मंगोल सम्राट बर्के खाँ के इस्लाम स्वीकार करने से मंगोल राजनीति उलझ गई! मुसलमान बनने वाला वह पहला मंगोल शासक था।
तेरहवीं शताब्दी ईस्वी के मध्य में मंगोल सेनाएं मध्य-एशिया के खीवा, ख्वारिज्म, बगदाद, एशिया-कोचक आदि राज्यों को जीतने के बाद सीरिया, अलीपो, दमस्कस तथा फिलिस्तीन को जीतने में सफल रहीं किंतु मिस्र के मामलुक तुर्कों ने फिलिस्तीन पर अधिकार करने वाली मंगोल सेना को परास्त करके मंगोलों का विजय रथ रोक दिया।
ई.1259 में मंगू खाँ की मृत्यु हो जाने से मंगोल साम्राज्य पर अधिकार करने को लेकर मंगोलों में अंतर्कलह आरम्भ हो गई थी, इसलिए फिलीस्तीन में हारने वाली मंगोल सेना को मंगोल सम्राट की ओर से सहायता नहीं भिजवाई जा सकी।
ई.1265 में हलाकू खाँ की तथा ई.1266 में बरके खाँ की भी मृत्यु हो जाने से मंगोलों की शक्ति को बड़ा धक्का लगा। हलाकू तथा बरके खाँ के वंशजों में परस्पर मनमुटाव होने से मंगोलों का आंतरिक संघर्ष अपने चरम पर पहुंच गया। फिर भी हलाकू ने अपनी मृत्यु से पहले फारस में अपनी शक्ति को मजबूत बना लिया था। इस कारण हलाकू के वंशज ई.1265 से लेकर ई.1335 तक फारस पर शासन करते रहे।
मंगोल सम्राट मंगू खाँ की मृत्यु के समय जो मंगोल सरदार जिस क्षेत्र में राज्य करता था, उसने वहीं के लोगों का धर्म अपना लिया। चीन और मंगोलिया के मंगोल ‘बौद्ध’ हो गए। रूस और हंगरी में रह रहे मंगोल ‘ईसाई’ हो गए। जबकि मध्य-एशिया के मंगोलों ने अब तक कोई धर्म स्वीकार नहीं किया था। मान्यता है कि बरके खाँ पहला मंगोल शासक था जिसने ‘इस्लाम’ कुबूल किया। पाठकों को स्मरण होगा कि चंगेज खाँ की बड़ी रानी बोर्ते को एक शत्रु कबीला उठाकर ले गया था। जब चंगेज खाँ की रानी वापस चंगेज खाँ के पास आई तब उसके पेट से जोच्चि नामक पुत्र का जन्म हुआ। चंगेज खाँ ने जोच्चि को अपना पुत्र घोषित करके उसका पालन-पोषण किया था। बरके खाँ इसी जोच्चि का पुत्र था। बरके खाँ का जन्म मंगोलिया में हुआ था।
बरके खाँ द्वारा इस्लाम अपनाए जाने के सम्बन्ध में अरब देशों में अलग-अलग कहानियाँ प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार एक बार शहजादा बरके खाँ बाजार से गुजर रहा था। उसने देखा कि लम्बी दाढ़ी वाला एक दरवेश सड़क के किनारे सो रहा है, उसके पास एक कुत्ता भी सो रहा है।
शहजादे ने सवारी से उतरकर उस दरवेश के मुँह पर अपना पैर रख दिया और उसकी दाढ़ी की ओर बड़ी हिकारत भरी दृष्टि से देखकर पूछा- ‘बता तू अच्छा या यह कुत्ता?’
दरवेश ने कहा- ‘यदि मेरी मौत ईमान पर हुई तो मैं अच्छा, वर्ना यह कुत्ता अच्छा!’
दरवेश का उत्तर सनुकर बरके बरके खाँ ने दरवेश के मुँह से अपना पैर हटा लिया और उससे पूछा- ‘यह ईमान क्या चीज़ है?’
दरवेश ने कहा- ‘ईमान एक ऐसी दौलत है जिसे न तुम्हारा दादा लूट सका और न यह तुम्हारे हाथ आएगी, चाहे तुम सौ साल हुकूमत कर लो।’
शहजादे ने कहा- ‘किन्तु मुझे वह चाहिये।’
दरवेश ने कहा- ‘अभी तुम बहुत छोटे हो इसलिए ईमान की दौलत को नही संभाल सकते।’
इस पर शहज़ादे ने अपने हाथ से अंगूठी निकालकर उस दरवेश को दी और बोला- ‘जब मैं खान बनूं, तब तुम यह अंगूठी लेकर मेरे पास आना।’
इस घटना को बहुत दिन बीत गए और शहजादा बरके खाँ युवा होकर खान बन गया। इस पर वह दरवेश एक दिन वही अंगूठी लेकर बरके खाँ के पास पहुंचा और बोला- ‘अब तुम इस लायक हो गए हो कि ईमान की दौलत संभाल सको।’
बरके खाँ ने पूछा- ‘ईमान की दौलत संभालने के लिए क्या करना होगा?’
बूढ़े ने कहा- ‘इसके लिए तुम्हें मुसलमान बनना पड़ेगा। मैं तुम्हें इस्लाम की दावत देता हूँ।’
बरके खाँ ने इस्लाम की दावत स्वीकार कर ली और मुसलमान बन गया। अरब में प्रचलित कहानियों के अनुसार उस बूढ़े दरवेश का नाम सैफुद्दीन था।
अरब में प्रचलित एक अन्य कहानी के अनुसार आधुनिक कज़ाकिस्तान के पश्चिम में सरय-जुक नामक नगर में एक दिन बरके खाँ की भेंट बुखारा से आए एक कारवां से हुई। उस कारवां में सूफी शेख नामक एक दरवेश भी था। उसने बरके खाँ को बहुत प्रभावित किया। सूफी शेख द्वारा इस्लाम की प्रशंसा किए जाने पर बरके खाँ ने मुसलमान बनना स्वीकार किया। बरके खाँ का भाई तुख-तिमुर भी बरके खाँ के साथ मुसलमान बन गया।
मुसलमान हो जाने के बाद बरके खाँ अपने ही कुल के उन मंगोलों का शत्रु हो गया जो इस्लाम को नहीं मानते थे। बरके खाँ ने अनेक मुस्लिम नगरों को मंगोल आक्रमणों में नष्ट होने से बचाया। जब बरके खाँ को हलाकू द्वारा बगदाद के खलीफा को मारने तथा बगदाद को नष्ट करने के समाचार मिले तो बरके खाँ आग बबूला हो गया। उसने प्रतिज्ञा की कि अल्लाह की सहायता से मैं निर्दाेष खलीफा के खून का बदला लूँगा।
कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि जब हलाकू को बरके खाँ की इस प्रतिज्ञा के बारे में पता लगा तब तक हलाकू सीरिया को भी जीत चुका था किंतु वह बरके खाँ से उलझना नहीं चाहता था इसलिए हलाकू ने अपने एक सेनापति को सेना की कमान देकर फिलीस्तीन पर आक्रमण करने भेजा और स्वयं एक सेना के साथ फारस लौट गया।
बरके खाँ द्वारा इस्लाम स्वीकार किए जाने से मंगोलों की राजनीति उलझ गई। अब वे दो स्पष्ट धड़ों में बंट चुके थे। इनमें से एक धड़ा इस्लाम का शत्रु था और दूसरा धड़ा इस्लाम स्वीकार करके उसका अनुयायी बन चुका था। ई.1266 में अज़रबैजान में बरके खाँ की मृत्यु हुई।
ई.1292 में हलाकू के पोते अब्दुल्ला के नेतृत्व में एक मंगोल सेना ने भारत पर आक्रमण किया। दिल्ली के तुर्क सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने अब्दुल्ला की सेना पर हमला करके उसे परास्त कर दिया तथा अब्दुल्ला को मुसलमान बनने का निमंत्रण दिया। अब्दुल्ला ने मुसलमान बनने से मना कर दिया तथा वह फारस लौट गया जबकि अब्दुल्ला के एक भाई उलूग खाँ ने मुसलमान बनने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
दिल्ली के सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने उलूग खाँ से अपनी पुत्री का विवाह कर दिया तथा उसके साथी मंगोलों को दिल्ली के निकट रहने की आज्ञा दी। इस प्रकार कई हजार मंगोल दिल्ली के निकट रहने लगे जिन्हें नव-मुस्लिम कहा जाता था। भारत में मंगोलों का यह पहला समूह था जिसने इस्लाम स्वीकार किया था। बाद में अल्लाउद्दीन खिलजी के समय में मंगोल पुरी के मंगोलों का कत्ले-आम किया गया। उनकी औरतों के साथ बलात्कार किए गए और उन्हें पूरी तरह बरबाद कर दिया गया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता