अप्रैल 1547 में काबुल पर अधिकार करने के बाद हुमायूँ ने अपने भााइयों को पुनः अपनी सेवा में ले लिया तथा अपने राज्य का फिर से बंटवारा किया। एक दिन हुमायूँ ने अपने भाइयों के लिए किशम दुर्ग में भोज का प्रबंध किया। बादशाह के निमंत्रण पर मिर्जा कामरान, मिर्जा अस्करी, मिर्जा हिंदाल तथा मिर्जा सुलेमान भोज के लिए उपस्थित हुए।
इनमें से मिर्जा सुलेमान हुमायूँ का चचेरा भाई था जबकि कामरान, अस्करी और हिंदाल हुमायूँ के सौतेले भाई थे। हुमायूँ ने अपने हरम की औरतों को भी इस भोज में बुलाया। इस भोज के लिए बादशाह तथाा उसके अमीरों एवं हरम की औरतों के लिए अलग-अलग शामियाने लगाये गये।
हुमायूँ के पूर्वज चंगेज खाँ ने अपने भाइयों एवं परिवार के सदस्यों के लिए बादशाह के समक्ष उपस्थित होने, उसके साथ भोजन करने, उसका स्वागत करने, उसे विदा करने, उसे भेंट देने तथा उसके समक्ष बैठने के सम्बन्ध में कुछ नियम बनाए थे। वही नियम तैमूर लंग द्वारा अपने परिवार के लिए स्वीकार कर लिए गए थे और बाबर तथा हुमायूँ के समय में भी वही नियम प्रचलित थे।
जब हुमायूँ और उसके भाई दावत हेतु बनाए गए शामियाने में गए तो हुमायूँ ने हाथ धोने के लिए बरतन लाने के आदेश दिए। चूंकि इस समय मिर्जा सुलेमान तथा मिर्जा हिंदाल सबसे छोटे थे, इसलिए उन दोनों ने सेवकों के हाथों से बरतन लेकर बादशाह के सामने रख दिए तथा अपने हाथों में झारी लेकर बादशाह के हाथों पर पानी डाला।
नियम के अनुसार शेष चारों भाइयों को शामियाने से बाहर जाकर हाथ धोने चाहिए थे। इसलिए मिर्जा हिंदाल और मिर्जा अस्करी हाथ धोने बाहर चले गए किंतु कामरान ने बादशाह की उपस्थिति का लिहाज न करके उन्हीं बरतनों में हाथ धोए जिनमें बादशाह ने धोए थे। कामरान के बाद मिर्जा सुलेमान ने भी उन्हीं बरतनों में हाथ धो लिए। संभवतः बादशाह ने सुलेमान को यहीं हाथ धो लेने के लिए कह दिया था।
जब सुलेमान हाथ धो रहा था, तब तक मिर्जा अस्करी और मिर्जा हिंदाल हाथ धोकर आ गए। उन्होंने मिर्जा सुलेमान को बादशाह के बर्तनों में हाथ धोते हुए देख लिया। मिर्जा सुलेमान ने उन्हीं बरतनों में नाक सिनक दी। यह देखकर मिर्जा हिंदाल तथा अस्करी चिढ़ गए। उन्होंने सुलेमान से कहा कि यह कैसा गंवारपन है? हमें बादशाह के सामने हाथ धोने का क्या अधिकार है? यदि बादशाह ने तुम्हें यहीं हाथ धोने के लिए कह दिया था, तब क्या तुम्हें बादशाह के सम्मुख नाक साफ करने में लज्जा नहीं आई?
अस्करी और हिंदाल की बात सुनकर सुलेमान बड़ा लज्जित हुआ। हुमायूँ ने इस बात को यहीं समाप्त करने के आदेश दिए और सभी भाइयों ने एक ही दस्तरखान पर बैठ कर भोजन किया। बाबर की मृत्यु के बाद इन भाइयों के जीवन में ऐसा अवसर संभवतः पहली बार आया था जब सभी भाइयों ने एक ही दस्तरखान पर बैठकर भोजन किया। हुमायूँ द्वारा इस दावत का आयोजन संभवतः भाइयों के बीच प्रेम बढ़ाने तथा पुरानी बातें भुलाने के उद्देश्य से किया गया था।
गुलबदबन बेगम ने इस आयोजन का विस्तार से वर्णन किया है। वह लिखती है कि जब पांचों भाई भोजन कर चुके तब हुमायूँ ने गुलबदन बेगम को शामियाने में बुलवाया। गुलबदन बेगम के आने पर हुमायूँ ने अपने भाइयों से कहा कि एक बार लाहौर में गुलबदन बेगम ने मुझसे कहा था कि मैं अपने सभी भाइयों को एक दस्तरख्वान पर बैठकर भोजन करते हुए देखूं। आज मैंने गुलबदन की उसी इच्छा को पूरा किया है। अल्लाह हम सभी पर रहम करे।
मेरे हृदय में यह नहीं है कि मैं किसी मुसलमान का बुरा चाहूँ तब ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं अपने भाइयों की बुराई चाहूँ ! अल्लाह तुम सबके हृदय में यही भावना बनाए रखे जिससे हम लोग एक बने रहें।
इस दावत के बाद सभी भाई अपनी-अपनी जागीरों पर चले गए और हुमायूँ अपनी राजधानी काबुल लौट आया। जब हुमायूँ को काबुल में रहते हुए लगभग डेढ़ वर्ष बीत गया तब हुमायूँ हरम की बेगमों को लेकर लमगान होता हुआ बलख के निकट पहुंचा।
यहाँ पहुंचकर हुमायूँ ने अपनी यात्रा का वास्तविक उद्देश्य प्रकट किया। उसने मिर्जा कामरान, मिर्जा सुलेमान, मिर्जा अस्करी तथा मिर्जा हिंदाल को पत्र भिजवाए कि हम उजबेगों से लड़ने जा रहे हैं। इसलिए तुम भी शीघ्र ही अपनी सेनाएं लेकर बलख आ जाओ।
बादशाह का आदेश पाकर मिर्जा मिर्जा सुलेमान और मिर्जा हिंदाल बिना कोई समय गंवाए, बलख के लिए रवाना हो गए। अपने भाइयों के आने से पहले ही हुमायूँ ने बलख पर हमला किया। उजबेगों का सेनापति पीर मोहम्मद हुमायूँ की सेना से लड़ने आया किंतु वह परास्त होकर भाग खड़ा हुआ।
अगले दिन हुमायूँ ने अपना शिविर किसी साफ स्थान पर लगाने का आदेश दिया। जब हुमायूँ का शिविर स्थानांतरित किया जा रहा था तब उसकी सेना में भगदड़ मच गई। हुमायूँ के चोबदारों ने भागती हुई शाही सेना को रोकने का भरसक प्रयास किया किंतु हुमायूँ के सैनिक पहाड़ों में भाग गए।
जौहर तथा निजामुद्दीन नामक लेखकों ने लिखा है कि सेना को भय था कि कामरान पहले की ही तरह काबुल में प्रवेश करके काबुल में रह रहे सैनिकों के परिवारों को दुःख देगा, इसलिए हुमायूँ की सेना में भगदड़ मच गई। एक अन्य लेखक ने लिखा है कि मुगल सेना को समाचार मिला था कि बुखारा से उजबेगों की भारी सेना आ रही है, उस सेना के भय से हुमायूँ के सैनिक भाग खड़े हुए थे।
हुमायूँ अपने घोड़े पर सवार होकर अपनी सेना को रोकने के लिए आया किंतु किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। संयोगवश उसी दिन मिर्जा हिंदाल अपनी सेना लेेकर हुमायूँ के शिविर के पास पहुंचा। उसने हुमायूँ के शिविर को खाली पाया तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ और किसी अनहोनी की आशंका से कुंदूज की तरफ भाग गया।
इस पर हुमायूँ ने गुलबदन के पति खिज्र ख्वाजः खाँ को आदेश दिए कि वह मिर्जाओं का पता लगाए कि मिर्जा लोग बादशाह की सेवा में क्यों नहीं आए? खिज्र खाँ दो दिन बाद समाचार लाया कि मिर्जा हिंदाल कुंदूज पहुंच गया है। इस बीच मिर्जा सुलेमान अपनी सेना लेकर बादशाह से आ मिला। कामरान और मिर्जा अस्करी ने एक बार फिर से मक्कारी की और वे बादशाह की सेवा में नहीं आए।
इस प्रकार अपने भाइयों के असहयोग के कारण हुमायूँ को एक बार फिर से शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा था किंतु इस समय हुमायूँ अपने विद्रोही भाइयों के विरुद्ध कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था। अतः हुमायूँ ने ख्वाजा खिज्र खाँ तथा मिर्जा सुलेमान को अपनी जागीरों में जाने के आदेश दिए तथा स्वयं भी काबुल लौट गया।
मार्ग में उज्बेगों ने हुमायूँ तथा सुलेमान दोनों पर आक्रमण किए। हुमायूँ के पास बहुत कम सैनिक थे। इसलिए हुमायूँ को स्वयं उज्बेगों के विरुद्ध हुए युद्ध में तलवार चलानी पड़ी। हुमायूँ ने उज्बेगों की इस टुकड़ी को परास्त कर दिया तथा बलख नदी पार करके काबुल पहुंचने में सफल हो गया।
उधर सुलेमान की सेना उज्बेगों से बुरी तरह परास्त हुई किंतु सुलेमान जीवित ही जफर दुर्ग तक पहुंचने में सफल रहा। इस प्रकार हुमायूँ द्वारा बलख पर किया गया यह अभियान बुरी तरह विफल हो गया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता