कम संख्या में और मुताह अधिक संख्या में करना चाहिए।

इस प्रकार अलग-अलग व्याख्याओं के चलते अकबर यह नहीं समझ पाया कि वह अपनी रियाया के लिए इस सम्बन्ध में क्या आदेश जारी करे! इसलिए अकबर ने अब्दुन्नबी के पास संदेश भिजवाया कि वह स्पष्ट करे कि वह शादी के मामले में कितनी औरतों की बात करता है?

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अब्दुन्नबी ने शहंशाह को जवाब भिजवाया कि मैं तो केवल इतना कहना चाहता था कि एक मुसलमान कितनी शादियां करे, इसके सम्बन्ध में वकीलों की राय अलग-अलग है। बादशाह चाहता था कि अब्दुन्नबी निश्चित संख्या बताए किंतु अब्दुन्नबी ने इस सम्बन्ध में कोई फतवा जारी नहीं किया जिससे बादशाह की शादियां वैध हो जाएं। अब्दुन्नबी के इस जवाब से अकबर बहुत नाराज हुआ।

मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि बहुत विचार-विमर्श एवं इस विषय पर बहुत से पंथों के रिवाज देखकर उलेमाओं ने यह निर्णय पारित किया कि मुताह के माध्यम से एक व्यक्ति चाहे जितनी शादियां कर सकता है। उलेमाओं ने यह भी निर्णय दिया कि मुताह के माध्यम से की गई शादियों को इमाम मलिक द्वारा वैध घोषित किया गया है। एक दरबारी ने अकबर के सामने ‘मुवत्ता’ शीर्षक से लिखी गई एक पुस्तक प्रस्तुत की जिसमें इमाम ने मुताह से की गई शादी को अवैध घोषित किया था।

मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि शिया लोग अपनी निकाह-शुदा बीवियों से उत्पन्न बच्चों की बजाय उन बच्चों से अधिक प्रेम करते हैं जो मुताह वाली बीवियों से पैदा हुए हैं। सुन्नियों में अथवा अहले-जमात में यह स्थिति उलटी है।

अकबर ने अबुल फजल के पिता शेख मुबारक को आदेश दिया कि वह विभिन्न पंथों, मजहबों एवं धर्मों में प्रचलित मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों को एकत्रित करके उन्हें कागज पर लिखकर बादशाह के समक्ष प्रस्तुत करे।

जब शेख मुबारक ने यह कागज तैयार करके अकबर को दे दिया तो अकबर ने एक शाम को अबुल फजल, काजी याकूब, हाजी इब्राहीम तथा मुल्ला बदायूंनी सहित अनेक उलेमाओं को इबादतखाने में बुलाया और उनके समक्ष वह कागज रखा। बादशाह ने उन उलेमाओं से पूछा कि अब वे बताएं कि एक व्यक्ति को कितनी शादियां करनी चाहिए और मुताह से की गई शादी वैध है या अवैध?

सबने अपनी-अपनी राय व्यक्त की। मुल्ला बदायूंनी ने अकबर से कहा कि विभिन्न पंथों एवं मजहबों में इस विषय पर अलग-अलग राय व्यक्त की गई है किंतु इमाम मालिक तथा शिया मत इस बारे में एकमत हैं कि मुताह एक वैध विवाह है। जबकि इमाम शाफीई और बड़े इमाम हनीफाह इसे अवैध मानते हैं।

मुल्ला ने कहा कि मेरा मानना है कि अधिकांश लोगों में यह विश्वास है कि मुताह से की गई शादी वैध है। अतः इसे वैध मानना चाहिए, इमाम और उलेमा इस सम्बन्ध में क्या राय रखते हैं, इसे छोड़ देना चाहिए।

मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि मेरे इस जवाब से अकबर बहुत प्रसन्न हुआ। काजी हुसैन ने भी इस मत को स्वीकार कर लिया तथा मुताह से की गई शादी को वैध घोषित किया। अकबर ने भी इसी मत को स्वीकार कर लिया। ऐसा करने से ही उसकी हजारों औरतें जो अकबर के हरम में रोटी-पानी और आश्रय पाती थीं और अकबर की सैक्स सम्बन्धी भूख मिटाती थीं, वैध कही जा सकती थीं।

बहुत से मुल्लाओं ने अकबर के इस आदेश का विरोध किया किंतु जिन मुल्लाओं, उलेमाओं एवं काजियों ने इस मत का विरोध किया, अकबर ने उन्हें या तो उनके पदों से हटा दिया या फिर उन्हें दिल्ली एवं आगरा जैसे शहरों से दूर स्थानांतरित कर दिया।

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