गुजरात के खेड़ा गांव में किसानों की समस्या को लेकर एक आंदोलन हुआ। इसे खेड़ा आंदोलन कहा जाता है। यह गुजरात सभा का कार्यक्रम था, कांग्रेस का कार्यक्रम नहीं था।
ई.1917 तक मोहनदास कर्मचंद गांधी की कांग्रेस में कोई विशेष भूमिका तय नहीं हुई थी। इस समय तक कांग्रेस बाल गंगाधर तिलक के हाथों में थी। ई.1917 में गुजरात के गोधरा कस्बे में गुजरात सभा की राजनैतिक परिषद् हुई जिसमें गांधी और पटेल पहली बार एक-दूसरे से मिले। खेड़ा आंदोलन में वल्लभभाई ने अंग्रेजी वेशभूषा त्याग दी!
ई.1917 में खेड़ा क्षेत्र में अतिवृष्टि से अधिकांश किसानों की फसलें नष्ट हो गईं तथा एक-चौथाई पैदावार भी नहीं हुई। इस पर अंग्रेजों ने पैदावार के झूठे आंकड़े तैयार किये तथा किसानों से बलपूर्वक मालगुजारी वसूलने लगे। किसानों ने वल्लभभाई से प्रार्थना की कि वे अंग्रेज सरकार को लगान में छूट देने के लिये कहें।
वल्लभभाई ने स्वयं खेड़ा जिले का दौरा करके सच्चाई का पता लगाया तथा बम्बई सरकार को लिखा कि फसलें पच्चीस प्रतिशत भी नहीं हुई हैं इसलिये किसानों का लगान माफ किया जाये। अंग्रेजों ने लगान माफ करने से मना कर दिया। इस पर वल्लभभाई ने गांधीजी को लिखा। गांधीजी ने खेड़ा के किसानों के लिये सत्याग्रह करना स्वीकार कर लिया तथा वल्लभभाई को लिखा कि मुझे कोई ऐसा व्यक्ति चाहिये जो सत्याग्रह के दौरान हर समय मेरे साथ रहे। इस पर वल्लभभाई ने अपना विदेशी पहनावा त्यागकर धोती कुर्ता पहन लिया और स्वयं भी सत्याग्रह में सम्मिलित हो गये। इस प्रकार चम्पारण के बाद देश में दूसरा महत्त्वपूर्ण सत्याग्रह गुजरात प्रांत के खेड़ा क्षेत्र में आरम्भ हुआ।
स्वतंत्रता आंदोलन में यह पटेल का सबसे पहला संघर्ष था। सरदार पटेल तथा मोहनदास गांधी ने खेड़ा क्षेत्र के किसानों का आह्वान किया कि वे सरकार को लगान न दें। इस पर सरकार ने किसानों पर अत्याचार किये तथा उनकी जमीनें जब्त कर लीं। बहुत से किसानों के पशुओं की नीलामी करके भूराजस्व वसूल किया गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता