मुहम्मद गौरी ने भारत में अपना रास्ता साफ करने के लिए हिन्दू राजाओं पर हाथ डालने से पहले भारत में स्थित मुस्लिम अमीरों के राज्य छीन लिए। करमाथी मुसलमानों, सुमरा मुसलमानों तथा लाहौर के गजनवियों का सफाया करने के बाद मुहम्मद गौरी मुल्तान, सिंध तथा पंजाब क्षेत्र का स्वामी बन गया। पंजाब पर अधिकार कर लेने से मुहम्मद गौरी के क्षेत्र की सीमा दिल्ली एवं अजमेर के चौहान साम्राज्य से जा लगी। इस समय सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज (तृतीय) चौहानों का राजा था। भारत के इतिहास में उसे पृथ्वीराज चौहान तथा रायपिथौरा कहा जाता है। वह ई.1179 में केवल 11 वर्ष की आयु में सम्राट बना था।
ई.1175 से मुहम्मद गौरी भारत पर निरंतर आक्रमण कर रहा था किंतु पृथ्वीराज चौहान ने उसकी ओर ध्यान न देकर, अपने साम्राज्य की सीमाओं पर स्थित हिन्दू राजाओं का दमन करके अपने राज्य का विस्तार करने में लगा रहा। पृथ्वीराज ने नागों, भण्डानकों तथा चंदेलों का दमन किया। पृथ्वीराज ने गहड़वालों की राजकुमारी संयोगिता का अपहरण करके उन्हें अपना शत्रु बना लिया तथा गुजरात के चौलुक्यों से अपने वंशानुगत झगड़े को चरम पर पहुंचा दिया।
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उस काल में अजमेर के चौहानों की ही तरह अन्हिलवाड़ा के चौलुक्य भी परमारों तथा गुहिलों के राज्यों को क्षति पहुंचाकर अपना क्षेत्र बढ़ाने में लगे हुए थे। इन समस्त युद्धों के परिणाम स्वरूप चौहानों तथा चौलुक्यों के राज्य तो दूर-दूर तक फैल गए किंतु हिन्दू वीरों की भयानक क्षति होने से राष्ट्र दुर्बल हो गया। सम्राट पृथ्वीराज चौहान यद्यपि वीर, शक्तिशाली एवं युद्ध-प्रिय राजा था तथापि वह इस बात को समझने में विफल रहा कि मुहम्मद गौरी के रूप में कितनी भयानक विपत्ति देश एवं धर्म के समक्ष मुँह बाए खड़ी है।
राजा पृथ्वीराज चौहान ने हिन्दू राजाओं का संगठन खड़ा करने की बजाय उनसे शत्रुता बढ़ाने का अदूरदर्शी कार्य किया। यह अदूरदर्शिता हजारों साल से भारत वर्ष के राजाओं में चली आ रही थी। वे रक्त-रंजित युद्धों के माध्यम से अपने-अपने राज्य का प्रसार करते थे किंतु इस प्रयास में अपनी सेना, हिन्दू धर्म एवं भारत राष्ट्र की अजेय शक्ति का क्षय करते थे। जब पृथ्वीराज चौहान का राज्य अजमेर से बढ़कर दिल्ली होता हुआ पंजाब के भटिण्डा, सरहिंद तथा उसके आगे के क्षेत्रों में भी फैल गया तो मुहम्मद गौरी की सीमाएं उसके राज्य तक आ पहुँचीं। पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच 21 लड़ाइयां हुईं जिनमें चौहान विजयी रहे।
हम्मीर महाकाव्य ने पृथ्वीराज द्वारा 7 बार गौरी को परास्त किया जाना लिखा है। पृथ्वीराज प्रबन्ध 8 बार हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष का उल्लेख करता है। प्रबन्ध कोष का लेखक 20 बार गौरी को पृथ्वीराज द्वारा कैद करके मुक्त करना बताता है। सुर्जन चरित्र में 21 बार और प्रबन्ध चिन्तामणि में 23 बार गौरी का हारना अंकित है। इस प्रकार भारतीय लेखक झूठ पर झूठ बोलते रहे और पृथ्वीराज चौहान को महान बताने के लिए मुहम्मद गौरी की काल्पनिक पराजयों को अपनी पुस्तकों में अंकित करते रहे। यह ठीक वैसा ही था जिस प्रकार कबूतर बिल्ली पर अपनी विजयों के दावे करता रहे और बिल्ली आकर कबूतर को दबोच ले! झूठ बोलकर न पराजय छिपाई जा सकती है और न पराजय की पीड़ा!
इस बात में कोई संदेह नहीं कि मुहम्मद गौरी तथा पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं के बीच चौहान साम्राज्य की सीमाओं पर कई बार झड़पें हुई होंगी जिनमें मुहम्मद गौरी की सेनाएं हारी होंगी किंतु प्रबंध कोष द्वारा यह लिखना कि पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को इक्कीस बार कैद करके मुक्त किया, अत्यंत ही संदेहास्पद जान पड़ता है। अपने शत्रु को 20 बार कैद करके मुक्त किया जाना जाना सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों ही दृष्टि से गलत एवं हास्यास्पद प्रतीत होता है। अब तक प्राप्त विश्वसनीय उल्लेखों के अनुसार ई.1189 में मुहम्मद गौरी ने पहली बार पृथ्वीराज चौहान के राज्य में प्रवेश किया तथा भटिण्डा के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
भटिण्डा का दुर्ग पृथ्वीराज (द्वितीय) के समय से अजमेर राज्य के अधीन था किंतु पृथ्वीराज (तृतीय) ने दुर्ग के छिन जाने पर भी मुहम्मद गौरी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की। संभवतः पृथ्वीराज चौहान उस समय किसी अन्य अभियान में व्यस्त था। मुहम्मद गौरी ने भटिण्डा दुर्ग में जियाउद्दीन नामक एक काजी को दुर्गपति नियुक्त कर दिया। इस प्रकार चौहानों के विरुद्ध यह पहला हमला था जिसमें मुहम्मद गौरी ने विजय प्राप्त की थी। यह हमला धोखे से किया गया था तथा मुहम्मद गौरी इस विजय के उपरांत भी यह समझता था कि चौहानों की वास्तविक शक्ति इतनी अधिक है कि मुहम्मद गौरी के लिए यह संभव नहीं है कि वह भटिण्डा से आगे बढ़कर दिल्ली या अजमेर तक पहुंच सके। अतः वह वापस गजनी लौट गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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