यद्यपि इतिहासकारों ने हुमायूँ पर आलसी, अदूरदर्शी तथा विलासी होने के आरोप बार-बार लगाए हैं तथापि इतिहास इस बात का साक्षी है कि हुमायूँ की असफलताओं का कारण उसके ये दुर्गुण नहीं थे अपितु उसमें अन्य मुगल शहजादों की अपेक्षा दयाभाव अधिक था, इसलिए वह अपने ही लोगों से धोखा खाता था और पराजय का मुख देखता था।
हुमायूँ युद्ध के मैदान में स्वयं तलवार लेकर लड़ने में कभी भी पीछे नहीं रहता था। किबचाक में भी हुमायूँ ने अपने गद्दार अमीरों की गद्दारी पर ध्यान न देकर अपनी तलवार पर अधिक भरोसा किया और कामरान के सैनिकों पर काल बनकर टूट पड़ा। उसके स्वामिभक्त अमीरों और सैनिकों ने भी अपने रहमदिल बादशाह के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने का निश्चय किया।
जब हुमायूँ कामरान के एक अमीर पर तलवार से वार कर रहा था तब पीछे से बाबाई कुलानी बेग ने अचानक ही हुमायूँ के ऊपर वार किया। बाबाई कुलानी बेग हुमायूँ के पक्ष का था किंतु वह भी गद्दारी करके कामरान की तरफ हो गया था। हुमायूँ को इस बात का पता नहीं था। जब हुमायूँ ने पीछे मुड़कर वार करने वाले को देखा तो हुमायूँ बाबाई कुलानी की गद्दारी को देखकर हैरान रह गया।
घायल हुमायूँ इस स्थिति में नहीं था कि वह बाबाई कुलानी पर उपट कर वार कर सके किंतु हुमायूँ ने क्रोध से जलती हुई दृष्टि से उस गद्दार को देखा। इस दृष्टि को देखकर बाबाई कुलानी सहम गया और उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह हुमायूँ पर दूसरा वार कर सके। इसी बीच हुमायूँ के अंगरक्षकों ने हुमायूँ को अपनी सुरक्षा में ले लिया।
अब्दुल बाहाब नामक एक यसावल ने बादशाह के घोड़े की लगाम पकड़ ली और उसे लेकर जुहाक की तरफ भाग गए जहाँ हुमायूँ की सेनाओं को कामरान की तलाश में भेजा गया था। हुमायूँ के शरीर में गहरा घाव लगा था जिससे काफी रक्त बह गया था किंतु हुमायूँ के पास घोड़े की पीठ पर बैठकर दौड़ते रहने के अतिरिक्त कोई अन्य उपाय नहीं था। इस समय बादशाह हुमायूँ के सच्चे सहायक मिर्जा हिंदाल, मिर्जा सुलेमान तथा मिर्जा इब्राहीम हुमायूँ के पास नहीं थे।
जब हुमायूँ काबुल से किबचाक के लिए रवाना हुआ था, तब वह दो ऊंटों पर लोहे के दो बक्से लदवाकर लाया था जिनमें हुमायूँ की प्रिय पुस्तकें भरी हुई थीं। युद्ध की रेलमपेल में वे ऊंट भी हुमायूँ के आदमियों के हाथों से छूट गए तथा पहाड़ों में भाग गए। बाद में ये ऊंट कामरान के सैनिकों द्वारा पकड़कर कामरान को प्रस्तुत किये गए। ये पुस्तकें कामरान के किसी भी काम की नहीं थीं किंतु कामरान ने उन्हें शाही निशानी समझकर अपने पास रख लिया।
दूसरे दिन बादशाह के स्वामिभक्त अमीर बादशाह को ढूंढते हुए आ पहुंचे। गद्दार अमीर किबचाक में ही कामरान के पास रह गए। अब दूध का दूध और पानी का पानी होने का समय आ गया था। बादशाह बड़ी आसानी से अपने गद्दार और वफादार अमीरों को पहचान सकता था। हुमायूँ ने अपने 10 वफादार अमीरों को तत्काल काबुल के लिए रवाना किया ताकि शत्रु को काबुल में घुसने से रोका जा सके। हुमायूँ ने अपने कुछ अमीर गजनी के लिए रवाना किए ताकि गजनी पर अधिकार बनाए रखा जा सके।
हुमायूँ का मन अपने ही अमीरों से आशंकित था। हुमायूँ को लगता था कि यदि इस समय वह काबुल गया तो उसके गद्दार अमीर उसके साथ छल करके उसे कामरान के हाथों सौंप देंगे। इसलिए हुमायूँ काबुल नहीं जाकर बदख्शाँ की ओर चल दिया।
उधर कामरान ने स्थान-स्थान पर अपने संदेशवाहक भेजकर खबर फैला दी कि मिर्जा हुमायूँ किबचाक की लड़ाई में मारा गया है। अबुल फजल ने इस सम्बन्ध में एक रोचक घटना का उल्लेख किया है। वह लिखता है कि एक दिन जब हुमायूँ बंगी नदी के किनारे पहुंचा तो वहाँ उसे एक आदमी मिला। उसने दूर से ही चिल्लाकर हुमायूँ से पूछा कि क्या तुझे बादशाह के बारे में कुछ पता है? हुमायूँ ने उससे पूछा कि तू कौन है?
उस आदमी ने जवाब दिया कि मुझे साल औरंग के नजरी ने बादशाह की खबर लाने के लिए भेजा है। हम लोगों में यह खबर है कि बादशाह किबचाक की लड़ाई में आहत हो गया था, उसके बाद उसे किसी ने नहीं देखा। मिर्जा कामरान के लोगों को उसका जिब्बा मिला है जो उसने युद्ध के समय में पहन रखा था। उस जिब्बे के मिलने पर कामरान ने बड़ी-बड़ी दावतें दी हैं। हुमायूँ ने उसे अपने पास बुलाकर उसे अपना परिचय दिया तथा उससे कहा कि तुम अपने लोगों के पास जाकर उन्हें हमारे बारे में अच्छी खबर सुनाओ।
उधर मिर्जा हिंदाल, मिर्जा सुलेमान तथा मिर्जा इब्राहीम हुमायूँ को ढूंढ रहे थे। अन्ततः उन्हें हुमायूँ के बारे में समाचार मिल गए। जब हुमायूँ खंजान नामक गांव में ठहरा हुआ था, तब मिर्जा हिंदाल हुमायूँ को ढूंढता हुआ वहीं आ गया। कुछ दिनों बाद जब हुमायूँ का डेरा अंदराब में लगा हुआ था, तब मिर्जा सुलेमान और उसका पुत्र मिर्जा इब्राहीम भी आ पहुंचे। इनके आ जाने से हुमायूँ में आशा का नवीन संचार हुआ।
उधर कामरान को युद्ध-क्षेत्र से हुमायूँ के गायब हो जाने पर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने अपने आदमियों को हुमायूँ की खोज में भिजवाया किंतु वे हुमायूँ को नहीं ढूंढ सके किंतु उन्होंने हुमायूँ का जिब्बा कामरान के सामने प्रस्तुत किया जो उन्हें जंगल में पड़ा हुआ मिला था। इस जिब्बे को देखकर कामरान को विश्वास हो गया कि हुमायूँ मर गया है।
इसलिए उसने युद्ध-क्षेत्र में पकड़े गए हुमायूँ के पक्ष के कुछ अमीरों को रस्सियों में बांधकर अपने सामने बुलाया। कामरान हुमायूँ से इतनी घृणा करता था कि उसने हुमायूँ के वफादार अमीर हुसैन कुली तथा ताखजी बेग सहित कई अमीरों के टुकड़े-टुकड़े स्वयं अपनी तलवार से किए।
ये वे अमीर थे जिनके कंधों पर मुगलिया सल्तनत टिकी हुई थी किंतु घमण्डी एवं दुष्ट-हृदय कामरान उन अमीरों को अपने हाथों से मार रहा था। कामरान ने युद्ध-क्षेत्र में हुमायूँ पर छल से वार करने वाले अमीर बाबाई कुलावी का बड़ा सम्मान किया तथा उसे हुमायूँ को ढूंढने का काम सौंपा।
इसके बाद कामरान ने काबुल की तरफ प्रस्थान किया तथा काबुल को घेर लिया। इस समय हुमायूँ का अल्पवयस्क पुत्र अकबर काबुल की रक्षा कर रहा था और कासिम खाँ बरलास अकबर की सेवा में था। कामरान ने कासिम खाँ बरलास को अपनी तरफ मिलाने का प्रयास किया किंतु कासिम खाँ बरलास नहीं माना।
इस पर कामरान ने हुमायूँ का जिब्बा कासिम खाँ बरलास के पास भिजवाया तथा उससे कहा कि हुमायूँ तो मर गया है, अब तू किसके लिए काबुल की रक्षा कर रहा है? इस जिब्बे को देखकर बरलास को कामरान की बात का विश्वास हो गया और उसने काबुल का दुर्ग कामरान को सौंप दिया। कामरान ने दुर्ग में घुसकर हुमायूँ के पूरे परिवार को बंदी बना लिया जिनमें सात साल का अकबर भी था।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता