मोहनदास कर्मचंद गांधी का ई.1914 में भारतीय राजनीति में पदार्पण हुआ था। विगत 16 साल की दीर्घ अवधि में वे चम्पारन आंदोलन तथा सत्याग्रह आंदोलन चला चुके थे जिन्हें बिना किसी सफलता के बंद कर दिया गया था। ई.1930 में गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने की घोषणा की। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए सरदार पटेल ने जनता का आह्वान किया कि जब तोपों से गोले बरसते हैं, तभी इतिहास बनता है!
जब गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की घोषणा की तो साबरमती से दाण्डी तक की पैदल यात्रा करके नमक कानून तोड़ने का कार्यक्रम बनाया। यह यात्रा 12 मार्च 1930 को आरम्भ होनी थी। गांधी ने इसे सफल बनाने की पूरी जिम्मेदारी सरदार पटेल पर डाल दी।
सरदार अपना झोला उठाकर गुजरात के दौरे पर निकल गये और गांव-गांव जाकर उन्होंने गांधी की दाण्डी यात्रा की जानकारी दी तथा लोगों को सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्व के बारे में समझाया। उन्होंने अपने ओजस्वी वक्तव्यों से पूरे गुजरात में धूम मचा दी। वे लोगों को घरों से निकलकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने को कहते-
‘दुनिया आपसे सवाल करेगी कि आपने क्या किया ? मैं किसानों और दूसरों से पूछता हूँ कि आपकी ईश्वर में या स्वयं में आस्था है या नहीं ? क्या आप नहीं जानते कि जो जन्मा है, वह एक दिन अवश्य मरेगा। मौत से कोई नहीं बच सकता। इसलिए मरना है तो बहादुरों की मौत मरो। कायरों की नहीं। जब तोपों से गोले बरसते हैं, हवाई जहाजों से बम गिरते हैं, हजारों की संख्या में लोग मरते हैं, तभी इतिहास बनता है। वह दिन हमारे यहाँ कब आएगा ? वह दिन तभी आयेगा जब एक भी गुजराती, सरकार का साथ नहीं देगा। हम साबरमती के संत की बात को समझ लें तो यह सब आसान हो जायेगा। आवश्यकता इस बात की है कि आप अधिक से अधिक संख्या में गिरफ्तारियां दें।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता