गॉड सेव द क्वीन बनाम वन्दे मातरम्
अंग्रेजों ने भारतीयों के मन-मस्तिष्क एवं जीवन के प्रत्येक अंग पर शिकंजा कसने के लिए कई तरह के उपकरण तैयार किए जिनमें ‘ गॉड सेव द क्वीन / किंग ‘ गीत भी सम्मिलित था। ई.1870 के दशक में इस गीत को समस्त सरकारी समारोहों में गाना अनिवार्य कर दिया गया। इस गीत के भाव इस प्रकार थे-
भगवान हमारी दयालु रानी को बचाओ!
लंबे समय तक हमारी महान रानी रहे!
ईश्वर ने रानी को बचाया!
उसे विजय भेजें, खुश और गौरवशाली,
हमारे ऊपर लंबा शासन करने के लिए
ईश्वर ने रानी को बचाया!
हे भगवान हमारे भगवान उठो,
उसके दुश्मनों को बिखराओ,
और उन्हें गिराओ, उनकी राजनीति को समझो,
अपनी कपटपूर्ण चाल एवं हमारी निराशा को
हम अपनी आशा से ठीक करते हैं
भगवान हम सबको बचाओ!
दुकान में आपके सबसे अच्छे उपहार,
उसे डालने से प्रसन्नता हो;
वह लंबे समय तक शासन कर सकती है
वह हमारे कानूनों की रक्षा कर सकती है,
और भी हमें कारण दें,
दिल और आवाज के साथ गाते हैं
ईश्वर ने रानी को बचाया!
गॉड सेव द क्वीन गीत को प्रत्येक सरकारी आयोजन में गाए जाने के आदेश से, बंगाल में नियुक्त डिप्टी कलक्टर बंकिमचन्द्र चटर्जी को बहुत ठेस पहुंची। उन दिनों अंग्रेजों की नीतियों के कारण सम्पूर्ण बंगाल अकाल, भूख एवं महामारी से त्रस्त था जिसके विरोध में बंगाल में सन्यासी विद्रोह अपने चरम पर था। बंकिम चंद्र चटर्जी ने देश की परिस्थितियों को लेकर ई.1876 में ‘आनंदमठ’ नामक उपन्यास की रचना की तथा उसमें एक गीत ‘वन्दे मातरम्’ शीर्षक से लिखा। यह गॉड सेव द क्वीन के प्रतिकार के रूप में लिखा गया था। शीघ्र ही यह देशभक्तों का प्रमुख गीत बन गया-
वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलाम्/ मलयजशीतलाम्/ शस्यश्यामलाम्/ मातरम्।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्/ फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्/ सुखदां वरदां मातरम्।
कोटि कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले/
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले/ अबला केन मा एत बले।
बहुबलधारिणीं/ नमामि तारिणीं/ रिपुदलवारिणीं/ मातरम्
तुमि विद्या, तुमि धर्म/ तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणारू शरीरे/ बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति/ तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे
त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी/ कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी /नमामि त्वाम्/ नमामि कमलाम्
अमलां अतुलाम्/ सुजलां सुफलाम्/ मातरम्।
वन्दे मातरम्/ श्यामलाम् सरलाम्/ सुस्मिताम् भूषिताम्
धरणीं भरणीं/ मातरम्।
यह गीत हिन्दुओं के साथ-साथ मुसलमानों ने भी उत्साह के साथ अपनाया किंतु शीघ्र ही कुछ साम्प्रदायिक-विचारों वाले मुसलमानों ने इस गीत को इस्लाम के विरुद्ध घोषित कर दिया। उनके अनुसार मुसलमान अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य के समक्ष सजदा नहीं कर सकते थे तथा इस गीत में भारत माता की वंदना की गई थी जो न केवल मूर्तिपूजा को स्वीकार करने जैसा था अपितु अल्लाह के अलावा भी किसी अन्य के समक्ष सिर झुकाने जैसा था।
इस प्रकार ब्रिटिश काल में भारतीय समाज तीन भागों में बंट गया। अंग्रेजों को नारे एवं गीत के रूप में गॉड सेव द क्वीन चाहिए था, हिन्दुओं को वन्दे मातरम् चाहिए था और मुसलमानों के लिए अल्लाह हो अकबर ही एकमात्र अभीष्ट था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता