साइमन कमीशन का विरोध साम्प्रदायिकता का संवैधानिक विकास (2)
साइमन कमीशन भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए लाया गया था। इसमें पृथक् मुस्लिम राष्ट्र बनाने का प्रावधान किय गया था। इस कारण कांग्रेस ने साइमन कमीशन का विरोध किया। यदि कांग्रेस ने इस रिपोर्ट का विरोध नहीं किया होता तो भारत का आजादी मिलने की प्रक्रिया बहुत पहले ही आरम्भ हो गई होती क्योंकि पृथक् मुस्लिम राष्ट्र की मांग तो अंततः माननी ही पड़ी।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट
ई.1930 में साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। साइमन कमीशन रिपोर्ट को व्हाइट कमीशन रिपोर्ट भी कहा जाता है। इस रिपोर्ट में दिए गए मुख्य सुझाव इस प्रकार थे-
(1) प्रांतों में दोहरा शासन समाप्त करके उत्तरदायी शासन स्थापित किया जाए।
(2) भारत के लिए संघीय शासन की स्थापना की जाए।
(3) उच्च न्यायालय को भारतीय सरकार के अधीन कर दिया जाए।
(4) अल्पसंख्यकों के हितों के लिए गवर्नर एवं गवर्नर जनरल को विशेष शक्तियां दी जाएं।
(5) सेना का भारतीयकरण हो।
(6) बर्मा को भारत से पृथक् किया जाए तथा सिंध एवं उड़ीसा को नए प्रांतों के रूप में मान्यता दी जाए।
(7) प्रत्येक दस वर्ष पश्चात् भारत की संवैधानिक प्रगति की जांच को समाप्त कर दिया जाए तथा ऐसा लचीला संविधान बनाया जाए जो स्वतः विकसित होता रहे।
सर जॉन साइमन साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली का विरोधी था। उसके अनुसार यह एक घृणित प्रणाली है जो वही बीमारी पैदा करती है जिसके निदान के लिए इसका प्रयोग किया जाता है परन्तु मांटेग्यू-चैम्सफोर्ड आयोग की ही भांति साइमन कमीशन ने भी कांग्रेस-मुस्लिम लीग समझौते के सांप्रदायिक अंशों को स्वीकार कर लिया तथा मुसलमानों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व अर्थात् केन्द्रीय सभा एवं प्रांतीय विधायिकाओं में मुसलमानों के लिए अलग सीटों के आरक्षण की व्यवस्था को स्वीकार कर लिया।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट में भारत में बनने वाले भावी संघ के निम्न-सदन (लोकसभा) में 250 सीटें प्रस्तावित की गईं जिनमें से गैर-मुस्लिमों को 150 (60 प्रतिशत) तथा मुस्लिमों को 100 (40 प्रतिशत) सीटें देनी प्रस्तावित की गईं।
पृथक मुस्लिम राष्ट्र के प्रस्ताव का विरोध
नेहरू समिति के समक्ष प्रस्तुत किए गए 14 सूत्री मांग-पत्र के रूप में जिन्ना का साम्प्रदायिक कार्यक्रम सामने आ चुका था, कांग्रेस इस कार्यक्रम को अस्वीकार तो करती थी किंतु देश में जिन्ना का खुलकर विरोध नहीं किया जा रहा था। नवम्बर 1930 में प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया जाने वाला था। इसलिए हिन्दू महासभा के कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. शिवराम मुंजे ने एक वक्तव्य जारी करके भारत सरकार को संविधान संशोधन के विषय में कुछ सुझाव दिए-
(1) सभी समुदायों को अपने मताधिकार के प्रयोग करने के समस्त अधिकार सभी प्रांतों में समान होने चाहिए।
(2) समस्त समितियों के लिए संयुक्त चुनाव पद्धति द्वारा चुनाव कराए जाएं।
(3) किसी धर्म-सम्प्रदाय के आधार पर सीटों के आरक्षण न दिए जाएं।
(4) किसी भी प्रांत में सीटों का आरक्षण बहुसंख्यक समुदाय के पक्ष में नहीं हो।
(5) भारत के प्रांतों का प्रतिनिधित्व, यदि आवश्यक हो तो योग्यता के आधार पर किया जाए।
(6) धर्म की बहुलता के आधार पर प्रांतों की रचना नहीं की जानी चाहिए जिसके कारण भारत मुस्लिम भारत, सिख भारत, ईसाई भारत और हिन्दू भारत के रूप में विभाजित हो जाए तथा राष्ट्रीयता के लिए बाधक बन जाए।
(7) सरकारी नौकरियों की प्राप्ति में किसी धर्म या जाति को महत्व न देकर प्रतियोगिता को महत्व दिया जाए।
(8) केन्द्र एवं प्रांतीय मंत्रिमण्डलों में मुसलमान मंत्रियों की संख्या निर्धारित नहीं की जानी चाहिए, सम्मिलित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए।
(9) केन्द्र सरकार को अपनी बची हुई शक्ति प्रांतों को नहीं देनी चाहिए। केन्द्र सरकार मजबूत होनी चाहिए।
(10) सभी सम्प्रदायों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता, वैचारिक स्वतंत्रता, पूजा पद्धति की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शिक्षा प्राप्ति की स्वतंत्रता तथा संस्थाओं के गठन की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
लंदन के गोलमेज सम्मेलनों में सरकार की विफलता
साइमन कमीशन की रिपोर्ट में प्रस्तावित संघीय-भारत के निर्माण की दिशा में विचार विमर्श करने हेतु, ब्रिटिश सरकार ने 12 नवम्बर 1930 को लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन बुलाया। कांग्रेस ने इसका बहिष्कार किया। सम्मेलन में मुहम्मद अली जिन्ना और डॉ. भीमराव अम्बेडकर में तीव्र मतभेद हो जाने से भारत में संघीय सरकार के निर्माण पर कोई निर्णय नहीं हो सका।
17 सितम्बर 1931 को लंदन में दूसरा गोलमेज सम्मेलन बुलाया गया। इसमें कांग्रेस के प्रतिनिधि की हैसियत से अकेले गांधीजी ने भाग लिया। यह सम्मेलन भी असफल रहा। 17 नवम्बर 1932 को लंदन में तृतीय गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया। इस समय कांग्रेस अवैध संस्था घोषित हो चुकी थी इसलिये वह सम्मेलन में भाग नहीं ले सकी।
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