खानवा का युद्ध जीतने के बाद बाबर ने चंदेरी पर आक्रमण किया। चंदेरी का शासक मेदिनीराय इस युद्ध में काम आया जो महाराणा सांगा का सामंत था। चंदेरी से अवकाश पाकर बाबर ने उन क्षेत्रों पर फिर से अधिकार कर लिया जो उसकी खानवा एवं चंदेरी युद्धों की व्यस्तताओं के कारण अफगानों ने दबा लिए थे।
पाठकों को स्मरण होगा कि बाबर ने हुमायूँ को बदख्शां के सैनिकों के साथ अफगानिस्तान लौट जाने की आज्ञा दी थी। बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है- ‘मुझे सूचना मिली कि हुमायूँ ने दिल्ली पहुंचकर दिल्ली के किले में रखा खजाना खुलवाया तथा उसमें से बहुत सा खजाना मेरी अनुमति के बिना अपने अधिकार में ले लिया। मुझे हुमायूँ से ऐसी आशा नहीं थी। इसलिए मैंने हुमायूँ को बड़ी कठोर चिट्ठियां लिखकर उसे भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी दी।’
बाबर ने अपनी पुस्तक में अपनी सेना में नियुक्त तरदी बेग खाकसार नामक एक सेनापति का उल्लेख किया है जो एक दरवेश था और बाबर के कहने से दरवेश का जीवन त्यागकर सैनिक बन गया था किंतु अब वह फिर से दरवेश बनना चाहता था। बाबर ने उसे ऐसा करने की अनुमति दे दी तथा उसे अपना राजदूत नियुक्त करके कामरान के पास कांधार भेज दिया।
बाबर ने उसके हाथों कामरान के लिए 3 लाख रुपए भी भिजवाए। अब बाबर ने कभी भी काबुल या कांधार न लौटने तथा आगरा में ही रहने का निश्चय कर लिया था इसलिए उसने अपनी बेगमों को संदेश भिजवाया कि वे आगरा आ जाएं। बाबर का परिवार बहुत लम्बा-चौड़ा था। बाबर की कई बेगमें थीं जिनमें आयशा सुल्तान बेगम, जैनब सुल्तान बेगम, मासूमा सुल्तान बेगम, बीबी मुबारिका, गुलरुख बेगम, दिलदार बेगम, गुलनार बेगम, नाजगुल अगाचा तथा सलिहा सुल्तान बेगम के नाम मिलते हैं।
इन बेगमों से बाबर को ढेर सारी औलादें प्राप्त हुईं। इनमें हुमायूँ मिर्जा, कामरान मिर्जा, हिंदाल मिर्जा, अस्करी मिर्जा, अहमद मिर्जा, शाहरुख मिर्जा, बरबुल मिर्जा, अलवार मिर्जा, फारूख मिर्जा, फख्रउन्निसा बेगम, ऐसान दौलत बेगम, मेहर जहान बेगम, मासूमा सुल्तान बेगम, गुलजार बेगम, गुलरुख बेगम, गुलबदन बेगम, गुलचेहरा बेगम तथा गुलरांग बेगम के नाम प्रमुखता से मिलते हैं। इनमें से कुछ पुत्रों एवं पुत्रियों की मृत्यु बाबर के जीवनकाल में हो गई थी। बाबर की कुछ बेगमों एवं पुत्रियों के नाम एक जैसे मिलते हैं।
यद्यपि बाबर का परिवार बहुत बड़ा था तथापि बाबर अपने परिवार से बहुत प्रेम करता था। इसका एक बहुत बड़ा कारण यह था कि बाबर की तरह बाबर के परिवार ने भी जीवन भर अनेक कष्ट सहे थे और दर-दर की ठोकरें खाई थीं किंतु हर हालत में बाबर का साथ दिया था। इन बेगमों के अतिरिक्त बाबर की बहिनें, बुआएं, मौसियां, मामियां आदि भी बाबर के साथ ही रहती थीं।
बाबर का पिता बहुत कम आयु में अचानक ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था। इसलिए वह बाबर की बहिनों का विवाह नहीं कर सका था। बाबर स्वयं भी 11 वर्ष की आयु से ही युद्धों में व्यस्त हो गया था इस कारण उसे भी अपनी बहिनों एवं पुत्रियों का विवाह करने का अवसर नहीं मिला था। बाबर की कुछ विधवा बुआएं, मौसियां एवं मामियां भी बाबर के हरम में रहा करती थीं। इनमें से कइयों की पुत्रियों के साथ बाबर ने विवाह कर लिए थे।
बाबर को अपने पुत्रों से विशेष स्नेह था क्योंकि बाबर के बेटों ने भी बाबर की तरह ही बहुत कम आयु में जिम्मेदारियों का बोझ अपने कंधों पर ले लिया था और कदम-कदम पर अपने पिता का साथ दिया था। इनमें हुमायूँ तथा कामरान प्रमुख थे। जब बाबर काबुल, कांधार, गजनी तथा बदख्शां पर अधिकार करने में सफल हो गया तो उसने हुमायूँ को बदख्शां का और कामरान को कांधार का गवर्नर नियुक्त किया था। बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम ने लिखा है कि सबसे पहले 23 नवम्बर 1527 को दादी बेगमें फख्रेजहाँ बेगम तथा खदीजा सुल्तान बेगम का भारत आगमन हुआ।
बादशाह उनके स्वागत के लिए सिकंदराबाद में उपस्थित हुआ। बाबर ने भी अपने संस्मरणों में बेगमों के प्रथम दल के आगमन की यही तिथि दी है। गुलबदन बेगम ने लिखा है कि राणा सांगा पर विजय के एक वर्ष बाद आकाम माहम बेगम काबुल से हिन्दुस्तान आई। मैं भी उन्हीं के साथ अपनी बहिनों के आगे ही आकर अपने पिता से मिली। जब आकाम आगरा से कुछ दूरी पर स्थित अलीगढ़ पहुंची तब बादशाह ने दो पालकी तीन सवारों के साथ भेजीं।
जब बादशाह को समाचार मिला कि आकाम बेगम आगरा के निकट पहुंच गई है, तब बाबर पैदल ही बेगम की अगवानी के लिए रवाना हो गया तथा पैदल चलकर ही बेगम को अपने महल तक लाया, बेगम अपनी पालकी में बैठी रही। आकाम के साथ सौ मुगलानी दासियां अच्छे घोड़ों पर सवार होकर आई थीं और बेहद सजी-धजी थीं। बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम तथा उसकी कुछ अन्य बहिनें भी इसी दल के साथ हिन्दुस्तान आई थीं किंतु उन्हें एक बाग में रोक दिया गया और अगले दिन बादशाह के समक्ष प्रस्तुत होने को कहा गया। बाबर ने अगले दिन अपने मंत्री निजामुद्दीन अली मुहम्मद खलीफा को उसकी औरत के साथ शहजादियों की अगवानी करने भेजा।
बेगमों के इस दल के आगरा पहुंचने के कुछ दिन बाद ही बेगमों का एक और दल काबुल से आगरा पहुंचा। इस दल में बाबर की बड़ी बहिन खानजाद बेगम थी जिसका नाम आकः जानम था। अपनी बड़ी बहिन के स्वागत के लिए बाबर आगरा से चलकर नौग्राम तक गया। आकः जानम के साथ बाबर के कुल की बहुत सी बेगमें आई थीं जिनमें बाबर की मौसियां, मामियां, ताइयां आदि शामिल थीं। बाबर इन सबको बड़े प्रेम से आगरा लेकर आया और उन्हें रहने के लिए आवास प्रदान किए।
18 सितम्बर 1528 को बाबर का पुत्र मिर्जा अस्करी भी बाबर के आदेश पर भारत आ गया। इस समय तक मिर्जा अस्करी 12 साल का हो चुका था। बाबर ने उसे मुल्तान का गवर्नर नियुक्त किया। संभवतः अस्करी को मुल्तान में नियुक्त किए जाने से कुछ समय पहले ही कामरान की नियुक्ति कांधार से मुल्तान की जा चुकी थी किंतु अब बाबर ने कामरान की जगह अस्करी को मुल्तान का गवर्नर बनाया और कामरान को काबुल का गवर्नर बनाकर भेज दिया। इस समय हुमायूँ बदख्शां के गवर्नर के पद पर नियुक्त था और बाबर के आदेश पर बदख्शां में ही निवास कर रहा था।
बाबर ने लिखा है कि 15 अक्टूबर 1528 को मैंने आगरा पहुंचकर खदीजा बेगम से भेंट की तथा 17 अक्टूबर 1528 को अपनी तीन दादी बेगमों गौहर शाद बेगम, बदी उल जमाल बेगम तथा आकः बेगम और अन्य छोटी बेगमों सुल्तान मसऊद मिर्जा की पुत्री खानजादा बेगम, सुल्तान बख्त बेगम की पुत्री मेरी यीनका और जैनम सुल्तान बेगम से भेंट की। अर्थात् इस समय तक लगभग सारी बेगमें काबुल से भारत आ चुकी थीं। बाबर ने लिखा है कि वह मुगल बेगमों को आगरा, सीकरी, धौलपुर एवं बयाना आदि स्थानों पर बाबर द्वारा बनवाए गए बगीचे, पानी के हौज तथा भवन आदि दिखाने ले गया।
एक दिन बाबर ने बेगमों के सामने उस्ताद अली कुली द्वारा बनाई गई विशाल तोप का प्रदर्शन करवाया जो बहुत दूरी तक पत्थर के गोले फैंकती थी। प्रदर्शन के दौरान यह तोप फट गई जिससे आठ सैनिकों की मृत्यु हो गई किंतु फटने से पहले तोप ने पत्थर का गोला काफी दूरी तक फैंक दिया था।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता