ई.1206 में मुहम्मद गौरी की हत्या हो गई। मुहम्मद गौरी निःसंतान था, इसलिए उसके गुलामों एवं उसके रक्त सम्बन्धियों में उसके साम्राज्य पर अधिकार करने को लेकर झगड़ा हुआ। अंत में उसके गुलाम ताजुद्दीन यल्दूज ने गजनी पर तथा दिल्ली के गवर्नर कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारतीय क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार दिल्ली में पहली बार मुस्लिम सत्ता की स्थापना हुई। उसके दिल्ली का सुल्तान बनने के समय भारत में दिल्ली, अजमेर तथा लाहौर प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे। ये तीनों ही मुहम्मद गौरी और उसके गवर्नरों के अधीन जा चुके थे। इनके साथ ही हांसी, सिरसा, समाना, कोहराम, कन्नौज, बनारस तक के क्षेत्र भी नई सल्तनत के अधीन थे।
नई सल्तनत द्वारा देश में इस्लामी राज्य स्थापित हो जाने की घोषणा के साथ ही उत्तर भारत के सैंकड़ों मन्दिर एवम् पाठशालाएं ध्वस्त करके अग्नि को समर्पित कर दी गईं। हजारों-लाखों हिन्दू मौत के घाट उतार दिए गए तथा हजारों हिन्दू स्त्रियों का सतीत्व भंग किया गया।
हिन्दू राजाओं का मनोबल टूट गया तथा जैन एवं बौद्ध साधु उत्तरी भारत छोड़कर नेपाल तथा तिब्बत आदि देशों को भाग गए। देश की अपार सम्पत्ति म्लेच्छों के हाथ लगी। उन्हांेने पूरे उत्तर भारत में भय और आतंक का वातावरण बना दिया जिससे भारतीय जन-जीवन में हाहाकार मच गया।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ई.1206 से लेकर 1210 में अपनी मृत्यु होने तक दिल्ली पर स्वतंत्र शासक के रूप में शासन किया। उसने भारत में ‘तुर्की सल्तनत’ की स्थापना की किंतु उसे ‘दिल्ली सल्तनत’ के नाम से जाना गया। चूंकि कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का जेरखरीद गुलाम था इसलिए उसने दिल्ली में जिस राजवंश की स्थापना की उसे भारत के इतिहास में ‘गुलाम-वंश’ कहते हैं। इस वंश के समस्त शासक अपने जीवन के प्रारम्भिक काल में या तो गुलाम रह चुके थे या फिर वे किसी गुलाम की संतान थे।
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इस वंश का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक, मुहम्मद गौरी का गुलाम था। इस वंश का दूसरा शासक इल्तुतमिश, कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम था। इस वंश का तीसरा प्रभावशाली शासक बलबन, इल्तुतमिश का गुलाम था। अतः यह वंश, गुलाम वंश कहलाता है। गुलाम वंश के समस्त शासक तुर्क थे। कुछ इतिहासकार गुलाम वंश नामकरण उचित नहीं मानते। उनके अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में ‘कुतुबी’, इल्तुतमिश ने ‘शम्मी’ तथा बलबन ने ‘बलबनी’ राजवंश की स्थापना की। इस प्रकार इस समय में दिल्ली में एक वंश ने नहीं, अपितु तीन वंशों ने शासन किया। इन इतिहासकारों के अनुसार इस काल को ‘दिल्ली सल्तनत’ का काल कहना चाहिये।
इस प्रकार कुतुबुद्दीन ऐबक भारत में तुर्की सल्तनत का संस्थापक, दिल्ली सल्तनत का संस्थापक, गुलाम वंश का संस्थापक तथा कुतुबी वंश का संस्थापक था। वह दिल्ली का पहला मुसलमान सुल्तान था। उसका जन्म तुर्किस्तान के कुलीन तुर्क परिवार में हुआ था किंतु वह बचपन में अपने परिवार से बिछुड़ गया तथा गुलाम के रूप में बाजार में बेच दिया गया। वह कुरूप किंतु प्रतिभावान बालक था। एक व्यापारी उसे दास के रूप में बेचने के लिए तुर्किस्तान से गजनी ले आया। सबसे पहले अब्दुल अजीज कूकी नामक एक काजी ने कुतुबुद्दीन को खरीदा। उस समय कुतुबुद्दीन बालक ही था। इसलिए उसने काजी के बच्चों के साथ घुड़सवारी सीखी तथा थोड़ी-बहुत शिक्षा प्राप्त की।
गजनी के काजी ने कुतुबुद्दीन को कुछ समय बाद फिर से बाजार में बेच दिया। इस प्रकार कुतुबुद्दीन कई बार बिका। एक बार उसे मुहम्मद गौरी के सामने लाया गया। मुहम्मद गौरी ने कुतुबुद्दीन की कुरूपता पर विचार न करके उसे खरीद लिया। कुतुबुद्दीन ने अपने गुणों से मुहम्मद गौरी को मुग्ध कर लिया और उसका अत्यन्त प्रिय तथा विश्वासपात्र गुलाम बन गया। वह अपनी योग्यता के बल पर धीरे-धीरे एक पद से दूसरे पद पर पहुँचता गया और ‘अमीर आखूर’ अर्थात् घुड़साल रक्षक के पद पर पहुँच गया।
कुछ समय बाद कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का इतना प्रिय बन गया कि गौरी ने उसे ‘ऐबक’ अर्थात् ‘चन्द्रमुखी’ के नाम से पुकारना आरम्भ किया। जब मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण करना आरम्भ किया तब ऐबक भी उसके साथ भारत आया और अपने सैनिक-गुणों का परिचय दिया। मुहम्मद गौरी को अपनी भारतीय विजयों में ऐबक से बड़ा सहयोग मिला। तराइन के दूसरे युद्ध में कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी के साथ मौजूद था। कन्नौज के राजा जयचंद के विरुद्ध किए गए सैनिक अभियान में तो कुतुबुद्दीन ऐबक को मुस्लिम सेना के हरावल में रखा गया था।
ई.1194 में जब मुहम्मद गौरी कन्नौज विजय के उपरान्त गजनी लौटा, तब उसने भारत के विजित भागों का प्रबन्ध कुतुबुद्दीन ऐबक के हाथों में दे दिया। इस प्रकार ऐबक मुहम्मद गौरी के भारतीय राज्य का वाइसराय बन गया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गौरी के विजय अभियान को जारी रखा। ई.1195 में उसने कोयल को जीता जिसे अब अलीगढ़ कहा जाता है। इसके बाद उसने अन्हिलवाड़ा को नष्ट किया। जिस अन्हिलवाड़ा को मुहम्मद गौरी नहीं जीत पाया था, उसी अन्हिलवाड़ा को जलाकर राख करने का काम कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया।
ई.1196 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मेड़ राजपूतों को परास्त किया जो चौहानों की सहायता कर रहे थे। ई.1197 में उसने बदायूँ, चन्दावर और कन्नौज पर पुनः अधिकार किया। ये क्षेत्र संभवतः फिर से हिन्दुओं द्वारा छीन लिए गए थे।
ई.1202 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चंदेलों को परास्त करके बुंदेलखण्ड का क्षेत्र अपने साम्राज्य में मिला लिया। इस प्रकार गौरी की मृत्यु से पूर्व ऐबक ने लगभग सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर अधिकार कर लिया। इस विशाल मुस्लिम साम्राज्य को परास्त करके पुनः दिल्ली तथा उत्तर भारत के राज्यों पर अधिकार करना हिन्दू राजकुलों के वश की बात नहीं रही।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता