जिस समय सरदार वल्लभभाई पटेल बैरिस्टर बनने की पढ़ाई करने एवं उसकी परीक्षा देने के लिए लंदन गए, उस काल में रोमन कानून की पढ़ाई बड़े स्तर पर करनी होती थी। चूंकि समस्त यूरोप की न्याय संहिता का आधार रोमन कानून ही था, इसलिए यूरोपीय न्यायालयों में प्रैक्टिस करने के लिए आवश्यक था कि बैरिस्टर को इस कानून की अच्छी जानकारी हो।
रोमन कानून का जन्म छठी शताब्दी ईस्वी में हुआ था। रोम के सम्राट जस्टीनियन ने अपने काल में प्रचलित समस्त कानूनों को एक जगह एकत्रित करवाया तथा योग्य वकीलों की सहायता से उन्हें क्रमबद्ध रूप में जमाया। इस पुस्तक को ‘कन्स्टीट्यूटिओनम ऑफ जस्टीनियन’ तथा कोड कन्स्टीट्यूटिओनम कहा जाता है। यह संहिता आधुनिक यूरोपीय विधि का प्रमुख स्रोत बनी। रोमन सीनेटरों द्वारा प्रतिपादित कानूनी और विधायी संरचनाओं की व्याख्या ‘नेपोलियन संहिता’ और ‘जस्टीनियन संहिता’ में देखने को मिलती है। रोमन गणराज्य में स्थापित हुई कई परम्पराओं को आज भी यूरोप तथा विश्व के कई आधुनिक राष्ट्रों एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में देखा जा सकता है।
रोमन कानून बहुत लम्बा और जटिल तो था ही, साथ ही भारतीय नैसर्गिक न्याय चिंतन से बिलकुल उलट था। इस कारण रोमन कानून को समझना और उसे याद रख पाना एक दुष्कर कार्य था। भारत से लंदन तक की यात्रा लम्बी, थकाऊ और उबाऊ थी। इस लम्बी, थकाऊ और उबाऊ यात्रा के लिये वल्लभभाई ने पहले से ही अच्छी तैयारी की।
वे भारत से अपने साथ कानून की ढेर सारी पुस्तकें ले गये। जहाँ दूसरे यात्री, यात्रा की बोरियित को मिटाने के लिये मनोरंजन के विविध उपायों का सहारा लेते वहीं वल्लभभाई ने इस समय का उपयोग रोमन कानून का अध्ययन करने में किया।
वे सुबह से शाम तक इन पुस्तकों में खोये रहते, रोमन कानून की बारीकियां समझते और उन्हें याद करने का प्रयास करते। इस प्रकार सी-सिकनेस की बीमारी में भी वे पुस्तकों का आनंद लेते रहे। यात्रा की थकान उन पर हावी नहीं हुई और उन्होंने बोरियत भी अनुभव नहीं की।
भारत से लंदन पहुंचने तक उन्होंने रोमन कानून की कई पुस्तकें पढ़ लीं तथा महत्त्वपूर्ण अंशों को कण्ठस्थ कर लिया। यह तैयारी आगे चलकर बहुत काम आई।
जिस उपाधि को प्राप्त करने के लिये वे लदंन जा रहे थे, और जो असाधारण सफलता वे अर्जित करने वाले थे, उसकी नींव वस्तुतः इस यात्रा के दौरान ही रख ली गई। वल्लभभाई जैसे मनस्वी और दृढ़संकल्पी व्यक्ति के लिये यह कोई कठिन कार्य नहीं था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता