बहरामशाह की हत्या के बाद दिल्ली का तख्त रिक्त हो गया। इसके पहले कि चालीसा मण्डल के अमीर नये सुल्तान का निर्वाचन करते, इज्जूद्दीन किशलू खाँ नामक एक तुर्की अमीर ने स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया। इज्जूद्दीन किशलू खाँ किसी राजवंश में उत्पन्न नहीं हुआ था परन्तु चूंकि उसने इल्तुतमिश की एक पुत्री से विवाह कर लिया था, इसलिये वह स्वयं को तख्त का अधिकारी समझता था।
अन्य तुर्की अमीरों ने इज्जूद्दीन किशलू खाँ को सुल्तान स्वीकार नहीं किया और इल्तुतमिश के पौत्र अल्लाउद्दीन मसूद को तख्त पर बैठा दिया जो कि मरहूम सुल्तान रुकुनुद्दीन फीरोज का पुत्र था। अल्लाउद्दीन मसूद को इस शर्त पर सुल्तान बनाया गया कि वह केवल सुल्तान की उपाधि का उपयोग करेगा, सल्तनत के सारे अधिकार चालीसा मण्डल के अमीरों के पास रहेंगे। इन अमीरों ने अपनी स्थिति को सुदृढ़़ बनाने के लिए समस्त उच्च-पद आपस में बांट लिये। ताकि सुल्तान को स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश होने का अवसर प्राप्त न हो।
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अल्लाउद्दीन मसूद के भाग्य से कुछ समय बाद ही इन स्वार्थी अमीरों में फूट पड़ गई। सुल्तान अल्लाउद्दीन मसूदशाह ने इस परिस्थिति से लाभ उठाया। उसने वर्षों से जेल में सड़ रहे अपने दो चाचाओं नासिरुद्दीन तथा जलालुद्दीन को कारागार से बाहर निकाल दिया। इल्तुतमिश के ये दोनों पुत्र नासिरुद्दीन तथा जलालुद्दीन रुकनुद्दीन फीरोजशाह के समय से ही जेल में बंद थे।
रजिया तथा बहरामशाह ने अपने इन भाइयों को जेल से बाहर निकालने का खतरा मोल नहीं लिया था किंतु अल्लाउद्दीन मसूदशाह ने न केवल उन दोनों को जेल से मुक्त कर दिया अपितु अपने चाचा जलालुद्दीन को कन्नौज की और दूसरे चाचा नासिरुद्दीन को बहराइच की जागीर देकर सुल्तान में निहित शक्ति का प्रदर्शन किया तथा जनता का विश्वास जीतने का प्रयास किया परन्तु ऐसा करके अल्लाउद्दीन मसूदशाह ने अपनी ही कब्र खोद दी।
दूरस्थ प्रांतों के हाकिमों ने इसे मसूदशाह की कमजोरी समझा तथा स्वयं को स्वतंत्र करना आरम्भ कर दिया। पंजाब में रहने वाले खोखर भी सल्तनत के विरुद्ध सक्रिय हो गए। कटेहर तथा बिहार में राजपूतों ने विद्रोह के झण्डे खड़े कर दिए। ई.1243 में जाजनगर के राय ने बंगाल पर आक्रमण कर दिया तथा सुल्तान उसके विरुद्ध कोई सेना नहीं भेज सका।
ई.1245 में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण कर दिया। अल्लाउद्दीन मसूदशाह इस मुसीबत की ओर से आँख नहीं मूंद सकता था। इसलिए उसे सेना लेकर मंगोलों से युद्ध करने के लिए जाना पड़ा। इस सेना ने मंगोलों को भारत से मार भगाया।
इस विजय के बाद मसूदशाह के आत्मविश्वास में अचानक ही बहुत वृद्धि हो गई। उसके स्वभाव में भी बड़ा परिवर्तन आ गया। अब वह विजयी, विलासी तथा क्रूर हो गया। उसने षड़यंत्रकारी अमीरों की हत्या करानी आरम्भ कर दी। इससे अमीरों तथा मल्लिकों में बड़ा असंतोष फैला और उन्होंने सुल्तान के चाचा नासिरुद्दीन को सुल्तान बनने के लिये आमन्त्रित किया।
नासिरुद्दीन चूंकि इल्तुतमिश का पुत्र था, इसलिए वह सल्तनत पर अपना अधिकार अपने भतीजे अल्लाउद्दीन मसूदशाह की अपेक्षा अधिक समझता था। इसलिए नासिरुद्दीन ने अमीरों का निमन्त्रण स्वीकार कर लिया। वह बहराइच से दिल्ली आया तथा औरत का वेश धरकर चोरी से दिल्ली में प्रविष्ट हुआ।
कृतघ्न नासिरुद्दीन ने 10 जून 1246 को अपने भतीजे मसूदशाह की हत्या कर दी। सुल्तान की हत्या करते समय नासिरुद्दीन ने मसूदशाह द्वारा अपने ऊपर किए गए उपकारों का भी ध्यान नहीं रखा। मसूदशाह ने ही अमीरों के विरोध के बावजूद नासिरुद्दीन को जेल से निकालकर बहराइच का गवर्नर बनाया था। यदि मसूदशाह चाहता तो सुल्तान बनते ही नासिरुद्दीन की हत्या करके अपने भविष्य को सुरक्षित कर सकता था किंतु मसूदशाह ने नासिरुद्दीन को अपने परिवार का सदस्य जानकर उसके प्राण नहीं लिए थे अपितु उसे मुक्त करके बहराइच की जागीर प्रदान की थी।
इल्तुतमिश के बेटों ने अपने उपकार का बदला कृतघ्नता से ही देना सीखा था। स्वयं इल्तुतमिश भी इस बात को अच्छी तरह जानता था, इसलिए तो इल्तुतमिश ने अपने बहुत सारे बेटों में से किसी को भी सुल्तान न बनाकर अपनी बेटी रजिया को अपनी उत्तराधिकारी नियुक्त किया था किंतु रजिया को मारकर इल्तुतमिश के पुत्र बारी-बारी से सुल्तान के तख्त की ओर उसी प्रकार खिंचे चले आ रहे थे जिस प्रकार पतंगे चिराग की रौशनी की तरफ आकर्षित होकर आते हैं और उसी की लौ में जलकर भस्म हो जाते हैं।
नए सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद का जन्म ई.1228 में हुआ था। वह इल्तुतमिश का पुत्र था। उसका बचपन कारागार में व्यतीत हुआ था। दिल्ली की जनता जानती थी कि नासिरुद्दीन महमूद ने अपने भतीजे एवं पूर्ववर्ती सुल्तान मसूदशाह की धोखे से हत्या करके दिल्ली का तख्त हथियाया है फिर भी जनवरी 1247 में प्रजा ने भी उसे सार्वजनिक दरबार में अपना सुल्तान स्वीकार कर लिया।
मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने नासिरुद्दीन के चरित्र की मुक्त-कण्ठ से प्रशंसा की है। उनके अनुसार नासिरुद्दीन बड़ा ही उदार तथा सरल स्वभाव का सुल्तान था। वह अत्यन्त सादा जीवन व्यतीत करता था और कुरान की आयतें लिखकर अपनी जीविका चलाता था। उसके एक ही बेगम थी और कोई दासी नहीं थी।
मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकार नासिरुद्दीन की कितनी भी प्रशंसा क्यों न करें किंतु यह बात सत्य प्रतीत नहीं होती कि वह एक अच्छा इंसान था। उसने तो औरतों का बुरका पहनकर छल से दिल्ली में प्रवेश किया था तथा अपने ऊपर उपकार करने वाले अपने ही भतीजे की हत्या की थी। ऐसा आदमी अच्छा कैसे हो सकता है!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता