गांधाजी को यह किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं था कि देश का विभाजन हो किंतु सरदार पटेल का मानना था कि यदि देश का विभाजन नहीं होता तो हमारे हाथ से सबकुछ चला जाता!
14 जून 1947 को कांग्रेस के अधिवेशन में माउन्टबेटन योजना पर विचार प्रकट करते हुए गोविन्द वल्लभ पंत ने कहा- ‘3 जून, 1947 की योजना की स्वीकृति ही स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए एकमात्र मार्ग है…….आज कांग्रेस को या तो इस योजना को स्वीकार करना है अथवा आत्महत्या करनी है।’
सरदार पटेल ने भारत विभाजन के प्रस्ताव की अनिवार्यता बताते हुए कहा- ‘यदि शरीर का एक भाग खराब हो जाये तो उसको शीघ्र हटाना ठीक है, ताकि सारे शरीर में जहर न फैले। मैं मुस्लिम लीग से छुटकारा पाने के लिए भारत का कुछ भाग देने के लिए तैयार हूँ।’
इस प्रकार देशवासियों ने भारी मन से भारत विभाजन का निर्णय स्वीकार कर लिया। 7 अगस्त 1947 को जिन्ना ने सदा-सदा के लिये भारत छोड़ दिया और वह कराची चला गया। जिन्ना के जाने के अगले दिन सरदार पटेल ने वक्तव्य दिया- ‘भारत के शरीर से जहर अलग कर दिया गया। हम लोग अब एक हैं और अब हमें कोई अलग नहीं कर सकता। नदी या समुद्र के पानी के टुकड़े नहीं हो सकते। जहाँ तक पाकिस्तान में जाने वाले मुसलमानों का सवाल है, उनकी जड़ें, उनके धार्मिक स्थान और केंद्र यहाँ हैं। मुझे पता नहीं कि वे पाकिस्तान में क्या करेंगे। बहुत जल्दी वे हमारे पास लौट आयेंगे।’ आजादी मिलने के बाद सरदार ने कहा- ‘यदि पाकिस्तान स्वीकार नहीं किया जाता तो प्रत्येक दफ्तर में पाकिस्तान की एक इकाई स्थापित हो जाती।’
सरदार पटेल को पूरी तरह स्पष्ट हो गया था कि जिन्ना को पूरा भारत देकर भी भारत को बचाया नहीं जा सकता। जितना भी भारत बच रहा है, उसे ले लिया जाये अन्यथा पूरा भारत हाथ से निकल जायेगा।
इसीलिये सरदार पटेल ने अपने वक्तव्य में कहा- ‘भारत को मजबूत और सुरक्षित करने का यही तरीका है कि शेष भारत को संगठित किया जाये। …….बंटवारे के बाद हम कम से कम 75 या 80 प्रतिशत भाग को शक्तिशाली बना सकते हैं, शेष को मुस्लिम लीग बना सकती है।’
आजादी मिलने के बाद नवम्बर 1947 में सरदार पटेल ने नागपुर में वक्तव्य दिया- ‘हम उस समय ऐसी अवस्था पर पहुँच गये थे कि यदि हम देश का विभाजन न मानते तो सब-कुछ हमारे हाथ से चला जाता।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता