इस काल तक सरदार पटेल न केवल गुजरात कांग्रेस के अपितु अखिल भारतीय कांग्रेस के भी सर्वमान्य नेता बन गए थे। उन्होंने बोरसद, खेड़ा, अहमदाबाद एवं बारदोली में सफल आंदोलन चलाए थे। कांग्रेसी नेताओं को सरदार पटेल की वाणी में बालगंगाधर तिलक की अनुगूंज सुनाई देती थी।
अभी सरदार पटेल महाराष्ट्र में जन-जागरण के कार्य से निवृत्त हुए ही थे कि उन्हें चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने वेदारण्य में होने वाले तलिमनाडु राजनैतिक सम्मेलन की अध्यक्षता के लिये आमंत्रित किया। पटेल ने सदा की तरह अनिच्छा प्रकट कर दी। इस पर राजाजी ने गांधीजी से सम्पर्क किया। गांधीजी ने इस बार भी अपना आदेश दोहरा दिया और वल्लभभाई को तमिलनाडु जाना पड़ा।
उन दिनों तमिलनाडु में ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मणों में वैमनस्य अपने चरम पर था। राजाजी ने पटेल से आग्रह किया कि वे इस दिशा में कुछ करें। पटेल ने इस सम्मेलन में भी लोगों से यह कहा कि केवल नारेबाजी करने और प्रस्ताव पारित करने से कुछ नहीं होता, ठोस रचनात्मक कार्य करें तथा अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का मार्ग अपनायें। सम्मेलन के बाद पटेल ने तमिलनाडु के गांवों का व्यापक दौरा किया तथा ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मण समुदायों के लोगों से बात की। पटेल ने गैर-ब्राह्मण समुदायों के लोगों को समझाया कि क्या ब्राह्मणों ने आपका उतना बुरा कर दिया है, जितना अंग्रेजों ने किया है ? पांच हजार मील दूर से आकर वे आपके ऊपर शासन कर रहे हैं।
वे विजातीय हैं, फिर भी ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण दोनों ही समुदायों के लोग उनकी पूजा करते हैं! ब्राह्मण ऊँचे कैसे हैं ? सबसे ऊँचा तो वह है जो अन्न उपजाकर दूसरों को भोजन देता है। फिर आप ब्राह्मणों को ऊँचा और स्वयं को नीचा क्यों मानते हैं ? पटेल ने ब्राह्मणों को भी समझाया कि वे समस्त लोगों से बराबरी का व्यवहार करें। यही उचित है। यदि समाज एक नहीं हुआ तो हम विदेशी शासकों का राज समाप्त नहीं कर पायेंगे।
सरदार के शब्दों का जादू ऐसा था कि ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण दोनोें ही समुदायों के लोगों पर उनकी बातों का गहरा असर पड़ा तथा उनके बीच के मनमुटाव में कमी आई।
अभी सरदार तमिलनाडु में ही थे कि गंगाधरराव देशपाण्डे ने उन्हें कर्नाटक में दो दिन का दौरा करने का निमंत्रण दिया। सरदार ने उस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। गंगाधरराव कर्नाटक में किसानों का एक संगठन बनाना चाहते थे। सरदार पटेल ने दो दिन में दस विशाल जनसभाओं को सम्बोधित किया तथा किसानों को निर्भय होने एवं संगठित होने के लिये प्रेरित किया।
उन्होंने किसानों को समझाया कि किसी से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, न नौकरशाही से, न पुलिस से, न जेल से, न कुर्की से, न अत्याचार से। संगठित और निर्भय होकर इन समस्त समस्याओं का सामना किया जा सकता है। उन्होंने किसानों से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का भी आह्वान किया।
जब सरदार किसानों को सम्बोधित कर रहे थे तो गंगाधरराव को लगा जैसे बालगंगाधर तिलक बोल रहे हैं। उनकी वाणी में वही ओज, आंखों में वही आक्रोश दिखाई दिया। महादेव भाई ने भी सरदार के बारे में लिखा है कि उनकी वाणी में बाल गंगाधर की अनुगूंज सुनाई देती है। दोनों के हाव-भाव में भी समानता है। दोनों बाहर से जितने कठोर लगते हैं, अंदर से उतने ही कोमल हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता