विभाजन का काम दक्षता से निबटाने के लिये वायसराय लॉर्ड माउण्टबेटन की अध्यक्षता में एक विभाजन कौंसिल का गठन किया गया जिसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में एच. एम. पटेल तथा पाकिस्तान के प्रतिनिधि के रूप में चौधरी मोहम्मद अली को रखा गया। उनकी सहायता के लिये बीस समितियां और उपसमितियां गठित की गयीं जिनमें लगभग सौ उच्च अधिकारियों की सेवाएं ली गयीं। इन समितियों का काम विभिन्न प्रकार के प्रस्ताव तैयार करके अनुमोदन के लिये विभाजन कौंसिल के पास भेजना था।
लैरी कांलिन्स तथा दॉमिनिक लैपियर ने इस विभाजन प्रक्रिया का बड़ा रोचक वर्णन किया है-
’15 अगस्त के आने में अब ठीक 73 दिन बाकी बच रहे थे। तलाक के कागजात इस बीच हर सूरत में तैयार हो जाने चाहिए। कर्मचारियों को लगातार सावधान और चुस्त रखने के लिए माउण्टबेटन ने एक विशिष्ट कलैण्डर छपवाकर दिल्ली के प्रत्येक सम्बन्धित कार्यालय में लगवा दिया। उस कैलेण्डर का एक पन्ना रोज फाड़ा जाता।
प्रत्येक पन्ने के बीचों-बीच लाल घेरे के अंदर वह आंकड़ा छपा दिखाई देता जो यह बताता कि 15 अगस्त के आने में अब कुल कितने दिन शेष रह गए हैं। मानो किसी अणु-विस्फोट की उलटी गिनती शुरू हो गई हो, इस प्रकार रोज एक-एक दिन गिना जा रहा था- और रोज एक-एक दिन कम हो रहा था।’
उस अलौकिक भारतीय तलाक में, मालमत्ता के कागजात तैयार करने का भारी भरकम काम, आखिर जिन दो व्यक्तियों के कंधों पर आकर पड़ा, वे दोनों समान रुतबे के वकील थे। …… उनमें से एक मुसलमान था और दूसरा हिन्दू …… चौधरी मोहम्मद अली और एच. एम. पटेल क्रमशः मुसलमानों और हिन्दुओं के हितों की रक्षा करते हुए रोज फाइल पर फाइल निबटा रहे थे। लगभग एक सौ कर्मचारी जिन्हें बीसेक समितियों और उप समितियों में विभाजित किया गया था, रोज उन वकीलों को तरह-तरह की रिपोर्ट देते थे। उस आधार पर दोनों वकील जो अनुशंसा पत्र तैयार करते, उन्हें विभाजन कौंसिल के पास अंतिम अनुमोदन के लिए भेज दिया जाता। स्वयं वायसराय इस विभाजन कौंसिल के अध्यक्ष थे।
…… दोनों पार्टियों के बीच उग्रतम बहसें धन को लेकर हुईं। सबसे नाजुक प्रश्न उस उधारी का था, जिसे अंग्रेजों से वसूल करना आसान नहीं लग रहा था, क्योंकि उनका खजाना खाली था। …… जब अंग्रेज भारत को छोड़ रहे थे, तब भारत के 500 अरब डॉलर उनकी तरफ निकलते थे। कर्ज का यह जबर्दस्त बोझ इंग्लैण्ड पर विश्व-युद्ध के दौरान चढ़ गया था।
राष्ट्रीय उधारी के अलावा धन और भी कई रूपों में फंसा हुआ था। स्टेट बैंकों की नकदी। बैंक ऑफ इण्डिया के वाल्टों में रखी सोने की ईंटें। चुटकियों में सिर काट लेते नागाओं के बीच, झौंपड़ी में बस कर अपनी ड्यूटी निभा रहे जिला कमिश्नरों के पास रखी छोटी-छोटी रकमें देश भर में फैले डाक-घरों की स्टेशनरी इत्यादि का मूल्य।
…… कौंसिल द्वारा बैंकों, सरकारी विभागों तथा पोस्ट ऑफिस में रखे हुए रुपयों, सामान और यहाँ तक कि फर्नीचर के बंटवारे हेतु निर्णय लिये गये। बंटवारे में तय किया गया कि पाकिस्तान को बैंकों में रखी नकदी का और स्टर्लिंग शेष का 17.5 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त होगा।
यह भी तय किया गया कि पाकिस्तान को भारत के राष्ट्रीय कर्ज का 17.5 प्रतिशत हिस्सा चुकाना पड़ेगा। यह भी तय किया गया कि देश के विशाल सरकारी तंत्र में जो कुछ भी स्थानानंतरण द्वारा हटाया जा सकता है, उसका 80 प्रतिशत भारत को एवं 20 प्रतिशत पाकिस्तान को दिया जाये।
…….. देश में कुल 18 हजार 77 मील लम्बी सड़कें तथा 26 हजार 421 मील रेल की पटरियां थीं। इनमें से 4 हजार 913 मील सड़कें तथा 7 हजार 112 मील रेल पटरियां पाकिस्तान के हिस्से में गईं। वायसराय की सफेद सुनहरी ट्रेन भारत के हिस्से में आयी, उसके बदले में भारतीय सेना के कमाण्डर इन चीफ तथा पंजाब के गर्वनर की सभी कारें पाकिस्तान को दे दी गयीं।
वायसराय के पास सोने के पतरों वाली छः तथा चांदी के पतरों वाली छः बग्घियां थीं। इनमें से सोने के पतरों वाली बग्घियां भारत के हिस्से में आयीं तथा चांदी के पतरों वाली बग्घियां पाकिस्तान के हिस्से में गयीं।
मोसले ने लिखा है- चार जजों के दो अलग-अलग बोर्ड पंजाब और बंगाल के लिए बनाए गए। हर बोर्ड में दो जज भारत की ओर से और दो पाकिस्तान की ओर से रखे गए। दो जजों को छोड़कर शेष सभी जज हिन्दुस्तान की हाईकोर्ट के जज थे।
सर सिरिल की देखरेख में सी. सी. बिस्वास और बी. के. मुखर्जी (कांग्रेस की ओर से) तथा सालेह मोहम्मद अकरम और एम. ए. रहमान (मुस्लिम लीग की ओर से) बंगाल का बंटवारा करेंगे। मेहरचंद महाजन और तेजसिंह (कांग्रेस की ओर से) और दीन मोहम्मद तथा मोहम्मद मुनीर (मुस्लिम लीग की ओर से) पंजाब का बंटवारा करेंगे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता