Saturday, April 19, 2025
spot_img

सिवाना दुर्ग पर अकबर ने कब्जा कर लिया (114)

सिवाना दुर्ग थार मरुस्थल में ऊँची पहाड़ी पर स्थित था। इस दुर्ग को चौदहवीं शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में यह जालोर के चौहानों के अधिकार में था। अल्लाऊद्दीन खिलजी ने इसे बहुत मुश्किल से जीता था। जब सोलहवीं शताब्दी ईस्वी में अकबर ने सिवाना दुर्ग पर आक्रमण किया, तब यह दुर्ग जोधपुर के राठौड़ों के अधिकार में था।

ई.1574 में अकबर ने स्वयं पटना के निकट पंचमहल पहुंचकर बंगाल के सुल्तान दाऊद के विरुद्ध सैनिक अभियान का संचालन किया जिसके कारण दाऊद पटना छोड़कर भाग गया।

इस पर अकबर ने खानखाना मुनीम खाँ को पटना का शासक बना दिया तथा स्वयं गूजर खाँ के पीछे भागा जो दाऊद के हाथियों को लेकर निकल गया था।

अकबर ने घोड़े पर बैठकर ही पनपन नदी पार की ओर पटना से छब्बीस कोस दूर गंगा किनारे दरियापुर पहुंचकर रुक गया। अकबर के घुड़वारों ने गूजर खाँ का पीछा किया।

गूजर खाँ हाथियों के विशाल समूह को हांक कर ले जा रहा था, इस कारण वह बहुत धीमे चल पा रहा था। इस भागमभाग में गूजर खाँ के बहुत से हाथी पीछे छूटते जा रहे थे। अकबर के सैनिक इन हाथियों को पकड़कर इकट्ठा कर रहे थे। इस प्रकार गूजर खाँ के चार सौ हाथी अकबर की सेना द्वारा पकड़ लिए गए।

गूजर खाँ जान बचाकर भागने में सफल रहा किंतु इस भागमभाग में जब गूजर खाँ ने बलभूंडी नामक एक छोटी नदी को पार करने का प्रयास किया तो गूजर खाँ के बहुत से सैनिक नदी में डूबकर मर गए। इस दलदली क्षेत्र में अकबर की सेना भी तेजी से घट रही थी।

इसलिए अकबर ने अपने सैनिकों का वेतन तीन से चार गुना बढ़ा दिया ताकि अकबर के सैनिक अकबर की सेना छोड़कर न भाग जाएं।

इसके बाद अकबर ने पटना आकर दाऊद की इमारतों का अवलोकन किया। मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि इन इमारतों में एक खास बात थी कि वे छप्परबंद कहलाते थे। प्रत्येक छप्परबंद इमारत तीस या चालीस हजार रुपए की बनती थी। हालांकि वे सिर्फ लकड़ी से ढके हुए थे।

पटना से अकबर जौनपुर तथा बनारस होता हुआ खानपुर आया जहाँ उसने काजी निजाम बदख्शी सूफी से भेंट की तथा उसे रत्नजड़ित तलवार पट्टा और पांच हजार रुपए नगद ईनाम दिया। अकबर ने काजी निजाम बदख्शी को गाजी खान का खिताब दिया तथा उसे तीन हजार का मनसब भी दिया। इसके बाद अकबर टांडा होता हुआ कन्नौज आ गया।

जब अकबर कन्नौज से आगरा जा रहा था और आगरा केवल तीन कोस दूर रह गया था, तब अचानक अकबर ने मार्ग बदल दिया और वह दिल्ली चला गया। दिल्ली में कुछ दिनों तक विभिन्न दरगाहों के दर्शन करते रहने के बाद अकबर अजमेर चला गया। मार्ग में नारनौल नामक स्थान पर हुसैन कुली खाँ अकबर से आकर मिला जिसने नगरकोट के मंदिर को बुरी तरह से तहस-नहस किया था।

इस समय तक खानखाना मुनीम खाँ और राजा टोडरमल ने दाऊद खाँ के नगाड़े छीनकर अकबर के पास भेज दिए थे। अकबर ने वे नगाड़े ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर भेंट कर दिए। जब गुजरात के शासक खानेआजम को बादशाह के अजमेर आने की सूचना मिली तो वह भी अहमदाबाद से अजमेर आकर अकबर से मिला।

मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी लिखता है कि अजमेर में दरगाह पर कव्वाली एवं कलाम गाने वालों पर अकबर ने दिरहमों एवं दीनारों की बरसात कर दी।

अजमेर में अकबर को सूचना मिली कि जोधपुर का अपदस्थ राव चंद्रसेन सिवाना दुर्ग से निकल कर जोधपुर के आसपास मुगल थानों को उजाड़ रहा है तो अकबर ने कई मुगल एवं हिंदू सेनापतियों को राव चंद्रसेन के विरुद्ध कार्यवाही करने भेजा।

चंद्रसेन को सिवाना दुर्ग छोड़कर जंगलों में चले जाना पड़ा। इस पर अकबर ने शाह कुली खाँ महरम तथा जलाल खाँ कुर्ची को सिवाना दुर्ग पर अभियान करने के लिए भेजा। इनमें से शाह कुली खाँ महरम अकबर का रिश्तेदार था और जलाल खाँ अकबर का खास दोस्त था।

चौदहवीं शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में अल्लाऊद्दीन खिलजी ने थार मरुस्थल के मध्य में स्थित सिवाना का दुर्ग बहुत लम्बी अवधि तक घेरा रखने के बाद जीता था। तब सिवाना दुर्ग में बड़ा जौहर एवं साका हुआ था। उस समय यह किला चौहानों के अधिकार में था।

Teesra Mughal Jalaluddin Muhammad Akbar - www.bharatkaitihas.com
To purchase this book please click on Image.

अकबर के समय में मारवाड़ के राठौड़ इस दुर्ग पर शासन करते थे। वास्तव में सिवाना दुर्ग पर अकबर की सेनाओं का अभियान ई.1572 से चल रहा था, जिस समय अकबर ने गुजरात का अभियान आरम्भ किया था। जिला गजेटियर बाड़मेर में लिखा है कि ई.1572 में अकबर ने बीकानेर नरेश रायसिंह को जोधपुर के अपदस्थ राव चंद्रसेन के विरुद्ध भेजा। शाही सेना में मुगल सेनापति शाह कुली खाँ के साथ-साथ केशवदास मेड़तिया, जगतराय तथा राव रायसिंह आदि अनेक वीर हिन्दू शासक भी थे।

राव चन्द्रसेन के भतीजे कल्ला राठौड़ ने सोजत में अकबर की सेना का मार्ग रोका किंतु अकबर की सेना ने कल्ला राठौड़ को पराजित कर दिया तथा अकबर की सेना सिवाना की ओर बढ़ी। राव चंद्रसेन ने सिवाना का दुर्ग अपने सेनापति राठौड़ पत्ता की देख-रेख में छोड़ दिया तथा स्वयं पहाड़ों में चला गया। जब शाही सेना ने सिवाना दुर्ग पर आक्रमण किया तो दुर्ग में स्थित राठौड़ों ने अकबर की सेना से डटकर मुकाबला किया। चंद्रसेन भी पहाड़ों से निकलकर मुगल सेना पर धावे करने लगा। अंत में ई.1574 में रायसिंह, अकबर के पास अजमेर चला गया और उसने अपनी विफलता स्वीकार कर ली।

इस पर अकबर ने तैय्यब खाँ, सैयद बेग तोखई, सुभान कुली खाँ, तुर्क, खुर्रम, अजमल खाँ, शिवदास, एवं अन्य सेनापतियों के साथ एक बड़ी सेना सिवाना के विरुद्ध भेजी। चन्द्रसेन पुनः पहाड़ियों में चला गया जिससे शाही सेना उसे सम्मुख युद्ध में नहीं उतार सकी।

अकबर ने नाराज होकर अपने सेनापतियों को खरी-खोटी सुनाई तथा अगले वर्ष ई.1575 में जलाल खाँ को सिवाना जाने का आदेश दिया तथा उसके साथ सैयद अहमद, सैयद हमिश, शिमाल खाँ तथा अन्य अमीरों को भेजा।

चंद्रसेन ने इस सेना पर मार्ग में ही धावा करने का निर्णय किया परन्तु शत्रु को उसकी योजना का पता चल गया, इस कारण शत्रु ने चन्द्रसेन पर आकस्मिक आक्रमण कर दिया। चंद्रसेन को भारी क्षति उठानी पड़ी। चंद्रसेन ने अपनी सेना का पुनर्गठन किया तथा एक दिन अचानक शत्रु पर आक्रमण करके मुगल सेना के मुख्य सेनापति जलाल खाँ का वध कर दिया।

इस पर अकबर ने शाहबाज खाँ कम्बू को सिवाना अभियान पर भेजा तथा उसे निर्देश दिए कि सिवाना विजय पर ही ध्यान केन्द्रित किया जाए। मार्ग में उसने दुनाड़ा में राठौड़ों को परास्त किया। एकदम धावा बोलकर सिवाना को जीतने में कठिनाई देखकर उसने रसद रोकने की नीति अपनाई तथा लम्बी घेराबंदी के बाद दुर्ग रक्षकों को विवश करके समर्पण करने पर विवश कर दिया।

इस प्रकार अंततः सिवाना का रेगिस्तानी दुर्ग अकबर के अधिकार में चला गया। इसके पश्चात् यह सारा क्षेत्र मुगलों के नियंत्रण में चला गया। इस प्रकार गंगा किनारे स्थित पटना के किले से लेकर थार रेगिस्तान के सिवाना किले तक अकबर का अधिकार हो गया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर से!

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source