तराइन के दूसरे युद्ध में मुहम्मद गौरी ने छल-बल से पृथ्वीराज चौहान की सेना को मार दिया तथा सम्राट पृथ्वीराज चौहान को जीवित ही पकड़ लिया। पृथ्वीराज चौहान के अंत के सम्बन्ध में अलग-अलग विवरण मिलते हैं। ‘पृथ्वीराज रासो’ में पृथ्वीराज का अंत गजनी में दिखाया गया है। इस विवरण के अनुसार पृथ्वीराज को पकड़ कर गजनी ले जाया गया जहाँ उसकी आँखें फोड़ दी गईं। इस ग्रंथ का रचयिता चंद बरदाई सम्राट पृथ्वीराज का बाल-सखा था, वह भी सम्राट के साथ गजनी गया।
पृथ्वीराज रासो कहता है कि चंद बरदाई ने पृथ्वीराज की मृत्यु निश्चित जानकर शत्रु के विनाश का कार्यक्रम बनाया तथा मुहम्मद गौरी से आग्रह किया कि आँखें फूट जाने पर भी राजा पृथ्वीराज शब्दबेधी बाण मार सकता है। इस मनोरंजक दृश्य को देखने के लिए गौरी ने एक विशाल दरबार का आयोजन किया। उसने एक ऊँचे मंच पर बैठकर एक घण्टा बजाया तथा पृथ्वीराज को लक्ष्य वेधने का संकेत दिया। उसी समय कवि चन्द बरदाई ने यह दोहा पढ़ा-
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता उपर सुल्तान है, मत चूके चौहान।।
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इससे सम्राट पृथ्वीराज को गौरी की स्थिति का अनुमान हो गया और सम्राट ने जो तीर छोड़ा वह मुहम्मद गौरी के कण्ठ में जाकर लगा तथा उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। अपने राजा को शत्रु-सैनिकों के हाथों में पड़कर अपमानजनक मृत्यु से बचने के लिए कवि चन्द बरदाई ने राजा पृथ्वीराज के पेट में अपनी कटार भौंक दी और स्वयं भी उसके साथ मृत्यु को प्राप्त हुआ। उस समय पृथ्वीराज की आयु मात्र 26 वर्ष थी।
आधुनिक शोधों से स्पष्ट हो चुका है कि पृथ्वीराज रासो में इतना अधिक क्षेपक जोड़ दिया गया है कि इसके मूल तथ्य ही बदल गए हैं। ‘हम्मीर महाकाव्य’ नामक ग्रंथ में सम्राट पृथ्वीराज को कैद किए जाने और अंत में उसे मरवा दिए जाने का उल्लेख है। विरुद्धविधिविध्वंस नामक ग्रंथ में पृथ्वीराज का युद्ध-स्थल में काम आना लिखा है।
‘पृथ्वीराज प्रबन्ध’ के अनुसार विजयी शत्रु पृथ्वीराज को अजमेर ले आए और वहाँ उसे एक महल में बंदी के रूप में रखा गया। इसी महल के सामने मुहम्मद गौरी अपना दरबार लगाता था जिसे देखकर पृथ्वीराज को बड़ा दुःख होता था। एक दिन राजा पृथ्वीराज ने अपने मंत्री प्रतापसिंह से धनुष-बाण लाने को कहा ताकि वह मुहम्मद गौरी का अंत कर दे। प्रतापसिंह पृथ्वीराज चौहान का अत्यंत विश्वसनीय मंत्री था किंतु आरम्भ से लेकर अंत तक यही प्रतापसिंह पृथ्वीराज के सर्वनाश का प्रमुख कारण बना।
पृथ्वीराज की माता के शासन काल में कदम्बवास राज्य का प्रधानमंत्री था किंतु प्रतापसिंह ने षड़यंत्र रचकर कदम्बवास को सम्राट की दृष्टि से गिरा दिया तथा पृथ्वीराज ने कदम्बवास की हत्या करवा दी। तब से प्रतापसिंह ही राज्य का समस्त कार्य देखता था किंतु जब मुहम्मद गौरी तराइन के दूसरे युद्ध के लिए आया तो प्रतापसिंह सम्राट को धोखा देकर भीतर ही भीतर मुहम्मद गौरी से मिल गया। पृथ्वीराज प्रतापसिंह पर इतना अधिक विश्वास करता था कि वह अंत तक इस बात को नहीं जान सका।
जब सम्राट ने प्रतापसिंह को धनुष-बाण लाने के लिए कहा तो प्रतापसिंह ने उसकी सूचना मुहम्मद गौरी को दे दी। मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज की परीक्षा लेने के लिए अपनी एक प्रतिमा बनवाकर एक स्थान पर रखवाई जिसे पृथ्वीराज ने अपने बाण से तोड़ दिया। यह देखकर मुहम्मद गौरी ने अंधे पृथ्वीराज को गड्ढे में फिंकवा दिया जहाँ पत्थरों की चोटों से उसका अंत कर दिया गया।
दो समसामयिक लेखकों यूफी तथा हसन निजामी ने पृथ्वीराज को कैद किया जाना तो लिखा है किंतु निजामी यह भी लिखता है कि जब बंदी पृथ्वीराज जो इस्लाम का शत्रु था, सुल्तान के विरुद्ध षड़यंत्र करता हुआ पाया गया तो उसकी हत्या कर दी गई। मिनहाज उस् सिराज पृथ्वीराज के भागने पर पकड़ा जाना और फिर मरवाया जाना लिखता है। फरिश्ता भी इसी कथन का अनुमोदन करता है। सोलहवीं शताब्दी का लेखक अबुलफजल लिखता है कि पृथ्वीराज को सुलतान गजनी ले गया जहाँ पृथ्वीराज की मृत्यु हो गई। पृथ्वीराज की मृत्यु के चार सौ साल बाद लिखी गई इस बात का अधिक महत्त्व नहीं है।
अजमेर से सम्राट पृथ्वीराज चौहान का एक सिक्का मिला है जिसके दूसरी तरफ मुहम्मद गौरी का नाम भी अंकित है। यह सिक्का इस बात का द्योतक है कि पृथ्वीराज को युद्ध के मैदान से जीवित ही पकड़कर अजमेर लाया गया तथा मुहम्मद गौरी ने उसके कुछ सिक्कों को जब्त करके उनके पीछे अपना नाम अंकित करवाया। इससे यह सिद्ध होता है कि पृथ्वीराज को युद्ध के मैदान में नहीं मारा गया था। न ही उसे गजनी ले जाया गया था। पृथ्वीराज को तराइन के मैदान से अजमेर लाया गया था और अजमेर में ही उसकी हत्या की गई थी।
बहुत से लोगों ने सम्राट पृथ्वीराज के इतिहास को रहस्यमय एवं रोमांचक बनाने के लिए पृथ्वीराज के अंत के सम्बन्ध में कई तरह के किस्से गढ़ लिए हैं किंतु इतिहास की सच्चाइयां रहस्य रोमांच से अलग, बहुत भयानक एवं बदसूरत होती हैं, सम्राट पृथ्वीराज का अंत भी वैसा ही भयानक और बदसूरत था।
भारतीय राजा किसी दूसरे राजा को पकड़ लेने पर जिस गरिमा और उदारता का परिचय देते थे, मुहम्मद गौरी की तरफ से वैसा कुछ नहीं किया गया। उसने सम्राट पृथ्वीराज चौहान को क्रूर मौत के हवाले किया। मुहम्मद गौरी को यह भी स्मरण नहीं रहा कि इसी पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी तथा काजी शिराज से केवल कर लेकर उन्हीं जीवित ही छोड़ दिया था।
ई.1192 में पृथ्वीराज चौहान को मारने के बाद शहाबुद्दीन गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के अवयस्क पुत्र गोविन्दराज से विपुल कर-राशि लेकर उसे अजमेर की गद्दी पर बैठाया। इसके बाद शहाबुद्दीन गौरी कुछ समय तक अजमेर में रहकर दिल्ली चला गया जो इस समय मुहम्मद गौरी के सेनापतियों के अधीन था। मुहम्मद गौरी ने अपने जेरखरीद गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में अपने द्वारा विजित क्षेत्रों का गवर्नर नियुक्त किया। कुछ दिन दिल्ली में निवास करने के बाद मुहम्मद गौरी फिर से गजनी चला गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता