कांग्रेस के आह्वान पर देश की जनता ने बड़ी संख्या में सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया। इसे असहयोग आंदोलन भी कहा जाता है। जनता समझ रही थी कि इस आंदोलन से भारत को आजादी मिल जाएगी किंतु जब चौरीचौरा की घटना हुई तो गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन बंद करने की घोषणा कर दी। अचानक हुई इस घोषणा से देशवासियों को धक्का लगा।
पूरे देश में सत्याग्रह आंदोलन जोरों से चल रहा था। इस कारण अंग्रेज सरकार की हालत पतली हो गई। लोग लाठियां खा रहे थे और आंदोलन, धरने, जुलूस तथा प्रदर्शन कर रहे थे। देश की जनता ने अहिंसा के सिद्धांत में पूर्ण विश्वास रखते हुए कहीं भी पुलिस पर हाथ नहीं उठाया। 5 फरवरी 1922 को संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के चौरीचौरा नामक स्थान पर जनता ने सरकार की नीतियों के विरोध में शांतिपूर्ण विधि से जुलूस निकाला।
पुलिस ने आंदोलनकारियों को सबक सिखाने के लिये निर्दोष लोगों पर गोलियां चलाईं। लोगों को गलियों में दौड़ा-दौड़ाकर बेरहमी से पीटा गया। इस पर जनता भी उग्र हो गई तथा सैंकड़ों लोगों ने उग्र होकर पुलिस थाने को घेर लिया। पुलिस वाले जान बचाने के लिये थाने में घुस गये। इस पर जनता ने थाने में आग लगा दी। इस अग्निकाण्ड में 21 पुलिसकर्मी जलकर मर गये। जब यह समाचार गांधीजी को मिला तो उन्होंने यह कहकर सत्याग्रह आंदोलन बंद बंद करने की घोषणा कर दी कि वे ऐसे आंदोलन को नहीं चलायेंगे जिसमें हिंसा हुई हो।
गांधीजी के इस निर्णय से देश की जनता कांग्रेस के विरुद्ध भड़क गई। जनता की दृष्टि में चौरीचौरा की घटना इतनी बड़ी नहीं थी, जिसके कारण राष्ट्रीय स्वतंत्रता के प्रश्न को भी छोड़ दिया जाये। कांग्रेस के भीतर भी गांधीजी के विरुद्ध आवाजें उठने लगीं।
मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपतराय, सुभाषचंद्र बोस, चितरंजनदास तथा जवाहरलाल नेहरू आदि नेताओं ने गांधीजी की प्रकट रूप से आलोचना की और गांधीजी के निर्णय को बहुत बड़ी भूल बताया। गांधजी अकेले पड़ गये। न कांग्रेस के भीतर तथा न कांग्रेस के बाहर, कहीं से भी गांधीजी को समर्थन नहीं मिला। गांधीजी ने 1920 में मुसमलानों द्वारा आरम्भ किये गये खिलाफत आंदोलन को भी अपने असहयोग आंदोलन में जोड़ लिया था।
अतः असहयोग आंदोलन के बंद हो जाने से खिलाफत आंदोलन भी बंद हो गया। इसलिये मुसलमानों ने भी गांधीजी के विरुद्ध आवाज उठाई। ऐसे कठिन समय में वल्लभभाई ने गांधीजी का बचाव करते हुए कहा कि सच्चा सिपाही वह होता है जो अपने सेनापति की आज्ञा का पालन करे, जब सेनापति आगे बढ़ने को कहे तो सिपाही अपनी जान की परवाह किये बिना आगे बढ़े और जब सेनापति पीछे हटने को कहे तो सिपाही बिना किसी संकोच के पीछे हटे। वल्लभभाई के समर्थन के बाद कांग्रेसी नेता चुप हो गये।
जब सत्याग्रह आंदोलन स्थगित हो गया तो सरदार पटेल रचनात्मक कार्य में लग गये। उन्होंने गुजरात विद्यापीठ के लिये राशि एकत्रित करने का काम आरम्भ किया। उन्होंने बहुत भाग-दौड़ करके दस लाख रुपये जमा किये जो उस युग में एक बहुत बड़ी राशि थी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता