Thursday, September 19, 2024
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मुसलमानों से अन्याय क्यों किया अकबर ने! (142)

सोलहवीं शताब्दी ईस्वी के मुस्लिम उलेमा एवं मुल्ला-मौलवी तो यह मानते ही थे कि अकबर ने मुसलमानों से अन्याय किया किंतु यह देखकर हैरानी होती है कि बीसवीं सदी के लेखक एवं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी यह मानते थे कि अकबर ने मुसलमानों से अन्याय किया। 

पं. जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है- ‘देखा जाए तो राजपूतों को और अपनी हिंदू प्रजा को मनाने के लिए कभी-कभी तो अकबर इतना आगे बढ़ जाता था कि मुसलमान प्रजा के साथ अक्सर अन्याय हो जाता था।’

नेहरू ने अकबर द्वारा मुसलमानों से अन्याय का कोई उदाहरण नहीं दिया है किंतु इतिहास की पुस्तकें उन उदाहरणों से भरी पड़ी हैं जिनमें अकबर द्वारा अपने ही उन मुस्लिम सेनापतियों के प्रति नृशंसतापूर्वक व्यवहार किया गया जिन्होंने अकबर के विरुद्ध बगावत करने का दुःस्साहस किया। अकबर की तरफ से इस अन्याय की शुरुआत खानखाना बैराम खाँ को उसके पद से हटाने के साथ ही आरम्भ हो गई थी।

अकबर ने अपने चचेरे भाई अबुल कासिम को केवल इस भय से मरवा दिया कि किसी दिन यह शाही-तख्त का दावेदार न बन जाए। अकबर ने अपने धायभाई आदम खाँ को किन्नरों द्वारा छत से गिरवाकर मरवाया। जब आदम खाँ मर गया तब अकबर ने किन्नरों को आदेश दिए कि वे आदम खाँ के शव को महल की छत पर लाएं और उसे फिर से गिराएं। मुगलों के इतिहास में ऐसी नृशंसता का दूसरा उदाहरण उपलब्ध नहीं है।

इतिहासकार पी. एन. ओक ने लिखा है- ‘अकबर के अधिकारियों द्वारा खानेजमां के विद्रोह को दबाने के लिए खानेजमां के विश्वासपात्र मोहम्मद मिरक को वधस्थल पर पांच दिन तक निरंतर यातनाएं दी गईं। प्रत्येक दिन एक लकड़ी के कटघरे में उसकी मुश्कें बांधकर उसे हाथी के सामने लाया जाता था।

हाथी उसे सूंड से पकड़ता, झकझोरता और दूसरी ओर उछाल देता।’ अकबर ने सूरत के घेरे में अपने पिता हुमायूँ के पुराने सेवक हम्जाबान को दण्ड नहीं देने का वचन देकर उसकी जीभ कटवा ली! अकबर के आदेश से अकबर के निकट सम्बन्धी मसूद हुसैन मिर्जा की आंखों को सुई से सीं दिया गया। उसके तीन सौ सहायकों के चेहरों पर गधों, भेड़ों और कुत्तों की खालें चढ़ाकर अकबर के सम्मुख घसीट कर लाया गया था। उनमें से कुछ को अत्यंत घृणित क्रूर कर्मों सहित मारा गया।’

यदि एक बादशाह द्वारा किसी मुसलमान बागी को दण्डित करना मुसलमानों से अन्याय की श्रेणी में आता है तो अकबर पर लगाया गया यह आरोप सही है किंतु इतिहास गवाह है कि किसी बादशाह के लिए बागी का मजहब देखकर उसके लिए दण्ड निर्धारित करना कठिन है।

इतिहासकार स्मिथ ने लिखा है- ‘अकबर को अपने तातारी पूर्वजों से पैतृक रूप में ग्रहीत ऐसी बर्बरताओं की अनुमति देते हुए देखकर अत्यंत घृणावश जी ऊब जाता है।’

सुप्रसिद्ध इतिहासकार पी. एन. ओक ने लिखा है- ‘बंगाल के शासक दाऊद खाँ को परास्त करने के बाद अकबर के सेनापति मुनीर खाँ (मुनीम खाँ अथवा मुनअम खाँ) ने शत्रु सैनिकों के सिर कटवा दिए तथा उन कटे हुए सिरों की ऊँची-ऊँची आठ मीनारें बनवाईं। इनमें से अधिकतर सिर मुसलमान सैनिकों के थे। जब दाऊद खाँ ने प्यास से व्याकुल होकर पानी मांगा तो अकबर के सैनिकों ने दाऊद को जूतियों में भरकर पानी दिया।’

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अकबर ने अहमदाबाद में मिर्जाओं को परास्त करने के बाद 2,000 से अधिक कटे हुए सिरों की मीनार बनवाई थी। इन कटे हुए सिरों में भी अधिकांश सिर मुसलमान सैनिकों के थे और उन मुसलमान सैनिकों के भी थे जो अकबर की तरफ से लड़ते हुए मरे थे। अकबर द्वारा मुस्लिम विद्रोहियों के प्रति की गई सख्ती के और भी बहुत से उदाहरण हैं किंतु केवल इतने उदाहरण पंडित नेहरू की इस बात को सही ठहराने के लिए पर्याप्त हैं कि अकबर के हाथों मुसलमान प्रजा के साथ अक्सर अन्याय हो जाता था।

हालांकि नेहरू ने लिखा है कि अकबर द्वारा राजपूतों को मनाने के लिए ऐसा किया जाता था, किंतु इतिहास में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है जब अकबर ने किसी राजपूत राजा को मनाने के लिए मुसलमानों से अन्याय किया हो!नेहरू ने लिखा है कि अकबर ने खुद अपना विवाह एक ऊंचे राजपूत घराने की लड़की से किया। बाद में उसने अपने पुत्र का विवाह भी एक राजपूत लड़की से किया और उसने ऐसी मिली-जुली शादियों को बढ़ावा दिया।

बहुत से लोग यह प्रश्न भी उठाते हैं कि यदि अकबर धर्म-सहिष्णु था तो उसने एक भी मुगल शहजादी का विवाह किसी हिन्दू राजकुमार के साथ क्यों नहीं किया! सच्चाई तो यह है कि अकबर ने मुगल शहजादियों के विवाह पर भी रोक लगा दी थी। वे किसी से भी विवाह नहीं कर सकती थीं, न मुगल शहजादे से, न तुर्क लड़ाके से और न हिन्दू राजकुमार से।

क्या केवल इसलिए अकबर को महान ठहराया जा सकता है कि उसने कुछ हिंदू राजकुमारियों से विवाह किए तथा हिंदू राजाओं को बड़े-बड़े मनसब देकर उन्हें मुगल सल्तनत की सीमाओं के विस्तार के काम में लगाए रखा! अकबर के खाते में इससे अधिक कुछ भी हासिल-जमा नहीं है। मीना बाजार सजाकर उनमें औरतों का सौदा करने, अपने हरम में देश-विदेश की पांच हजार औरतों को इकट्ठा करने, ईद और नौरोजे के साथ होली एवं दीवाली के त्यौहारों का आनंद उठाने में यदि इतिहासकारों को किसी बादशाह में महानता के लक्षण दिखाई देने लगते हैं, तो फिर किया ही क्या जा सकता है!

अकबर कितना महान् था, इस बात की सच्चाई इस तथ्य से भी मिलती है कि अकबर के पुत्र भी अकबर से नाराज रहते थे। राजकिशोर शर्मा ‘राजे’ ने अपनी पुस्तक हकीकत ए अकबर में लिखा है कि अकबर के पुत्र भी अकबर से प्रसन्न नहीं रहते थे। इतिहास गवाह है कि सलीम जीवन भर अपने पिता अकबर से रुष्ट रहा और समय-समय पर बगावत करता रहा। यहाँ तक कि सलीम ने अपने मन का गुस्सा निकालने के लिए अकबर के नौकरों को इतना पीटा के उनमें से कुछ तो नपुंसक हो गए और कुछ मृत्यु को प्राप्त हुए। सलीम अपने पिता अकबर से इतना नाराज था कि सलीम ने अकबर के मित्र अबुल फजल की हत्या ही करवा दी।

राजकिशोर शर्मा ‘राजे’ ने लिखा है कि जब अकबर का मंझला पुत्र मुराद अहमदनगर पर आक्रमण के दौरान बीमार पड़ा और अकबर ने उसे अपने पास बुलाना चाहा तो वह विभिन्न बहाने करके नहीं आया और वहीं मर गया। इसी तरह अकबर के दूसरे बेटे दानियाल ने भी दक्षिण में बीमार पड़ने पर पिता के बार-बार बुलाने पर उसके पास आना कबूल नहीं किया और वह भी वहीं पर मर गया। अकबर के तीनों बेटे अकबर से इतने नाराज क्यों थे?

यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अकबर द्वारा जाने-अनजाने में इन तीनों के प्रति अन्याय किया जाता था। और यदि यह कहा जाए कि इस स्थिति के लिए अकबर जिम्मेदार नहीं था, अपितु उसके पुत्र जिम्मेदार थे, तो भी अकबर पूरी तरह से मुक्त नहीं हो जाता। नेहरू के अनुसार अकबर इतना महान् था कि उसकी आंखों में आकर्षण था, तो फिर वह अपनी महानता और आंखों के आकर्षण का जादू अपने पुत्रों पर क्यों नहीं चला पाया था?

उपरोक्त उदाहरणों को देखकर यह कहा जा सकता है कि जवाहर लाल नेहरू ने यह सही लिखा है कि अकबर के हाथों प्रायः मुसलमानों से अन्याय हो जाता था किंतु यह अन्याय राजपूतों अथवा हिन्दुओं को खुश करने के लिए नहीं किया जाता था अपितु अपनी अभिलाषाओं की पूर्ति में बाधक बनने वाले मुसलमानों को दण्डित करने के लिए किया जाता था।

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