ग्वालियर विजय के बाद इल्तुतमिश स्वयं तो दिल्ली चला गया तथा उसने अपने सेनापति मलिक नुसरतुद्दीन तायसी को कालिंजर पर आक्रमण करने के लिए भेजा। इस समय चंदेल राजा त्रैलोक्यवर्मन कालिंजर का स्वामी था। पाठकों को स्मरण होगा कि ई.1205 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर जीतकर पहली बार उसे मुसलमानों के अधीन किया था किंतु कुछ ही समय बाद चंदेल राजा परमार्दिदेव के पुत्र त्रैलोक्यवर्मन ने मुसलमानों को कालिंजर से मार भगाया था तथा पुनः चंदेल राजपूतों के अधीन कर लिया था।
राजा त्रैलोक्यवर्मन इतना वीर था कि उसने मुसलमानों से न केवल कालिंजर छीन लिया था अपितु अजयगढ़, झांसी, सांगौर, बिजवार, पन्ना और छत्तरपुर भी छीन लिए थे। इसलिए इल्तुतमिश को लगता था कि कालिंजर अभियान बहुत कठिन होने वाला है तथा वहाँ से अपयश मिलने की भी पूरी संभावना है। अतः उसने कालिंजर अभियान स्वयं न करके अपने सेनापति मलिक नुसरतुद्दीन तायसी को कालिंजर पर आक्रमण करने के लिए भेजा।
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जिस समय मलिक नुसरतुद्दीन तायसी अपनी विशाल सेना के साथ कालिंजर पहुंचा, उस समय राजा त्रैलोक्यवर्मन कालिंजर के दुर्ग में ही था तथा उसके पास बहुत कम सेना थी। इसलिए त्रैलोक्यवर्मन कालिंजर से निकलकर अजयगढ़ दुर्ग में चला गया। मलिक नुसरतुद्दीन तायसी ने कालिंजर दुर्ग पर अधिकार कर लिया तथा आसपास के क्षेत्र को लूटकर बहुत सा धन प्राप्त किया। इसके बाद वह अजयगढ़ की ओर बढ़ा। इस स्थान पर राजा त्रैलोक्यवर्मन ने मलिक नुसरतुद्दीन तायसी का सामना किया किंतु राजा त्रैलोक्यवर्मन परास्त हो गया तथा उसे अजयगढ़ का दुर्ग भी खाली करना पड़ा।
इसके बाद मलिक नुसरतुद्दीन तायसी ने जमू का दुर्ग भी अपने अधिकार में कर लिया। पाठकों को बताना समीचीन होगा कि यह जमू, जम्मू-कश्मीर वाले जम्मू से अलग था।
जब मलिक नुसरतुद्दीन तायसी चंदेल राज्य से बटोरी गई सम्पत्ति लेकर दिल्ली जा रहा था तब मार्ग में नरवर के राजा चाहड़देव ने तायसी का मार्ग रोका। राजा चाहड़देव जज्वपेल वंश का राजा था। उसने ग्वालियर के प्रतिहार राजा नरवर्मन से नरवर का दुर्ग छीना था। स्वयं मलिक नुसरतुद्दीन तायसी ने राजा चाहड़देव द्वारा मुस्लिम सेना का मार्ग रोके जाने की घटना के बारे में लिखा है- ‘उस दिन उस हिन्दू ने मेरे ऊपर इस प्रकार आक्रमण किया जैसे भेड़िया भेड़ों के समूह पर आक्रमण करता है।’
चाहड़देव के इस आकस्मिक एवं विद्युत गति से आक्रमण के फलस्वरूप मलिक तायसी को सेना सहित जान बचाकर भागना पड़ा। उसका खजाना चाहड़देव ने घेर लिया। इस पर मलिक नुसरतुद्दीन तायसी ने अपनी सेना के तीन भाग किए तथा चाहड़देव की सेना पर तीन ओर से एक साथ आक्रमण किए। चाहड़देव तायसी के जाल में फंस गया तथा दोनों पक्षों में भयानक युद्ध हुआ जिसमें दोनों ओर के सैनिक बड़ी संख्या में मौत के घाट उतार दिए गए। मलिक नुसरतुद्दीन तायसी अपने खजाने को लेकर किसी तरह ग्वालियर के दुर्ग में पहुंच गया। राजा चाहड़देव भी अपनी राजधानी नरवर लौट गया।
मलिक नुसरतुद्दीन तायसी के वापस चले जाने के पांच साल बाद राजा त्रैलोक्यवर्मन ने पुनः कालिंजर दुर्ग पर आक्रमण किया तथा न केवल कालिंजर, अपितु अजयगढ़ तथा महोबा भी मुसलमानों से छीन लिए।
ई.1234 में इल्तुतमिश ने मालवा पर आक्रमण किया जहाँ परमारवंशी राजा देवपाल का शासन था। मुस्लिम स्रोतों के अनुसार सुल्तान की सेना ने भिलसा के दुर्ग पर अधिकार कर लिया तथा भिलसा के 300 वर्ष पुराने देवालय को नष्ट कर दिया। इसके बाद इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण किया तथा महाकाल मंदिर को तोड़कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। जिन लोगों ने सुल्तान की सेना का प्रतिरोध किया, उन्हें मार दिया गया। इल्तुतमिश को उज्जैन नगर से सम्राट विक्रमादित्य की एक प्रतिमा तथा महाकाल का शिवलिंग प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त सात अन्य प्रमुख मूर्तियां भी सुल्तान के हाथ लगीं। इल्तुतमिश इन सभी मूर्तियों को अपने साथ दिल्ली ले गया तथा उनके टुकड़े करवाकर अपने महल की सीढ़ियों में चुनवा दिया।
जिस समय इल्तुतमिश ने मालवा पर अभियान किया, उस समय राजा देवपाल दूर हट गया था और जब इल्तुतमिश वापस चला गया तो उसने फिर से मालवा के उन क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया जो इल्तुतमिश ने अपने अधिकार में ले लिए थे। राजा जयसिंह के मान्धाता अभिलेख में लिखा है- ‘भिल्लस्वामिन नगर के समीप एक युद्ध में देवपाल ने म्लेच्छों के अधिपति को मार डाला।’ इस शिलालेख का तात्पर्य यह है कि राजा देवपाल ने इल्तुतमिश द्वारा भिलसा नगर में नियुक्त गवर्नर को मार डाला।
इल्तुतमिश के काल में यदुवंशी राजकुमारों ने तिहुनगढ़ और बयाना, चौहानों ने अजमेर तथा मेनाल, गाहड़वालों ने कन्नौज एवं बनारस, राष्ट्रकूटों ने बदायूं और कटेहरिया राजपूतों ने रूहेलखण्ड पर फिर से अधिकार कर लिए।
इल्तुतमिश ने इन सभी स्थानों पर सेनाएं भेजकर हिन्दू सरदारों एवं राजाओं का दमन किया तथा इन क्षेत्रों को फिर से दिल्ली सल्तनत के अधीन किया। इनका परिणाम यह हुआ कि कन्नौज अंतिम रूप से मुसलमानों के अधीन हो गया तथा बदायूं के राष्ट्रकूटों को अपना वंशानुगत क्षेत्र छोड़कर राजस्थान के रेगिस्तान में आना पड़ा। कटेहरिया राजपूत अब भी अपनी आजादी की लड़ाई लड़ते रहे। बूंदी के हाड़ा चौहानों ने स्वयं को स्वतंत्र कर लिया। इस पर अजमेर के गवर्नर नासिरुद्दीन एतिमुर बहाई ने बूंदी पर आक्रमण किया। बूंदी के चौहानों ने नासिरुद्दीन एतिमुर बहाई को मार डाला।
इल्तुतमिश को दक्षिण बिहार में तिरहुत तथा उड़ीसा के गंग राज्य पर भी सैनिक अभियान करने पड़े किंतु वहाँ के हिन्दू राजाओं ने इल्तुतमिश को बिना किसी सफलता के ही भाग जाने पर विवश कर दिया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता