जिन्ना ने इस सिद्धांत पर अलग पाकिस्तान लिया था कि हिन्दु और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते किंतु जब पाकिस्तान बन गया तब जिन्ना ने प्रयास किया कि वह भारत के हिन्दू राज्यों को पाकिस्तान में शामिल करे। इसके लिए उसने हर संभव प्रयास किया किंतु सरदार पटेल के प्रयासों से जिन्ना का षड़यंत्र सफल नहीं हो सका।
संभालिए अपने बच्चे
भारत को स्वतंत्र किये जाने की घोषणा के बाद लंदन इवनिंग स्टैण्डर्ड में कार्टूनिस्ट डेविड लो का एक ‘Your Babies Now’ शीर्षक से छपा था जिसमें भारत के राष्ट्रीय नेताओं के समक्ष भारतीय राजाओं की समस्या का सटीक चित्रण किया गया था। इस कार्टून में नेहरू तथा जिन्ना को अलग-अलग कुर्सियों पर बैठे हुए दिखाया गया था जिनकी गोद में कुछ बच्चे बैठे थे।
ब्रिटेन को एक नर्स के रूप में दिखाया गया था जो यूनियन जैक लेकर दूर जा रही थी। नेहरू की गोद में बैठे हुए बच्चों को राजाओं की समस्या के रूप में दिखाया गया था जो नेहरू के घुटनों पर लातें मार कर चिल्ला रहे थे।
जिन्ना का षड़यंत्र
एक ओर कांग्रेस देशी राज्यों के प्रति कठोर नीति का प्रदर्शन कर रही थी तो दूसरी ओर मुस्लिम लीग ने देशी राज्यों के साथ बड़ा ही मुलायम रवैया अपनाया। मुस्लिम लीग के लिये ऐसा करना सुविधाजनक था। जिन्ना यह प्रयास कर रहा था कि अधिक से अधिक संख्या में देशी राज्य अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दें अथवा पाकिस्तान में सम्मिलित हो जायें ताकि भारतीय संघ स्थायी रूप से दुर्बल बन सके।
जिन्ना राजाओं के गले में यह बात उतारना चाहता था कि कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा देशी राजाओं की साझा शत्रु है। जिन्ना ने लुभावने प्रस्ताव देकर राजपूताना की रियासतों को पाकिस्तान में सम्मिलित करने का प्रयास किया। उसने घोषित किया कि देशी राज्यों में मुस्लिम लीग बिल्कुल हस्तक्षेप नहीं करेगी और यदि देशी राज्य स्वतंत्र रहें तो भी मुस्लिम लीग की ओर से उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नहीं दी जायेगी। लीग की ओर से राजस्थान के राजाओं में गुप्त प्रचार किया जा रहा था कि उन्हें पाकिस्तान में मिलना चाहिये, हिंदी संघ राज्य में नहीं। निजाम हैदराबाद के प्रति माउंटबेटन का रवैया अत्यंत नरम था। जिन्ना ने कोरफील्ड और भोपाल नवाब का उपयोग भारत को कमजोर करने में किया।
पाकिस्तान के प्रति कतिपय हिन्दू राजाओं का रवैया
त्रावणकोर के महाराजा ने 11 जून 1947 को एक व्यापारी दल अपने यहाँ से पाकिस्तान भेजना स्वीकार कर लिया। महाराजा जोधपुर और बहुत सी छोटी रियासतों के शासक बड़े ध्यान से यह देख रहे थे कि बड़ी रियासतों के विद्रोह का क्या परिणाम निकलता है, उसी के अनुसार वे आगे की कार्यवाही करना चाहते थे।
बड़ौदा महाराजा प्रतापसिंह की पदच्युति
बड़ौदा महाराजा प्रतापसिंह ने अपने हाथ से सरदार पटेल को पत्र लिखा कि जब तक उनको भारत का राजा नहीं बनाया जाता और भारत सरकार उनकी समस्त मांगें नहीं मान लेती तब तक वे कोई सहयोग नहीं देंगे और न ही जूनागढ़ के नवाब की बगावत दबाने में सहयोग देंगे। इस पर भारत सरकार ने महाराजा प्रतापसिंह की मान्यता समाप्त करके उनके पुत्र फतहसिंह को महाराजा बड़ौदा स्वीकार किया।
भारत सरकार का कठोर रवैया देखकर राजा विनम्र देश-सेवकों जैसा व्यवहार करने लगे। जो राज्य संघ उन्होंने रियासतों का विलय न होने देने के लिये बनाया था, उसे भंग कर दिया गया। उन्होंने समझ लिया कि अब भारत सरकार से मिल जाने और उसका संरक्षण प्राप्त करने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। वे यह भी सोचने लगे कि शासक बने रह कर विद्रोही प्रजा की इच्छा पर जीने के बजाय भारत सरकार की छत्रछाया में रहना कहीं अधिक उपयुक्त होगा।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता