जहाँ एक ओर गांधीजी की जिद थी कि वे मुसलमानों को भारत से अलग नहीं जाने देंगे, वहीं दूसरी ओर जिन्ना का उन्माद उसके सिर पर हावी था। वह हर कीमत में पाकिस्तान चाहता था। माउण्टबेटन की दृष्टि में जिन्ना उन्मादी था!
जहाँ भारत के मुसलमान भारत से अलग पाकिस्तान देश के निर्माण को जेहाद समझ रहे थे, वहीं दूसरी ओर जिन्ना का उन्माद इस्लाम के लिए नहीं था, गांधी, नेहरू और सरदार पटेल जैसे कांग्रेसी नेताओं को नीचा दिखाने के लिए था। वह स्वयं को धरती के नक्शे पर एक राष्ट के जनक के रूप में देखना चाहता था। जिन्ना के लिए जेहाद कोई मायने नहीं रखता था।
जहाँ गांधीजी, खान अब्दुल गफ्फार खान और मौलाना आजाद सहित बहुत से कांग्रेसी नेता अब भी यह समझ रहे थे कि किसी न किसी तरह से विभाजन टल जाएगा किंतु माउण्टबेटन जानते थे कि सच्चाई क्या है! माउण्टबेटन ने लिखा है-
‘देश का विभाजन करने पर जिन्ना इस कदर आमादा थे कि मेरे किसी शब्द ने उनके कानों में प्रवेश किया ही नहीं, हालांकि मैंने ऐसी हर चाल चली जो मैं चल सकता था, ऐसी हर अपील मैंने की जो मेरी कल्पना में आ सकती थी। पाकिस्तान को जन्म देने का सपना उन्हें घुन की तरह लग चुका था। कोई तर्क काम न आया।
……. दो कारणों से जिन्ना की ताकत बहुत बढ़ी-चढ़ी थी। उन्होंने स्वयं को मुस्लिम लीग का बादशाह बनाने में सफलता पा ली थी। लीग के अन्य सदस्य समझौते के लिए शायद तैयार हो भी जाते, लेकिन जब तक जिन्ना जिन्दा थे, उन सदस्यों की जुबान नहीं खुल सकती थी।’
जिन्ना का उन्माद माउण्टबेटन से छिपा नहीं रह सका। बहस किए जाइए, किए जाइए, किए जाइए। जिन्ना कुछ सुनने वाला नहीं। जब सुनने वाला ही नहीं, फिर बहस के पीछे समय जाया करके, गृह-युद्ध के खतरे को और-और बढ़ाते जाने कोई अर्थ नहीं था। जिन्ना का उन्माद सरदार पटेल से अधिक और काई नहीं जानता था। पटेल ने पंजाब एवं बंगाल के विभाजन का एक प्रस्ताव पारित किया तथा कांग्रेसियों को समझाया कि चूंकि पाकिस्तान का निर्माण इस्लामिक एवं गैर-इस्लामिक जनसंख्या के आधार पर होना है इसलिए पंजाब एवं बंगाल के हिन्दुओं को भारत में रहने का अधिकार है, जिन्ना उन्हें पाकिस्तान में शामिल नहीं कर सकते इसलिए भारत विभाजन से पहले पंजाब एवं बंगाल का विभाजन किया जाए।
पटेल ने कांग्रेसियों को समझाया कि जिन्ना किसी भी हालत में ऐसे पाकिस्तान को स्वीकार नहीं करेगा जिसमें पूरा पंजाब एवं पूरा बंगाल नहीं हो, इस प्रकार भारत के विभाजन को टाला जा सकता है। पटेल की बात कांग्रेसियों को उचित लगी। कुछ लोगों का मानना था कि पटेल ने भारत के विभाजन को रोकने के लिए प्रांतीय विभाजन का प्रस्ताव तैयार किया था।
मोसले ने लिखा है-
‘अपने सभी साथियों की अपेक्षा पटेल ही ठीक-ठीक जानते थे कि वे क्या कह रहे हैं। कांग्रेस कार्यसमिति के समक्ष भारत विभाजन के प्रस्ताव को पटेल ने प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव में पंजाब को दो टुकड़ों में बांटने की सिफारिश थी। एक टुकड़ा हिन्दुओं का, दूसरा मुसलमानों का। सिक्खों को यह आजादी थी कि वे कहाँ रहेंगे इसका निर्णय वे स्वयं कर सकें।
निर्णय का संकेत स्पष्ट था। यदि कांग्रेस एक प्रदेश का बंटवारा मान सकती है तो देश के बंटवारे का कैसे विरोध कर सकती है! कांग्रेस के संगठनकर्त्ता और संचालक की हैसियत से वह महसूस करता था कि आजाद हिन्दुस्तान में विरोधी दल के रूप में मुस्लिम लीग का मतलब है मुसीबत, कांग्रेस की योजनाओं का अंत, कानूनों पर रोकथाम।
…… पटेल ने वर्किंग कमेटी के एक सदस्य को लिखा- ‘यदि लीग पाकिस्तान के लिए अड़ जाती है तो फिर उसका एकमात्र तरीका है बंगाल और पंजाब का बंटवारा।
…… मैं नहीं समझता कि ब्रिटिश सरकार इस बंटवारे के लिए सहमत हो जाएगी। आखिरकार शक्तिशाली दल के हाथों सरकार सौंप देने की अक्ल आएगी। और यदि नहीं आई तो भी कोई बात नहीं। केन्द्र की मजबूत सरकार होगी, पूर्वी बंगाल, पंजाब का कुछ हिस्सा, सिंध और बलूचिस्तान इस केन्द्र के अधीन स्वतंत्र होंगे। केन्द्र इतना शक्तिशाली होगा कि अंततः वह भी इसमें आ जाएंगे।’
नेहरू को यह योजना पसंद आई। वह इस बंटवारे के माध्यम से जिन्ना को संदेश देना चाहता था कि यदि वह बंटवारा मांगेगा तो उसका हश्र यह भी हो सकता है। जब मौलाना आजाद और गांधीजी दिल्ली से बाहर थे तब यह प्रस्ताव कांग्रेस वर्किंग कमेटी में पारित करा लिया गया।
पटेल भले ही कांग्रेसियों को यह समझा रहे थे कि वे पाकिस्तान की मांग को दबाने के लिए यह चाल चल रहे हैं किंतु वस्तुतः वे इस प्रस्ताव के माध्यम से अंत्यत चतुराई से भारत-विभाजन की ओर बढ़ रहे थे क्योंकि जब तक कांग्रेस पंजाब एवं बंगाल के विभाजन का निर्णय नहीं लेती है, तब तक भारत के विभाजन का निर्णय संभव ही नहीं था और पटेल ने गांधी तथा मौलाना आजाद की अनुपस्थिति में कांग्रेस से यह निर्णय करवा लिया।
पटेल के प्रयत्नों से जिन्ना का उन्माद अब ठोस सच्चाई में बदलने जा रहा था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता