चुनावी टिकटों का बंटवारा राजनीतिक दलों के लिए बहुत बड़ा संकट रहा है। जो लोग निःस्वार्थ भाव से जनता की सेवा करते हैं, वे अपने लिए कभी पद नहीं मांगते किंतु जो लोग सत्ता एवं शक्ति प्राप्त करने के लिए राजनीतिक दलों में घुस जाते हैं, वे चुनावी टिकटों का बंटवारा होते समय चालाकियां दिखाकर टिकट पा जाते हैं। पटेल ने केन्द्रीय एवं प्रांतीय सभाओं में चुनावी टिकटों का बंटवारा करने के लिए मार्गदर्शी सिद्धांतों का निर्माण किया।
तीन गोलमेज सम्मेलनों के आयोजन के बाद सरकार ने भारत सरकार अधिनियम 1935 का निर्माण किया तथा केन्द्र एवं ब्रिटिश भारतीय प्रांतों में विधान सभाओं का गठन करने के लिये आम चुनाव करवाये। कांग्रेस ने भी विधान सभाओं के चुनाव लड़ने का निर्णय लिया तथा वल्लभभाई की अध्यक्षता में एक संसदीय उपसमिति का गठन किया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा मौलाना अबुल कलाम आजाद को इसका सदस्य बनाया गया।
आगामी चुनावों के लिये प्रत्याशियों के नाम तय करने की जिम्मेदारी सरदार पटेल को दी गई। सरदार पटेल ने कुछ मानदण्ड निर्धारित किये तथा उन्हीं के अनुसार प्रत्याशियों का चयन किया। जो लोग स्वयं को पटेल के निकट समझते थे, उनमें से बहुतों को टिकट नहीं मिले। इस कारण वे लोग, पटेल से नाराज हो गये। जब कुछ कांग्रेसियों ने उन्हें हिटलर कहा तो पटेल ने केवल इतना ही जवाब दिया कि निर्धारित मानदण्ड के अनुसार जिनमें पात्रता थी, केवल उन्हीं को टिकट दिये गये हैं।
इस प्रकार सरदार पटेल ने भारत के लिये उन मार्गदर्शी सिद्धांतों का निर्माण किया जिनके आधार पर राजनैतिक दलों द्वारा लोकसभा, राज्यसभा और विधान सभाओं के टिकट दिये जाने चाहिये। केंद्रीय विधान सभा में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला। फरवरी 1937 में हुए प्रांतीय विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को छः प्रांतों- मद्रास, बम्बई, बिहार, उड़ीसा, संयुक्त प्रान्त और मध्य प्रान्त में स्पष्ट बहुमत मिला। तीन प्रान्तों- बंगाल, असम और उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी रही।
दो प्रान्तों- पंजाब और सिन्ध में कांग्रेस को बहुत कम सीटें मिलीं। सरदार पटेल का विचार था कि जिन प्रांतों में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला था, वहाँ उसे सरकार बनानी चाहिये तथा पार्टी को यह जिम्मेदारी संभालने से हिचकना नहीं चाहिये। मदनमोहन मालवीय आदि बहुत से नताओं ने सरदार पटेल के विचार का तीव्र विरोध किया। उनका कहना था कि गवर्नर जनरल यह आश्वासन दे कि प्रान्तों के गवर्नर, मंत्रियों के काम में हस्तक्षेप नहीं करेंगे तो कांग्रेस, सरकार बनाये अन्यथा विपक्ष में बैठे। गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो ने ऐसा आश्वासन देने से मना कर दिया। गांधीजी कोई निर्णय नहीं ले सके और अंततः कांग्रेस ने सरकार बनाने से मना कर दिया।
इस पर अन्य दलों को प्रान्तीय सरकारें बनाने के लिए आमंत्रित किया गया तथा समस्त प्रांतों में अल्पमत की सरकारों का गठन हुआ। इस कारण प्रांतों में कोई काम नहीं हो सका। 21 जून 1937 को गवर्नर जनरल द्वारा सहयोग करने का आश्वासन दिये जाने पर 7 जुलाई 1937 को बहुमत वाले प्रान्तों में कांग्रेस ने अपने मंत्रिमण्डल बनाये।
अगले वर्ष कांग्रेस ने दूसरे दलों के सहयोग से असम और उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त में भी अपने मंत्रिमण्डल बना लिये। कांग्रेस ने मुस्लिम लीग से किसी भी प्रांत में समझौता नहीं किया। बंगाल, पंजाब और सिन्ध में गैर-कांग्रेसी मन्त्रिमण्डल बने। ई.1939 तक प्रान्तीय मंत्रिमण्डल सुचारू रूप से कार्य करते रहे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता