Saturday, December 21, 2024
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राजा टोडरमल ने अकबर के अधिकारियों को जेलों में सड़ा दिया! (160)

राजा टोडरमल अकबर के जीवन से जुड़ा हुआ एक ऐसा व्यक्ति है जिसकी मिसाल दुनिया में शायद ही कहीं मिल सके।

अकबर ई.1556 में बादशाह बना था और ई.1575 तक उसे शासन करते हुए लगभग 19 वर्ष हो गए थे। अब तक उसकी सल्तनत का पर्याप्त विस्तार हो चुका था और सल्तनत की आय के साथ-साथ सैनिक एवं प्रशासनिक व्यय में भी पर्याप्त वृद्धि हो चुकी थी।

इसलिए अकबर को आय के अतिरिक्त साधन विकसित करने की आवश्यकता अनुभव होने लगी। उसका ध्यान सल्तनत के भू-राजस्व की ओर गया जिसमें प्रतिवर्ष घटत-बढ़त हुआ करती थी।

Teesra-Mughal-Jalaluddin-Muhammad-Akbar
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जब हुमायूँ ने अपने खोये हुए भारतीय साम्राज्य को फिर से प्राप्त किया था, तब उसने अपनी सल्तनत की भूमि को अपने अमीरों तथा सैनिक अफसरों में वेतन के रूप में बाँट दिया था।

अकबर ने भी हुमायूँ की इस व्यवस्था को लागू रखा था। इस कारण शेरशाह द्वारा स्थापित की हुई भूमि-व्यवस्था एवं कर-वसूली व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी। मुगल सल्तनत में राजकीय भूमि तथा जागीर भूमि को एक दूसरे से अलग नहीं किया गया था।

इससे बड़ी गड़बड़ी फैली हुई थी। सल्तनत के विभिन्न हिस्सों में कर-वसूली प्रत्येक वर्ष की पैदावार के आधार पर निर्धारित की जाती थी। इस कारण कर-वसूली में विलम्ब होता था और सल्तनत की वार्षिक आय में घटत-बढ़त हुआ करती थी।

अकाल, टिड्डी एवं सूखे आदि के कारण भी राजस्व आय में कमी होती थी। बैराम खाँ भी इस व्यवस्था में कोई सुधार नहीं कर सका था।

अब तक अकबर की सल्तनत काफी बड़ी हो गई थी तथा अकबर की सेनाएं देश में चारों तरफ युद्ध कर रही थीं जिन्हें वेतन देने के लिए बादशाह को धन की आवश्यकता थी। इसलिए राजस्व-संग्रहण में वृद्धि करना आवश्यक हो गया था। अकबर ने भूमि-कर वसूलने के लिए एक नई विधि जारी की।

मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि बादशाह की तरफ से यह आदेश जारी हुआ कि प्रत्येक परगने का विगत दस वर्ष का विवरण तैयार किया जाए जिसमें लिखा जाए कि प्रत्येक फसल में पैदावार कैसी थी और अन्न का मूल्य क्या था। दस वर्ष का योग लगाकर उसका दशमांश एक वर्ष की आय मानी जाए तथा उस पर भूमिकर निर्धारित किया जाए। जब दस वर्ष पूरे हो जाएं तब फिर से यही गणना की जाए।

यह कार्य राजा टोडरमल एवं उसके सहायक ख्वाजा मनसूर को दिया गया। अकबर को आशा थी कि राजा टोडरमल इस कार्य को फुर्ती से निबटा लेगा किंतु उन्हीं दिनों सूचना मिली कि अकबर की सेना पूर्वी मोर्चों पर मार खा रही है तथा राय पुरुषोत्तमदास को मार दिया गया है।

इसलिए राजा टोडरमल को तत्काल बंगाल के लिए रवाना कर दिया गया और दस-वर्षीय भू-राजस्व-कर का निर्धारण ख्वाजा शाह मनसूर के निर्देशन में ही करवाया जा सका।

भारत के भू-राजस्व-कर प्रशासन में यह प्रयोग पहली बार किया गया था। बाद में जब अठारहवीं शताब्दी ईस्वी में भारत में अंग्रेजों की सत्ता स्थापित हुई तो उन्होंने भी दस वर्षीय रेवून्य सैटलमेंट की व्यवस्था को अपनाया।

दस वर्षीय राजस्व बंदोबस्त में भी काफी कमियां थीं किंतु यह वार्षिक कर-निर्धारण प्रणाली की अपेक्षा तेजी से काम करती थी और केन्द्रीय सरकार को यह ज्ञात होता था कि उसे इस वर्ष कितना कर मिलने वाला है।

मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने मुंतखब उत तवारीख में लिखा है कि ई.1575 में अकबर ने अपनी सल्तनत की समस्त भूमि को नापने के आदेश दिए। उस समय भूमि की नाप रस्सी से की जाती थी जिसके फैलने और सिकुड़ने की सम्भावना रहती थी।

अकबर ने रस्सी के स्थान पर बाँस के टुकड़ों का प्रयोग करवाया जो लोहे के छल्लों से जुड़े रहते थे और जिनके फैलने और सिकुड़ने की संभावना नहीं होती थी।

अकबर के आदेश से सिंचित एवं असिंचित, मैदानी एवं पहाड़ी, रेतीली एवं जंगली और कृषित भूमियों के साथ-साथ नदियों, कुओं एवं कुण्डों की भूमियों को भी नापा गया। वह इकाई जो एक करोड़ टंका के बराबर उत्पादन करती थी, उसे एक अधिकारी के अधीन रखा गया और इस अधिकारी को करोड़ी कहा गया। सम्पूर्ण मुगल सल्तनत में 182 करोड़ी नियुक्त किये गये।

करोड़ी को अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा निश्चित करने, लगान के विभिन्न साधनों का लेखा रखने, प्रत्येक कृषक से कितनी धन राशि मिलती है इसका हिसाब रखने और प्रत्येक प्रकार की फसल का लेखा रखने के निर्देश दिये गये।

प्रत्येक करोड़ी की सहायता के लिए एक अमीन, एक कारकूून और एक पोतदार अर्थात् कोषाध्यक्ष नियुक्त किया गया। करोड़ी के ऊपर परगने के अधिकारी थे और करोड़ी के नीचे गांव के कर्मचारी थे।

अमीन का अर्थ होता है अमानत अर्थात् धरोहर रखने वाला। यह विश्वसनीय कर्मचारी होता था तथा फसल पर लगान निश्चित करता था। करोड़ी लगान वसूल करके पोतदार के पास भेजता था। प्रत्येक परगने में एक कानूनगो होता था। ‘गो’ का अर्थ होता है ‘कहने वाला’।

कानूनगो भूमि सम्बन्धी कानूनों तथा नियमों को जानता था। वह भूमि तथा लगान के ब्यौरे का रजिस्टर रखता था। गाँवों में पटवारी तथा मुकद्दम होते थे। मुकद्दम, कदम शब्द से बना है जिसका अर्थ है आगे चलने वाला या मुखिया।

करोड़ी को अपने क्षेत्र से भू-राजस्व वसूलने की जिम्मेदारी के साथ-साथ यह निर्देश दिए कि वह अपने क्षेत्र में तीन साल की अवधि में समस्त अकृषि भूमि को कृषि भूमि में रूपांतरित करने का प्रयास करे ताकि शाही खजाने के लिए अधिकतम भू-राजस्व जुटाया जा सके।

ई.1580 तक केन्द्रीय सरकार के कार्यालय में समस्त आवश्यक सूचनाएँ एकत्रित कर ली गईं। सुधार का पहला काम यह किया गया कि सरकारों (जिलों) को मिला कर सूबे (प्रान्त) बनाये गये। कुल बारह सूबों का निर्माण किया गया। प्रत्येक सूबे में लगान के मामलों की देखभाल के लिये एक दीवान नियुक्त किया गया जो करोड़ियों द्वारा किए जा रहे कार्य का निरीक्षण करते थे।

मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि करोड़ियों से अपेक्षा की गई थी कि वे अपना काम ईमानदारी से करेंगे तथा खेतों की उपज बढ़ाकर शाही खजाने को मिलने वाले कर में वृद्धि करेंगे किंतु अधिकतर करोड़ी बेईमान, लालची, घूसखोर एवं लुटेरे निकले। उन्होंने किसानों की आय बढ़ाने के कोई उपाय नहीं किए, न ही अनुपजाऊ भूमि को उपजाऊ बनाने के प्रयास किए।

मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि बहुत से करोड़ियों ने किसानों से इतना अधिक कर वसूल किया कि किसानों की पत्नियां एवं बच्चे बिक गए। बहुत से किसानों ने आत्महत्याएं कर लीं तथा बहुत से किसान अपने घरों एवं खेतों को छोड़कर बैठ गए। इससे सल्तनत की आय घट गई तथा खेत खाली पड़े रहने लगे।

इस प्रकार चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल बन गया। जब राजा टोडरमल को इस बात की जानकारी हुई तो उसने बहुत से करोड़ियों को पकड़कर जेलों में बंद करवा दिया तथा उन्हें डण्डा-बेड़ी चढ़ाकर इतना मारा कि बहुतों के प्राण-पंखेरू उड़ गए।

मुल्ला बदायूंनी ने बड़े व्यंग्यपूर्ण ढंग से लिखा है-

‘टोडरमल ने बहुत से बेईमान अधिकारियों को तब तक जेल में रखा जब तक कि वे मर नहीं गए। इस कारण टोडरमल को जल्लादों एवं तलवारों से प्राण लेने वालों की जरूरत ही नहीं पड़ी ….. इन करोड़ियों की हालत जगन्नाथ मंदिर के उन हिंदुओं जैसी हो गई जो स्वयं को किसी मूर्ति के समर्पित कर देते हैं तथा साल भर अच्छा खाते-पीते हैं और साल के अंत में मंदिर में एकत्रित होकर रथ के नीचे आकर जान दे देते हैं। या मूर्ति को अपना शीष चढ़ा देते हैं।’

जब अकबर को अपने बेइमान कर्मचारियों के कारनामों की जानकारी हुई तो उसने अनेक करों को समाप्त कर दिया। अधिकांश लेखकों ने लिखा है कि अकबर ने हिन्दू प्रजा पर से जजिया, जकात तथा तीर्थयात्रा कर को समाप्त कर दिया। प्रजा से वृक्ष-कर, बाजार-कर, गृह-कर तथा ऐसे ही अनेक अन्य करों को भी समाप्त कर दिया। बादशाह ने कोतवालों तथा अमल-गुजारों को आदेश दिया कि वे नियमों का ठीक से पालन करायें और भ्रष्ट कर्मचारियों को कठोर दण्ड दें।

मोरलैण्ड ने लिखा है- ‘यदि उस समय के स्तर से मूल्यांकन किया जाय तो आर्थिक दृष्टिकोण से अकबर का शासन प्रशंसनीय था क्योंकि उसके कोष में सदैव वृद्धि होती गई और जब उसने पंचत्व प्र्राप्त किया तब वह संसार का सर्वाधिक समृद्ध शासक था।’ इस समृद्धि का समस्त श्रेय राजा टोडरमल को जाता है।

मौरलैण्ड की यह परिभाषा सही प्रतीत नहीं होती क्योंकि यदि अकबर संसार का सर्वाधिक समृद्ध शासक था तो इससे जनता की आर्थिक स्थिति बेहतर कैसे मानी जा सकती है। निश्चित ही उस काल में किसान निर्धन था और उस पर अत्याचार हो रहे थे।

बेईमान कर्मचारियों की फौज रातों-रात तैयार नहीं हुई थी अपितु सम्पूर्ण मुगलिया शासन में कर्मचारियों की बेईमानी अनवरत जारी रही थी। अकबर उनमें से बहुत कम बेईमानों को ही दण्डित कर सकता था। कर्मचारियों की बेईमानी एक शाश्वत समस्या है जिससे जनता का जीवन हर समय कष्टों से घिरा हुआ रहता है।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर से!

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