जिस कुतुबुद्दीन ऐबक ने उत्तरी भारत में हिंसा, विध्वंस एवं विनाश का ताण्डव किया, उसे निजामी एवं हबीबुल्ला जैसे मुस्लिम इतिहासकारों ने महान् सुल्तान बताकर उसका गुणगान किया। अल्लाउद्दीन नामक एक लेखक ने अपनी पुस्तक ‘तारीख-ए-जहान गुशा’ में लिखा है कि कुतुबुद्दीन ऐबक के कोई पुत्र नहीं था। मिनहाज उस् सिराज ने लिखा है कि कुतुबुद्दीन ऐबक के तीन पुत्रियां थीं। इनमें से बड़ी पुत्री का विवाह मुल्तान के शासक कुबाचा के साथ हुआ था।
जब इस बड़ी पुत्री की मृत्यु हो गई तो कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी दूसरी पुत्री का विवाह भी कुबाचा से कर दिया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी तीसरी पुत्री का विवाह इल्तुतमिश नामक एक गुलाम के साथ किया जो ऐबक की सेना में उच्च पद पा गया था।
कुछ लेखकों के अनुसार कुतुबुद्दीन के एक पुत्र था जिसका नाम आरामशाह था। वह लाहौर का सूबेदार था। ई.1210 में कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद, लाहौर के तुर्क सरदारों ने कुतुबुद्दीन ऐबक के पुत्र आरामशाह को भारत का सुल्तान घोषित कर दिया किंतु दिल्ली के अमीर नहीं चाहते थे कि लाहौर के अमीरों की पसंद का व्यक्ति दिल्ली का सुल्तान बने क्योंकि इससे साम्राज्य में अधिकांश उच्च पद तथा सम्मानित स्थान लाहौर के अमीरों को ही प्राप्त हो जाते तथा दिल्ली के अमीर उपेक्षित हो जाते।
अतः दिल्ली के अमीरों ने आरामशाह को गद्दी से हटाने के प्रयत्न आरम्भ किए। उन्होंने ऐबक के दामाद और बदायूं के गवर्नर इल्तुतमिश को दिल्ली के तख्त पर बैठने के लिए आमन्त्रित किया। आरामशाह को हटाकर इल्तुतमिश को सुल्तान बनाने के लिए आमंत्रित करने से ऐसा लगता है कि आरामशाह कुतुबुद्दीन ऐबक का पुत्र नहीं था।
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दिल्ली के अमीरों का निमंत्रण पाकर इल्तुतमिश ने अपनी सेना के साथ बदायूँ से दिल्ली की ओर कूच कर दिया। आरामशाह भी लाहौर से दिल्ली की ओर चला परन्तु दिल्ली के अमीरों ने आरामशाह का स्वागत नहीं किया। इस पर दिल्ली नगर के बाहर आरामशाह तथा इल्तुतमिश की सेनाओं में मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में आरामशाह पराजित हुआ और बंदी बना लिया गया।
दिल्ली के अमीरों ने इल्तुतमिश को दिल्ली का नया सुल्तान घोषित कर दिया। इस प्रकार ई.1211 में इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान बन गया। ऐबक वंश का अन्त हो गया और उसके स्थान पर इल्बरी तुर्कों के शम्सी वंश का राज्य स्थापित हो गया।
इल्तुतमिश का पिता आलम खाँ तुर्कों के इल्बरी कबीले का प्रधान व्यक्ति था। इल्तुतमिश बाल्यकाल से प्रतिभाशाली तथा रूपवान था। इस कारण उसे अपने पिता की विशेष कृपा तथा वात्सल्य प्राप्त था। इससे अन्य भाइयों तथा सम्बन्धियों को इल्तुतमिश से बड़ी ईर्ष्या होती थी। वे लोग बालक इल्तुतमिश को घर से बहकाकर ले गये और बुखारा जाने वाले घोड़ों के एक सौदागर के हाथों बेच दिया। घोड़ों के सौदागर ने बालक इल्तुतमिश को बुखारा के मुख्य काजी के एक सम्बन्धी को बेच दिया।
इसके बाद इल्तुतमिश दो बार और बेचा गया। अन्त में जमालुद्दीन नामक एक सौदागर इल्तुतमिश को गजनी ले गया। गजनी के सुल्तान मुहम्मद गौरी के एक अनुचर की दृष्टि इल्तुतमिश पर पड़ी। उसने सुल्तान से इल्तुतमिश की प्रशंसा की परन्तु मूल्य का निर्णय न होने से उस समय इल्तुतमिश खरीदा नहीं जा सका। इस पर इल्तुतमिश को बेचने के लिए भारत लाया गया। कुछ दिनों के उपरान्त कुतुबुद्दीन ऐबक ने इल्तुतमिश को दिल्ली में खरीद लिया। इस प्रकार इल्तुतमिश मुहम्मद गौरी के गुलाम का गुलाम था।
ई.1205 में जब मुहम्मद गौरी ने पंजाब में खोखरों के विरुद्ध अभियान किया तो उसमें इल्तुतमिश ने असाधारण पराक्रम का परिचय दिया। इससे प्रसन्न होकर मुहम्मद गौरी ने कुतुबुद्दीन को आदेश दिया कि वह इल्तुतमिश को गुलामी से मुक्त कर दे तथा उसके साथ अच्छा व्यवहार करे। इसके बाद ऐबक इल्तुतमिश के साथ सौम्य व्यवहार करने लगा तथा उसे सदैव अपने साथ रखने लगा।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इल्तुतमिश को ‘सर जानदार’ के पद पर नियुक्त किया और बाद में ‘अमीरे शिकार’ बना दिया। जब ग्वालियर पर कुतुबुद्दीन का अधिकार स्थापित हो गया तब इल्तुतमिश को वहाँ का अमीर नियुक्त किया गया। कुतुबुद्दीन ने अपनी एक पुत्री कुतुब बेगम का विवाह इल्तुतमिश के साथ कर दिया तथा जब कुतुबुद्दीन सुल्तान बना तो उसने इल्तुतमिश को बदायूँ का गवर्नर नियुक्त कर दिया।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के समय इल्तुतमिश बदायूं का गवर्नर था। जिस समय लाहौर के अमीरों ने आरामशाह को ऐबक का उत्तराधिकारी घोषित किया, उस समय दिल्ली का सेनापति अली इस्माइल, दिल्ली के मुख्य काजी के पद पर भी कार्य कर रहा था। उसने कुछ अमीरों को अपने साथ मिलाकर, इल्तुतमिश को सुल्तान बनने के लिये दिल्ली आमंत्रित किया।
इससे इल्तुतमिश को दिल्ली की सेना एवं अमीरों का विश्वास प्राप्त हो गया। इल्तुतमिश ने पहले भी कई अवसरों पर अपने रण-कौशल का परिचय दिया था इसलिये सेना तथा अमीर उसकी नेतृत्व-प्रतिभा से परिचित थे।
आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने लिखा है कि जब उच के शासक नासिरुद्दीन कुबाचा को आरामशाह तथा इल्तुतमिश के संघर्ष की जानकारी मिली तो उसने स्वयं को उच तथा मुल्तान का स्वतंत्र सुल्तान घोषित कर दिया। अवसर देखकर बंगाल के शासक अलीमर्दान ने भी स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इस प्रकार कुछ समय के लिए दिल्ली सल्तनत चार स्वतंत्र राज्यों में विभक्त हो गई। इनमें से पहला राज्य उच तथा मुल्तान था जिसका सुल्तान कुबाचा था। दूसरा राज्य लाहौर तथा दिल्ली था जिसका सुल्तान आरामशाह था, तीसरा राज्य बदायूं था जिसका सुल्तान इल्तुतमिश था और चौथा राज्य बिहार एवं बंगाल था जिसका सुल्तान अलीमर्दान था। यह स्थिति लगभग आठ माह तक रही।
दिल्ली की सेना का प्रिय तथा विश्वासपात्र बन जाने से इल्तुतमिश की स्थिति सुदृढ़़ हो गई। इल्तुतमिश ने दिल्ली के बाहर ही आरामशाह का मुकाबला किया तथा उसे परास्त करके दिल्ली के तख्त पर बैठ गया। इस प्रकार अपनी योग्यता एवं भाग्य के बल पर इल्तुतमिश गुलाम से सुल्तान बन गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता