अकबर ने अपनी सल्तनत के उन मुल्ला-मौलवियों एवं उलेमओं के उनके घरों से दूर-दूर स्थानांतरण कर दिए जो अकबर का विरोध कर रहे थे। हाजी इब्राहीम सरहिंदी भी इन्हीं में से एक था जिसे गुजरात भेजा गया था। मुल्ला बदायूनी लिखता है कि हाजी इब्राहीम सरहिंदी ने वहाँ घूस खाकर माफी की जमीनों से काफी सोना एवं खजाना बना लिया। जो लोग हाजी इब्राहीम सरहिंदी को घूस नहीं देते थे, वह उन लोगों की जमीनें जब्त कर लेता था। जब इस मसले को शहंशाह के सामने लाया गया तो इब्राहीम सरहिंदी को शहंशाह के दरबार में तलब किया गया।
इस पर हाजी इब्राहीम सरहिंदी ने सेवानिवृत्ति लेने के लिए अर्जी भिजवा दी। इस पर शहंशाह ने उसे पकड़ कर बुलवाया तथा हकीम आईन-उल-मुल्क को सौंप दिया। अकबर ने हाजी इब्राहीम सरहिंदी को प्रतिदिन शाम के इजलास में बादशाह के समक्ष उपस्थित होने के आदेश दिए। इब्राहीम सरहिंदी ने अकबर को बहुत सी ऐसी बातें बताईं जिन्हें सुनकर अकबर खुश होता।
एक दिन हाजी इब्राहीम सरहिंदी ने अकबर को दीमक खाई हुए एक किताब भेंट की तथा अकबर से कहा कि यह किताब शेख इब्न अराबी ने लिखी थी जो कि अकबर के जन्म से पहले हुआ था। हाजी इब्राहीम सरहिंदी ने अकबर को बताया कि इस किताब में लिखा है कि बादशाह अकबर के बहुत सी बीवियां होंगी तथा बादशाह दाढ़ी मुंडवाया करेगा। इस किताब में अकबर की बहुत सी विशेषताओं को बताया गया था। इन्हें पढ़कर अकबर को बहुत सुखद आश्चर्य हुआ
जब अकबर ने अबुल फजल से इस किताब की जांच करवाई तो ज्ञात हुआ कि यह पुस्तक शेख इब्न अराबी की लिखी हुई नहीं है अपितु मियां मान पानीपत के भतीजे मुल्ला अबुल सईद की लिखी हुई है। हाजी इब्राहीम सरहिंदी ने इस किताब में एक क्षेपक अपनी ओर से जोड़ दिया है जिसमें अकबर के बारे में वे सब बातें लिखी हुई हैं। शेख इब्न अराबी अथवा मुल्ला अबुल सईद द्वारा लिखित मूल पुस्तकों में ये सब बातें नहीं हैं।
इस पर अकबर ने अबुल फजल, हकीम अबूल फतेह तथा हाजी इब्राहीम सरहिंदी को अपने सामने ही इस पुस्तक पर चर्चा करने को कहा। इस चर्चा के दौरान अबुल फजल तथा हाजी इब्राहीम सरहिंदी के बीच जोरदार बहस हुई जिसके कारण अकबर हाजी इब्राहीम सरहिंदी से नाराज हो गया और अकबर ने हाजी इब्राहीम सरहिंदी को रणथंभौर ले जाकर जेल में बंद करने के आदेश दिए। बादशाह के आदेशानुसार हाजी इब्राहीम सरहिंदी को जेल में बंद कर दिया गया जहाँ कुछ दिनों बाद घूसखोर, घमण्डी एवं मिथ्यावादी हाजी इब्राहीम सरहिंदी का निधन हो गया।
मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी ने लिखा है कि एक बार रणथंभौर के किले को तहस-नहस किया गया, उस समय हाजी इब्राहीम सरहिंदी का शव कपड़े की पट्टियों से बंधा था और यह कहानी पता चली कि उसने अपने आप को किले की मीनार से नीचे गिरा लिया था। यह घटना ई.1585-86 में हुई थी।
अकबर ने फतहपुर सीकरी के दुर्ग में कई महल बनवाए थे। इनके बीच में अनूप तालाब नामक एक तालाब भी था। । इसका फर्श तथा दीवारें करौली के लाल पत्थर से बनाई गई थीं। वास्तव में यह किसी हिन्दू राजा द्वारा बनवाया गया एक पुराना जलकुण्ड था। इसका आकार प्राकृतिक तालाबों की तरह बहुत बड़ा नहीं था।
अबुल फजल ने इसकी लम्बाई 20 गज, चौड़ाई बीस गज तथा गहराई 40 गज लिखी है। कहा नहीं जा सकता कि अकबर के शासनकाल में गज का आशय दो फुट से होता था अथवा तीन फुट से। आज भी भारत में दो प्रकार के गज चलते हैं। कुछ प्रांतों में दो फुट का एक गज होता है तथा कुछ प्रांतों में तीन फुट का एक गज होता है।
अबुल फजल ने लिखा है कि शहंशाह ने आदेश दिए कि इस तालाब को सिक्कों से भर दिया जाए तथा लोगों को यह तालाब दिखाया जाए। जब लोग यह देखेंगे कि उनके बादशाह के पास इतना धन है तो वे स्वतः ही कष्टों से मुक्त हो जाएंगे। तब कर्मचारियों ने तालाब को भरना आरम्भ कर दिया। राजा टोडरमल ने अकबर को सूचित किया कि जब तक बादशाह पंजाब से लौटकर आएगा, तक इस तालाब को रुपयों से भर दिया जाएगा। इसके लिए 17 करोड़ रुपयों के सिक्के गिनकर अलग रख दिए गए हैं।
अकबर से मिलने के लिए उसके दरबार में नित्य ही दूर देशों से एवं भारत के विभिन्न प्रांतों से बहुत से लोग आया करते थे। संभवतः अकबर उन्हीं लोगों को यह दिखाना चाहता था कि देखो हिंदुस्तान के बादशाह के पास कितना अधिक धन है। जब बादशाह इतना धनी है तो उसकी प्रजा दुःखी कैसे रह सकती है!
अबुल फजल ने लिखा है कि एक दिन शाही दरबार में ऐसा आदमी आया जिसके कान नहीं थे। न कानों की जगह छेद थे, परंतु वह सब-कुछ सुन सकता था। इस आदमी को देखकर अकबर को बड़ा आश्चर्य हुआ।
अबुल फजल ने लिखा है कि एक बलूची के एक ही स्त्री से 25 बच्चे थे। वह बलूची एक दिन अकबर के दरबार में उपस्थित हुआ तथा उसने अकबर से कहा कि यह स्त्री बहुत भली है किंतु इसके 25 बच्चे हो गए हैं जिनके कारण मेरा जीवन मुश्किल हो गया है तथा यह स्त्री मेरे लिए हराम हो गई है। मेरे दुःखों का कोई इलाज नहीं है।
इस पर अकबर ने उस बलूची को सांत्वना देते हुए कहा कि लोगों ने तुम्हें गलत कहा है कि यह स्त्री तुम्हारे लिए हराम हो गई है। यदि किसी स्त्री के इतने बच्चे हैं तो यह पति-पत्नी के लिए गर्व एवं प्रतिष्ठा की बात है। अधिक बच्चों के लिए इस स्त्री को हराम नहीं मानना चाहिए। यह तुम्हारा पुरुषार्थ है और तुम्हारी औरत की ऊर्वरता है।
अबुल फजल ने इस घटना का इतना ही वर्णन किया है किंतु यह नहीं लिखा है कि अकबर ने उस बलूच की कोई आर्थिक सहायता की या नहीं! जबकि अबुल फजल ने एक अन्य घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि एक दिन एक कव्वाल अकबर के दरबार में आया। उसने केवल दो गजलें बादशाह को सुनाईं। इनमें से एक गजल में कहा गया था कि बहुत सारे देव हैं किंतु वास्तव में वह एक ही देव है। यह गजल अकबर को इतनी अधिक पसंद आई कि अकबर ने उस कव्वाल की झोली रुपयों से पूरी भर दी।
उन्हीं दिनों अकबर को सूचना मिली कि गुजरात की तरफ के कुछ बंदरगाहों पर यूरोपियन लोग हज पर जाने वाले मुसलमानों को तंग करते हैं तथा उनसे जबर्दस्ती कर वसूल करते हैं। ये बंदरगाह गुजरात से लेकर दक्षिणी तट पर नीचे तक फैले हुए थे किंतु हज जाने वाले यात्री गुजरात की तरफ के बंदरगाहों का प्रयोग करते थे जिन पर पुर्तगाली एवं डच लोगों ने कब्जा कर रखा था। अकबर ने इस फिरंगियों के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय किया।