शहजादे सलीम को अपने बाप अकबर से इतनी घृणा थी कि वह नीचता भरी हरकतें करने लगा। सलीम की नीचता इस हद तक बढ़ गई कि अकबर ने उसे थप्पड़ मार कर गुसलखाने में बंद कर दिया!
अकबर के तीन पुत्रों में से दो पुत्र मुराद एवं दानियाल अत्यधिक शराब पीने से मर गए और उसके एकमात्र जीवित पुत्र सलीम ने अकबर की हत्या करने का प्रयास किया किंतु जब वह अपने पिता की हत्या करने में सफल नहीं हो सका तो वह अत्यधिक शराब पीने लगा।
शराब के नशे में सलीम की नीचता बढ़ गई। उसने अकबर के मित्रों एवं नजदीकी लोगों को मारना शुरु कर दिया। जब अकबर ने अबुल फजल को इस समस्या पर विचार करने के लिए दक्षिण के मोर्चे से बुलाया तो सलीम ने ओरछा के राजा वीरसिंह बुंदेला से कहकर अबुल फजल की हत्या करवा दी। इससे अकबर को अपार कष्ट हुआ।
एक दिन सलीम ने शराब के नशे में धुत्त होकर अपनी पत्नी शाहबेगम को कोड़ों से इस कदर पीटा कि उसने ग्लानि-वश जहर खा लिया। शाहबेगम का वास्तविक नाम मानबाई था। वह आम्बेर के राजा भारमल की पौत्री, राजा भगवंतदास की पुत्री तथा राजा मानसिंह की बहिन थी। सलीम की नीचता से आम्बेर का राजा मानसिंह सलीम से नाराज हो गया। हालांकि मानसिंह सलीम का सगा मामा था।
कुछ लोगों ने लिखा है कि मानबाई तंत्रिका तंत्र की बीमारी से ग्रस्त थी तथा उसने इस बात से दुखी होकर आत्महत्या की कि मानबाई का भाई मानसिंह तथा मानबाई का पुत्र खुसरो, मानबाई के पति सलीम के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे। संभवतः इस झूठ को उस दौरान प्रचारित किया गया होगा जब सलीम जहांगीर के नाम से बादशाह बनने में सफल हो गया।
वास्तविकता यह थी कि सलीम ने मानबाई की हत्या इसलिए की क्योंकि मानबाई का भाई मानसिंह अकबर का सबसे नजदीकी व्यक्ति था। मानबाई की मौत से राजा मानसिंह जो अब तक सलीम का सबसे बड़ा हितैषी था, सलीम का शत्रु हो गया।
अकबर ने जो तातार गुलाम सलीम के साथ नियुक्त किया था, उसने मानबाई की हत्या का विवरण अकबर को लिखकर भेजा। सलीम को इस बात का पता लग गया और उसने तातार गुलाम की जीवित अवस्था में ही खाल खिंचवा ली। जब एक अन्य नौकर ने सलीम के इस अत्याचार का विरोध किया तो सलीम ने शराब पीकर उसे इतना पीटा कि पिटाई के दौरान ही उसकी मृत्यु हो गयी।
सलीम की नीचता का पार नहीं था। एक दिन सलीम की निगाह अपने पिता अकबर के एक और खास नौकर पर पड़ी। सलीम को उसे देखते ही इतना क्रोध आया कि सलीम ने उसे पीट-पीट कर नपुंसक बना दिया। जब अकबर को ये समाचार मिले तो अकबर ने सलीम के सुधरने की आशा त्याग दी तथा सलीम के सत्रह वर्षीय पुत्र खुसरो पर अपना ध्यान केंद्रित करने का निश्चय किया। खुसरो आमेर नरेश मानसिंह की बहिन मानबाई का पुत्र और खानेआजम मिर्जा कोका का दामाद था। इसलिये खानेआजम मिर्जा कोका तथा राजा मानसिंह भी अकबर की इस योजना में सम्मिलित हो गए तथा खुसरो को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करने और सलीम को दण्डित करने के उपाय करने लगे।
अकबर ने भले ही सलीम को राज्याधिकार से वंचित करने तथा खुसरो को शासन पर स्थापित करने का निर्णय ले लिया किंतु प्रारब्ध ने सलीम और खुसरो के भाग्यों में कुछ और ही लिखा था। अभी खुसरो को शासन पर स्थापित करने की योजना पर विचार चल ही रहा था कि अकबर की माता हमीदा बानू बेगम की मृत्यु हो गयी। इससे खुसरो को अकबर का उत्तराधिकारी घोषित करने की योजना स्थगित हो गई।
सलीम अपनी दादी के मरने का समाचार पाकर मातमपुरसी के लिये आगरा आया और सीधे अपने पिता के दरबार में हाजिर हुआ। अकबर ने दरबार में तो सलीम से कुछ नहीं कहा किंतु जब महल में उसे अकबर के सामने लाया गया तो अकबर ने एक तमाचा सलीम के मुँह पर मारा तथा उसे गुसलखाने में बंद कर दिया। राजा शालिवाहन को सलीम पर निगरानी रखने तथा उसका मानसिक उपचार करने के लिये कहा गया।
सलीम को थप्पड़ मारने तथा गुसलखाने में बंद करने से अकबर को इतना कष्ट पहुंचा कि वह स्वयं बुरी तरह से बीमार पड़ गया। शाही हकीमों ने पूरा जोर लगाया किंतु उन्हें बादशाह की बीमारी पकड़ में नहीं आयी। वे जो भी दवा करते थे, वह अकबर पर विष जैसा कार्य करती थी।
राजा शालिवाहन ने पूरे दस दिन तक सलीम को स्नानागार में बंद रखा तथा इस दौरान उसे शराब की एक बूंद भी पीने को नहीं दी। दस दिन बाद जब राजा शालिवाहन ने सलीम को स्नानागार से बाहर निकाला तो सलीम ने पूरी दुनिया ही बदली हुई पायी।
उसे ज्ञात हुआ कि शहंशाह बुरी तरह बीमार है और अपने महल में अंतिम सांसें गिन रहा है। सलीम को ज्ञात हुआ कि राजा मानसिंह ने फतहपुर सीकरी के चप्पे-चप्पे पर अपने सैनिकों का पहरा लगा रखा है तथा वह शहंशाह की सम्मति से शहजादे खुसरो को बादशाह बनाने की तैयारी कर रहा है।
शहजादे खुसरो का ससुर खानेआजम कोका भी मानसिंह की योजना पर काम कर रहा है। सलीम को अपनी दुनिया अंधकारमय दिखाई देने लगी किंतु तभी उसे रामसिंह कच्छवाहा की सेवाएं प्राप्त हो गईं।
हालांकि रामसिंह भी आम्बेर के कच्छवाहा राजपरिवार से था किंतु वह सलीम का दोस्त था। इसलिए रामसिंह नहीं चाहता था कि सलीम के स्थान पर किसी और शहजादे को बादशाह बनाया जाए।
रामसिंह ने अपने एक सेवक को सलीम के महल में भेजा जो राजा शालिवाहन के सिपाहियों को चकमा देकर सलीम से मिला। उसने सलीम को बताया कि आप हिम्मत नहीं हारें तथा बादशाह बनने का प्रयास करें। रामसिंह कच्छवाहा के सैनिक शहजादे सलीम के लिए मरने-मारने को तैयार खड़े हैं।
सलीम की नीचता ही उसकी ताकत थी। वह जबर्दस्ती अकबर के कक्ष में घुस गया। अकबर को पिछले कुछ दिनों से संग्रहणी रोग हो गया था। हकीमों ने उसे कुछ तेज असर करने वाली दवाएं दी थीं जिनके कारण अकबर को मल के साथ रक्त आने लगा था। शरीर से रक्त निकल जाने के कारण अकबर का शरीर बेहद कमजोर हो गया था। राजा मानसिंह छाया की तरह उसके पलंग से चिपका हुआ खड़ा था।
सलीम ने अपने बीमार पिता के कक्ष में दीवार पर लटक रही हुमायूँ की तलवार उतार ली और उसे अपनी कमर में बांध ली। सलीम को दीवार से तलवार उतारते देखकर राजा मानसिंह ने भी अपनी तलवार खींच ली और चौकन्ना होकर खड़ा हो गया। तलवार उतारने की आवाज से अकबर की आंख खुल गई।
अकबर ने निराश होकर सलीम की तरफ देखा। अकबर समझ गया कि खुसरो को बादशाह बनाना अकबर के वश में नहीं है। यदि अकबर ने ऐसा करने का प्रयास किया तो सलीम एवं खुसरो में सल्तनत के लिए खूनी संघर्ष होगा।
इस संघर्ष में आधे राजपूत राजा सलीम की तरफ तथा आधे राजपूत राजा खुसरो की तरफ से लड़ेंगे। इस कारण अकबर ने जीवन भर युद्ध करके जो सल्तनत खड़ी की है, वह तिनकों के महल की तरह बिखर जाएगी।
अकबर के सिराहने एक चौकी रखी थी जिस पर अकबर की पगड़ी रखी रहती थी। अकबर ने राजा मानसिंह को संकेत किया कि वह पगड़ी उठाकर अकबर को दे। राजा मानसिंह ने अकबर की पगड़ी उठाकर अकबर को दे दी। अकबर ने सलीम को अपने निकट आने का संकेत किया और अपनी पगड़ी सलीम के सिर पर रख दी। जिल्ले इलाही कहलाने वाला अकबर हार गया और उसका शराबी बेटा सलीम जीत गया।