क्या समलैंगिक अब अपने लिए अलग लिंग की मांग करेंगे? संसार में बहुत से देशों में समलैंगिकता अपराध नहीं है। न कानून उन्हें रोकता है और न समाज।
सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितम्बर 2018 को दिए गए अपने ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है तथा सन् 1860 के कानून का आधा हिस्सा समाप्त कर दिया है।
इसके साथ ही भारतीय कानून की धारा 377 का आधा हिस्सा सदा के लिए इतिहास बनकर रह गया है जिसके अंतर्गत यह प्रावधान था कि समलैंगिक अर्थात् दो स्त्रियां या दो पुरुष परस्पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने पर अपराधी माने जाते थे।
इस कानून का आधा हिस्सा अब भी जीवित है जिसके अंतर्गत न तो किसी बच्चे के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए जा सकते हैं, न किसी जानवर के साथ ऐसा किया जा सकता है और न किसी भी व्यक्ति के साथ जबर्दस्ती की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले से यह तो स्पष्ट हो गया है कि दो स्त्री, दो पुरुष या दो बाईसैक्सुअल व्यक्ति अब बंद कमरे के भीतर कुछ भी करें, कानून और समाज दोनों को उनके कमरे में झांकने का अधिकार नहीं होगा किंतु अब कानून और समाज को कुछ नई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
इनमें से सबसे बड़ी समस्या यह होगी कि क्या दो समलैंगिक व्यक्ति एक दूसरे से विवाह करके दाम्पत्य जीवन जी सकते हैं?
दूसरी बड़ी समस्या यह होगी कि अब समलैंगिक लोग समाज, सरकार और कानून से यह मांग करेंगे कि उन्हें स्त्री, पुरुष या किन्नर से अलग किसी लिंग के रूप में मान्यता दी जाए।
प्रकृति का नियम यह है कि दो विपरीत सैक्स वाले प्राणी समागम के द्वारा संतानोत्पत्ति करते हैं। उनमें से एक नर एवं एक मादा होता है। चूंकि समलैंगिकों में स्थिति इसके विपरीत है तथा कानून ने उन्हें वैधानिकता प्रदान कर दी है इसलिए वे स्वयं को स्त्री या पुरुष कहलवाना पसंद नहीं करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि किसी भी माइनोरिटी कम्यूनिटी पर मैजोरिटी कम्यूनिटी की मान्यताओं, विचारों एवं परम्पराओं को नहीं लादा जा सकता। यदि समलैंगिकों की संख्या कम है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वे गलत हैं या वे गैरकानूनी काम कर रहे हैं।
निकट भविष्य में सुप्रीम कोर्ट की इसी टिप्पणी को आधार बनाकर कुछ लोग जानवरों के साथ भी शारीरिक सम्बन्ध बनाने का अधिकार मांगेंगे।
उनका तर्क भी यही होगा कि भले ही बहुसंख्यक समाज जानवरों से सम्बन्ध बनाने की अनुमति नहीं देता हो, लेकिन समाज में बहुत छोटा ही सही किंतु एक ऐसा वर्ग भी है जो पशुओं से सम्बन्ध बनाना चाहता है।
हो सकता है कि कुछ लोग बच्चों से भी शारीरिक सम्बन्ध बनाने की मांग करें। ऐसीस्थितियों में कानून का रुख क्या होगा, यह तो आने वाला भविष्य ही बताएगा।
संसार में बहुत से देशों में समलैंगिकता अपराध नहीं है। न तो कानून ही उन्हें ऐसा करने से रोकता है और न समाज।
भारत हजारों साल पुरानी मान्यताओं वाला देश है। उसकी सांस्कृतिक जड़ें बहुत पुरानी हैं जिसमें समलैंगिकता को न केवल हेयदृष्टि से देखा जाता है अपितु नैतिकता की दृष्टि से भी बुरा माना जाता रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने देश के इस सांस्कृतिक चिंतन परम्परा को नकारते हुए कहा है कि समय के साथ कानून में बदलाव होना चाहिए।
भारतीय संस्कृति में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को चार पुरुषार्थों के रूप में माना गया है जिसका मोटा-मोटा व्यावहारिक अर्थ यह होता है कि धर्म पूर्वक अर्जित किए गए अर्थ और काम से मोक्ष की प्राप्ति होती है किंतु अब समाज को धर्मपूर्वक काम अर्जित करने के अपने दृष्टिकोण को बदलना होगा।
क्योंकि वैसे भी धर्मनिरपेक्ष समाज में धर्म पूरी तरह निजी एवं व्यक्तिगत मान्यताओं का पुलिंदा है, कानून किसी को धर्म की परिभाषा तय करने का अधिकार नहीं देता।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही अब भारत में सामाजिक मान्यता पर धार्मिक आस्था लादे जाने के दिन पूरी तरह लद गए हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता