Saturday, April 19, 2025
spot_img

सुंदर दासियाँ पाने के लिए हजारों नौजवान अफगानिस्तान से भारत चल पड़े (15)

अफगानिस्तान के लोगों ने भारत की सुंदर औरतों के किस्से सुन रखे थे। जब बाबर भारत पर अधिकार करने के लिए चला तो भारत से सुंदर दासियाँ पाने के लालच में हजारों नौजवान बाबर की सेना में भरती हो गए।

ई.1513 में उज्बेगों द्वारा बाबर को एक बार फिर समरकंद से बाहर कर दिए जाने के कारण बाबर पुनः काबुल आ गया। तीसरी बार समरकंद हाथ से निकल जाने के बाद बाबर ने मध्य-एशिया पर राज करने का लालच छोड़ दिया तथा दिखकाट की बुढ़िया की सलाह के अनुसार भारत जाकर भाग्य आजमाने का निर्णय लिया। ई.1519 में बाबर ने बिजौर के लिए अभियान किया। बाबर की बहिन गुलबदन बेगम ने अपनी पुस्तक ‘हुुमायूंनामा’ में लिखा है कि बिजौर में हिन्दुओं की बस्ती थी।

गुलबदन बेगम के अनुसार बाबर ने दो-ढाई घड़ी में बिजौर को जीत लिया जबकि बाबर ने लिखा है कि बिजौर को जीतने में कई दिन लगे। बाबर ने बिजौर के दुर्ग में रह रहे समस्त मनुष्यों को मरवा दिया। बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है- ‘बिजौर के दुर्ग में मैंने अपने लोगों को बसा दिया।’

बिजौर के हत्याकाण्ड से बाबर को कोई विशेष धन या सामग्री प्राप्त नहीं हुई। इससे बाबर को बड़ी निराशा हुई और वह भेरा के लिए रवाना हो गया।

16 फरवरी 1519 को बाबर ने पहली बार सिंधुनदी पार की। 18 फरवरी को बाबर तथा उसकी सेना ने कचाकोट नामक नदी पार की तथा वहाँ रहने वाले गूजरों को मार डाला। 19 फरवरी को बाबर की सेना ने सूहान नदी पार की। इसके बाद उसने झेलम नदी के किनारे स्थित खूशआब, चीनाब तथा चीनी ऊत नामक क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

उस काल में ये क्षेत्र पंजाब के अंतर्गत थे जिस पर कुछ काल के लिए तैमूर लंग का शासन रहा था। इसलिए बाबर ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि इस क्षेत्र में किसी की भेड़, सूत का एक टुकड़ा या किसी भी प्रकार का सामन न छीनें। भेरा भारत के सीमांत पर झेलम नदी के किनारे भारत की सीमा में स्थित था। जब बाबर की सेना ने भेरा को घेर लिया तो भेरा के मुस्लिम शासक ने बाबर को चांदी के चार लाख सिक्के देकर बाबर की अधीनता स्वीकार कर ली जिन्हें शाहरुखी कहा जाता था। संभवतः समरकंद के शासक शाहरुख के शासनकाल में चलाए जाने के कारण इन्हें शाहरुखी कहा जाता था। इन सिक्कों का प्रचलन अफगानिस्तान में भी होता था। भेरा के शासक द्वारा कर दिए जाने के कारण बाबर ने भेरा में न तो लूटपाट मचाई और न किसी को मारा। यहाँ से बाबर ने अपना एक दूत लाहौर तथा दिल्ली भिजवाया। इस दूत को दो पत्र दिए गए। पहला पत्र पंजाब के गवर्नर दौलत खाँ के नाम था और दूसरा पत्र दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी के नाम था।

इन पत्रों में कहा गया था- ‘पंजाब के वे समस्त क्षेत्र जो मेरे मरहूम दादा के दादा तैमूर लंग ने अपने अधीन किए थे, वापस मुझे लौटा दिए जाएं।’

इस दूत ने लाहौर पहुंचकर दौलत खाँ से भेंट करने का प्रयास किया किंतु दौलत खाँ न तो स्वयं उस दूत से मिला और न उस दूत को दिल्ली जाने दिया। बाबर ने लिखा है- ‘अवश्य ही भारत वाले कम अक्ल के रहे होंगे जो उन्होंने मेरे दूत के साथ ऐसा व्यवहार किया।’

जब बाबर का दूत अपेक्षित अवधि में लौट कर नहीं आया तो बाबर ने झेलम नदी के निकटवर्ती क्षेत्रों में अपने गवर्नर नियुक्त कर दिए तथा स्वयं काबुल लौट गया। बाबर का दूत भी कुछ महीने तक लाहौर में प्रतीक्षा करने के बाद काबुल लौट आया।

एक दिन बाबर की भेंट उस्ताद अली नामक एक तुर्क से हुई। उस्ताद अली कमाल का आदमी था। उसे बंदूक बनाने की कला आती थी और वह कुछ अन्य तरह का विस्फोटक जखीरा भी बनाना जानता था। बाबर ने उसकी बड़ी आवभगत की और उसकी मदद से अपने लिये नये तरह का असला तैयार करवाया।

कुछ ही समय बाद बाबर के पास एक और ऐसा चमत्कारी आदमी आया। उसका नाम मुस्तफा था। उसे बारूद के गोले चलाने वाली तोप बनाना और उसे सफलता पूर्वक चलाना आता था। बाबर ने इन दोनों आदमियों की सहायता से अपने लिये एक शक्तिशाली तोपखाने का निर्माण करवाया।

गोला-बारूद, बंदूक और तोप की शक्ति हाथ में आ जाने के बाद बाबर ने अपनी योजना पर तेजी से काम किया। नवम्बर 1525 में बाबर ने एक बार फिर भारत की ओर रुख किया। इस बार बाबर ने दिल्ली तक जाने का निश्चय किया।

अब तक बाबर समझ चुका था कि यदि उसे भारत को जीतना है तो उसे कैसी तैयारी करनी चाहिए! बाबर ने अपने आदमी पूरे अफगानिस्तान में फैला दिये जिन्होंने घूम-घूम कर प्रचार किया कि बाबर फिर से सुन्नी हो गया है और हिन्दुस्तान की बेशुमार दौलत लूटने के लिये हिन्दुस्तान जा रहा है। हिन्दुस्तान से मिलने वाला सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात और सुंदर दासियाँ बाबर के सिपाहियों में बांटी जायेंगी।

सैंकड़ों साल से बाबर के तुर्क एवं मंगोल-पूर्वज अफगानी बर्बर-लड़ाकों की सेना लेकर हिन्दुस्तान पर हमला बोलते आये थे। जब उनके सैनिक भारत से लौटते तो उनकी जेबें बेशुमार दौलत से भरी रहतीं। सोने-चांदी की अशर्फियाँ, हीरे-जवाहरात और कीमती आभूषण उन्हें लूट में मिलते थे।

प्रत्येक सैनिक के पास दस-बीस से लेकर सौ-दौ सौ तक की संख्या में गुलाम होते थे जो बहुत ऊँचे दामों में मध्य-एशिया के बाजारों में बिका करते थे। हिन्दुस्तान से लूटी गयी सुंदर दासियाँ उनके हरम में शामिल होती थीं। भारत में युद्ध-अभियान करके लौटे हुए सैनिकों का सब ओर बहुत आदर होता था क्योंकि वे सैनिक अनेक काफिरों को मारकर अपने लिये जन्नत में जगह सुरक्षित कर चुके होते थे और उनके घरों में सुंदर भारतीय दासियां काम करती थीं।

चंगेज खाँ और तैमूर लंग के समय के किस्से अब भी मध्य-एशियाई देशों में बहुत चाव से कहे और सुने जाते थे। जब उन लोगों ने सुना कि बाबर फिर से सुन्नी हो गया है और बहुत बड़ी सेना लेकर हिन्दुस्तान पर हमला करने जा रहा है तो मध्य-एशिया के बेकार नौजवानों ने बाबर की सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया।

बेशुमार दौलत और सुंदर दासियाँ पाने के लालच में हजारों नौजवान अपने घर-बार छोड़कर काबुल के लिये रवाना हो गये। जिन युवकों को उनके स्वजनों ने अनुमति नहीं दी, वे भी रात के अंधेरे में अपने घरों से भाग लिये। ये नौजवान पहाड़ों में डफलियां और चंग बजाते, नाचते-गाते और जश्न मनाते हुए काबुल की ओर चल पड़े।

इन नौजवानों ने बचपन से ही भारत की अमीरी के किस्से सुने थे। अपने पुरखों की वीरताओं के किस्से सुने थे। सुल्तान महमूद गजनवी, सुल्तान मुहम्मद गौरी और तैमूर लंग के किस्से सुने थे। बहुत से नौजवानों के पुरखे इन महान् सुल्तानों की सेनाओं में सैनिक हुआ करते थे।

उनके द्वारा भारत से सोने-चांदी के बर्तन, सिक्के और कीमती पत्थर लूट कर लाए गए थे वे खानदानी गौरव के रूप में कई पुश्तों से उनके घरों में सजे हुए थे। महमूद गजनवी और मुहम्मद गौरी के इतिहास परी-कथाओं की तरह अफगानिस्तान से लेकर सम्पूर्ण मध्य-एशिया में व्याप्त थे।

जब कराकूयलू कबीले के नौजवान बैराम खाँ ने सुना कि बाबर हिन्दुस्तान की बेशुमार दौलत लूटने के लिये हिन्दुस्तान जा रहा है तब उसने भी बाबर के साथ भारत जाने का निश्चय किया।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source