जिस समय मुहम्मद गौरी ने भारत की ओर रुख किया, भारत राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से बिखरा हुआ था। यद्यपि महमूद गजनवी भारत की आर्थिक सम्पदा को बड़े स्तर पर लूटने में सफल रहा था तथापि उसने जो कुछ भी लूटा था, वह भारत की समृद्धि का शतांश भी नहीं था, सहस्रांश भी नहीं था। सिंधु और सरस्वती से लेकर रावी, व्यास, चिनाब, झेलम, गंगा, यमुना, गोमती, नर्मदा, कृष्णा और कावेरी जैसी सैंकड़ों नदियां युगों-युगों से भारत भूमि को सम्पन्न बना रही थीं। अकेले महमूद के वश की बात नहीं थी कि वह भारत की उस अपार सम्पदा को लूट ले।
यदि रावी से हिन्दूकुश पर्वत तक का वह क्षेत्र जो गजनी के मुसलमानों के अधीन चला गया था, उसे छोड़ दें तो शेष भारत में कृषि, शिल्प, उद्योग एवं व्यापार पहले की ही तरह उन्नत अवस्था में थे। जन-साधारण सुखी था और राजवंश धनी थे। मुहम्मद गौरी की दृष्टि इन हिन्दू राज्यों एवं हिन्दू प्रजा पर गढ़ी हुई थी किंतु भारत के हिन्दुओं पर हाथ डालने से पहले उसने मुल्तान तथा सिंध क्षेत्र के मुस्लिम अमीरों के राज्य छीनने का निश्चय किया।
मुहम्मद गौरी का भारत पर पहला आक्रमण ई.1175 में मुल्तान पर हुआ। मुल्तान पर उस समय शिया मुसलमान करमाथियों का शासन था। मुहम्मद गौरी ने करमाथियों को परास्त करके मुल्तान पर अधिकार कर लिया। उसी वर्ष गौरी ने ऊपरी सिंध के कच्छ क्षेत्र पर आक्रमण किया तथा उसे अपने अधिकार में ले लिया।
मुहम्मद गौरी के समय के कुछ मुस्लिम ग्रंथों में लिखा है कि उस काल में सिंध क्षेत्र में स्थित ‘उच’ में एक भाटी राजा राज्य करता था। मुहम्मद गौरी ने उसकी रानी को प्रलोभन देकर अपनी तरफ मिला लिया। उस रानी ने अपने पति को विष देकर मार डाला तथा किले पर मुहम्मद गौरी का अधिकार करवा दिया। आधुनिक शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि बारहवीं शताब्दी ईस्वी में सिंध के रेगिस्तान में स्थित ‘उच’ नामक स्थान पर किसी भी भाटी शासक का शासन नहीं था। उस समय यह किला एक करमाथी मुसलमान के अधीन था। अतः यह पूरी घटना ही मनगढ़ंत है।
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सिंध पर आक्रमण के बाद पूरे 7 साल तक मुहम्मद भारत से दूर रहा। संभवतः इस अवधि में वह ख्वाज्मि के बादशाह से लड़ने में व्यस्त रहा। उससे निबटने के बाद ई.1182 में मुहम्मद ने एक बार फिर से भारत की ओर रुख किया तथा निचले सिंध क्षेत्र पर आक्रमण किया। उन दिनों निचले सिंध में देवल का राज्य स्थित था जिस पर शिया सम्प्रदाय के ‘सुम्र’ मुसलमान शासन करते थे। इन्हीं सुम्र मुसलमानों को ढोला-मारू की कथा में ‘सुमरा’ कहा गया है। मुहम्मद गौरी ने सुमरा मुसलमानों को अपनी अधीनता स्वीकार करने पर विवश किया।
मुहम्मद गौरी का अगला आक्रमण ई.1178 में गुजरात के चौलुक्य राज्य पर हुआ जो उस समय एक धनी राज्य था। गुजरात पर इस समय मूलराज (द्वितीय) शासन कर रहा था। उसकी राजधानी अन्हिलवाड़ा थी। चौलुक्यों ने कुछ ही साल पहले मालवा के परमारों एवं चित्तौड़ के गुहिलों से उनके राज्य के अधिकांश भाग छीनकर अपनी शक्ति बहुत बढ़ा ली थी।
मुहम्मद गौरी मुल्तान, कच्छ और पश्चिमी राजपूताना में होकर आबू के निकट पहुंचा। वहाँ कयाद्रा गांव के निकट मूलराज (द्वितीय) की सेना से उसका युद्ध हुआ। इस युद्ध में गौरी बुरी तरह परास्त होकर अपनी जान बचाकर भाग गया। यह भारत में उसकी पहली पराजय थी। गुजरात में मिली पराजय से मुहम्मद गौरी इतना आतंकित हो गया कि अगले बीस साल तक उसने गुजरात पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं की।
गुजरात में पराजय का स्वाद चखने के बाद गौरी ने स्वयं को पंजाब पर केन्द्रित करने का निश्चय किया तथा ई.1179 में पेशावर पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया। उसके दो साल बाद ई.1181 में गौरी ने लाहौर पर आक्रमण किया। उन दिनों गजनी का पूर्व शासक खुसरव शाह लाहौर में निवास करता था। खुसरव शाह ने मुहम्मद गौरी को विपुल धन देकर उससे संधि कर ली तथा अपना पुत्र जमानत के तौर पर मुहम्मद गौरी की सेवा में भेज दिया।
ई.1185 में मुहम्मद गौर ने पंजाब पर तीसरा आक्रमण किया तथा सियालकोट तक का प्रदेश जीत लिया। उसने सियालकोट दुर्ग पर अधिकार करके उसकी मरम्मत करवाई तथा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों को लूटकर अपनी शक्ति का परिचय दिया।
इस पर लाहौर के शासक खुसरव शाह ने नमक की पहाड़ियों के निकट रहने वाली खोखर जाति से मित्रता कर ली। खोखर उन दिनों हिन्दू हुआ करते थे। वे बड़े वीर एवं युद्धप्रिय लोग थे। वर्तमान समय में उत्तरी भारत में खोखर जाट एवं खोखर राजपूत पाए जाते हैं। हरियाणा की तरफ के खोखर जाट हैं जबकि राजस्थान की तरफ के खोखर राजपूत हैं। राजस्थान में हजारों खोखर मुसलमान भी निवास करते हैं।
जिस समय मुहम्मद गौरी ने सियालकोट पर आक्रमण किया, उस समय खोखरों तथा जम्मू के राजा चक्रदेव के बीच शत्रुता चल रही थी। अतः खोखरों ने खुसरव शाह से दोस्ती का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
खुसरव शाह तथा खोखरों की सम्मिलित सेना ने सियालकोट को घेर लिया किंतु मुहम्मद गौरी की सेना ने खुसरव शाह तथा खोखरों की सेना को मार भगाया। इस पर ई.1186 में मुहम्मद गौरी ने पुनः लाहौर पर आक्रमण किया। मुहम्मद गौरी ने जम्मू के राजा चक्रदेव के पास मित्रता का प्रस्ताव भेजा। चूंकि जम्मू घाटी में रहने वाले खोखर जो कि चक्रदेव के शत्रु थे, खुसरव शाह से मिल गए, इसलिए चक्रदेव ने मुहम्मद गौरी से मित्रता करने में भलाई समझी तथा उसने अपनी एक सेना मुहम्मद गौरी की सहायता के लिए भेज दी।
जब मुहम्मद गौरी लाहौर के निकट पहुंचा तो उसने लाहौर के शासक खुसरव शाह को संधि करने के बहाने अपने शिविर में आमंत्रित किया। जब खुसरव शाह मुहम्मद गौरी के शिविर में गया तो मुहम्मद गौरी ने छल से उसे बंदी बना लिया तथा ‘गरजिस्तान’ नामक स्थान पर एक दुर्ग में बंद कर दिया। ‘गरजिस्तान’ को आजकल ‘गिलगिस्तान’ कहते हैं। पूरे छः साल तक खुसरव शाह को इस दुर्ग में बंदी रखा गया। ई.1192 में मुहम्मद गौरी की आज्ञा से उसकी हत्या कर दी गई।
इस प्रकार भारत के समस्त मुस्लिम अमीरों के राज्य मुहम्मद गौरी के अधीन आ गए। मुहम्मद ने उनके स्थान पर अपने गुलामों को वहाँ का शासक नियुक्त किया। ये मुस्लिम राज्य मुहम्मद के लिए भारत में आधार शिविर का कार्य करने लगे जहाँ से वह अपने आगे के अभियान चला सकता था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता