इस आलेख में हम राम कालीन जातियाँ विषय पर प्रकाश डाल रहे हैं। भगवान राम के समय भारत में कितनी जातियाँ निवास करती थीं, इसके सम्बन्ध में किसी ग्रंथ में प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती किंतु विभिन्न प्राचीन ग्रंथों के आधार पर भगवान राम के काल की जातियों का अनुमान लगाया जा सकता है।
आज भारत में निवास करने वाले हिन्दुओं में कई हजार जातियाँ पाई जाती हैं किंतु हिन्दू जाति अत्यंत प्राचीन काल में जातियों में विभक्त नहीं थी। भारत में विभिन्न भागों में निवास करने वाले लोग अपने समुदाय की अलग पहचान रखते थे, उन्हें ही उस काल की जातियां कहा जा सकता है।
इस आलेख में हम राम कालीन जातियाँ विषय पर प्रकाश डाल रहे हैं। भगवान राम के समय भारत में कितनी जातियाँ निवास करती थीं, इसके सम्बन्ध में किसी ग्रंथ में प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती किंतु विभिन्न प्राचीन ग्रंथों के आधार पर भगवान राम के काल की जातियों का अनुमान लगाया जा सकता है।
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उस काल में कम से कम पंद्रह बड़ी जातियाँ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करती थीं।
हिमालय पर्वत पर निवास करने वाली देव जाति सबसे विकसित एवम् शक्तिशाली थी।
देवों के बाद आर्य जाति सबसे विकसित एवम् शक्तिशाली थी। आर्यों को देव जाति की ही संतान माना जाता है।
आर्यों ने मनुष्य के कार्य के आधार पर आर्य जाति को वर्णों में समायोजित किया था।
रामजी के काल में यक्ष, गंधर्व एवम् किन्नर जातियों के भी उल्लेख मिलते हैं जो पहाड़ियों में छिपकर रहती थीं।
ये जातियां भी देवों एवम् मानवों की मित्र थीं। ये देवों की उपजातियां थीं
देव, आर्य, यक्ष, गंधर्व एवम् किन्नर जातियों में परस्पर मित्रता थी।
नाग जाति पूरे देश में फैली हुई थी। उस काल में यह भी एक विकसित जाति थी।
वनों में निवास करने वाली जातियों में वानर, ऋक्ष, गरुड़ एवम् गीध जातियाँ प्रमुख थीं।
भारत के दक्षिण-पूर्व में स्थित समुद्री द्वीपों में निवास करने वाली प्रमुख जाति का नाम रक्ष अथवा राक्षस था। इन्हें असुर, दैत्य एवम् दानव भी कहते थे।
नागों एवम् राक्षसों में मित्रता थी। भगवान राम ने मानवों एवम् वानरों में मित्रता स्थापित की।
इन जातियों के साथ-साथ कोल, किरात, भिल्ल, शबर एवम् निषाद आदि जातियों के उल्लेख भी मिलते हैं। निषाद जाति को केवट भी कहते थे। भगवान राम ने आर्यों एवं निषादों में मित्रता स्थापित करवाई थी।
उस काल में देव एवम् आर्यों को छोड़कर शेष जातीय समुदायों के मुख पूरी तरह विकसित नहीं हुए थे। इस कारण जिस मानव समुदाय की मुखाकृति प्रकृृति के जिस जीव से साम्य रखती थी, उसी प्राणी के नाम पर उस मानव समुदाय का नामकरण हो गया था। यथा गीध, गरुड़, वानर, ऋक्ष आदि।
आज भी भारत में हिमालय से लेकर समुद्र तक तरह-तरह के मुंह वाले मानव देखने को मिलते हैं। यदि निवास स्थल के अनुसार इन जातियों का अवलोकन करें तो हम पाते हैं कि भारत के धुर उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत पर सुर, हिमालय से विंध्याचल तक नर, विंध्याचल से समुद्र तक की भूमि पर वानर और समुद्र में स्थित द्वीपों में असुर जातियां रहती थीं।
इन्हीं सब जातियों को राम कालीन जातियाँ कहा जा सकता है।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता