सरदार पटेल की मोहनदास गांधी से भेंट वर्ष 1917 में खेड़ा में हुई। इस समय तक पटेल न तो गांधी को पसंद करते थे और न उनके भाषणों को।
ई.1917 में चम्पारन आंदोलन आरम्भ करके मोहनदास कर्मचंद गांधी समाचार पत्रों में सुर्खियां बटोरने लगे थे। उस समय सरदार पटेल अहमदाबाद में वकालात कर रहे थे किंतु समाज सेवा में भी सक्रिय हो चुके थे। अहमदाबाद में फैली प्लेग की महामारी में पटेल ने समाज को स्तुत्य सेवा दी थी। इस समय तक सरदार पटेल और गांधीजी एक-दूसरे को जानते नहीं थे!
ई.1917 में गोधरा में गुजरात सभा की राजनैतिक परिषद् हुई। इस परिषद में बाल गंगाधर तिलक, उनके परम सहयोगी शापर्डे, विट्ठलभाई पटेल, मोहनदास गांधी और मुहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रीय नेता आये। गुजरात सभा का उद्देश्य गुजरात की जनता में अपने अधिकारों के प्रति जागृति उत्पन्न करने का था। इसी परिषद में सरदार पटेल की मोहनदास गांधी से भेंट हुई। गांधी को इस परिषद का अध्यक्ष और वल्लभभाई को महामंत्री चुना गया।
परिषद में निर्णय लिया गया कि प्रत्येक व्यक्ति गुजराती में ही भाषण देगा, अंग्रेजी में कोई नहीं बोलेगा। उस समय तक देश में गांधी, नेहरू और पटेल को बहुत कम लोग जानते थे जबकि बाल गंगाधर तिलक के भाषणों की धूम मची हुई थी। लोकमान्य तिलक को गुजराती नहीं आती थी इसलिये वे हिन्दी में बोले और शापर्डे ने दुभाषिया बनकर उनके भाषण का गुजराती में अनुवाद सुनाया।
गुजरात सभा का वार्षिक राजनैतिक अधिवेशन ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादारी की शपथ के साथ आरम्भ होता था किंतु इस अधिवेशन के प्रारम्भ में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादारी की शपथ नहीं ली गई क्योंकि गांधीजी का तर्क था कि स्वयं अंग्रेज भी, किसी कार्यक्रम या सभा के आरम्भ में इस प्रकार की शपथ नहीं लेते। गोधरा अधिवेशन में यह भी निर्णय लिया गया कि परिषद की गतिविधियां वर्ष भर चलेंगी, इससे पहले परिषद द्वारा वर्ष में केवल एक अधिवेशन का ही आयोजन किया जाता था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता