देशी राज्यों को भारत में सम्मिलित करना एक कठिन कार्य था किंतु कांग्रेस जानती थी कि लौह-पुरुष अपनी धोती समेट कर राजाओं के पीछे पड़ जायेगा!
अंग्रेज सरकार भारत की देशी रियासतों पर राजनैतिक विभाग के माध्यम से शासन करती थी। भारत का गवर्नर जनरल, वायसराय अर्थात् क्राउन रिप्रजेण्टेटिव (ब्रिटेन के राजा के प्रतिनिधि) की हैसियत से इन राजाओं पर अपने बनाये हुए तथा घोषित तथा अघोषित कानून लादता था।
जब भारत की आजादी की तिथि निकट आ गयी तो एक ऐसे विभाग की आवश्यकता अनुभव की गई जो भारत की अंतरिम सरकार की तरफ से देशी राजाओं से पूर्ण अधिकार के साथ बात कर सके। इसलिये 5 जुलाई 1947 को सरदार पटेल के नेतृत्व में रियासती विभाग का गठन किया गया।
कांग्रेस को आशा थी कि पार्टी का यह लौह-पुरुष अपनी धोती समेट कर राजाओं के पीछे पड़ जायेगा। हमीदुल्ला खां, कोरफील्ड तथा रामास्वामी अय्यर की योजना से निबटने तथा स्वतंत्र हुई रियासतों को भारत संघ में घेरने के लिये पटेल अकेले ही भारी थे। सरदार पटेल गुजरात प्रांत की धरती से निकले थे जिसे बौनी रियासतों अथवा नाखूनी रियासतों का संग्रहालय कहा जाता था। इस कारण सरदार पटेल को राजाओं तथा रजवाड़ों के व्यवहार की अच्छी परख थी। अपने दृढ़ स्वभाव के कारण पटेल, राजाओं से उन्हीं की भाषा में अच्छी तरह बात कर सकते थे। वी. पी. मेनन को उनका सलाहकार व सचिव बनाया गया। वे एकमात्र ऐसे अधिकारी थे जो देशी राज्यों की जटिल समस्या को सुलझा सकते थे।
लौह-पुरुष पटेल का जोरदार व्यक्तित्व और मेनन के लचीले दिमाग का संयोग इस मौके पर अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुआ। पटेल और मेनन की जोड़ी के साथ नेपथ्य में मंजे हुए राजनीतिज्ञ- सरदार के. एम. पन्निकर, वी. टी. कृष्णामाचारी, भारतीय रियासतों के प्रतिष्ठित मंत्री और भारतीय सिविल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी- सी. एस. वेंकटाचार, एम. के. वेल्लोदी, वी. शंकर, पण्डित हरि शर्मा आदि कार्य कर रहे थे।
पटेल ने मेनन से कहा कि पाकिस्तान इस विचार के साथ कार्य कर रहा है कि सीमावर्ती कुछ राज्यों को वह अपने साथ मिला ले। स्थिति इतनी खतरनाक संभावनायें लिये हुए है कि जो स्वतंत्रता हमने बड़ी कठिनाईयों को झेलने के पश्चात् प्राप्त की है वह राज्यों के दरवाजे से विलुप्त हो सकती है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता