19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट ने चीन के सम्बन्ध में चेतावनी देते हुए कहा था- ‘वहाँ एक दैत्य सो रहा है। उसको सोने दो क्योंकि जब वह उठेगा तो दुनिया को हिला देगा।’ विगत दो सौ सालों में चीन ने कोरिया, वियतनाम, मंगोलिया, तिब्बत, हांगकांग और मध्य एशिया के अनेक देशों को अपने जूतों तले रौंदा है। यह सिलसिला अभी थमा नहीं है।
वर्ष 1949 में जब माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीन में साम्यवादी सरकार बनी तो माओ ने यह कहकर पूरी दुनिया को धमकाया कि सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। उसने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी बनाई और नए सिरे से अपने पड़ौसी देशों की छाती पर चढ़ बैठा।
आज चीन अपने 14 पड़ोसी देशों के विशाल भूभागों पर स्वामित्व का दावा करता है। तिब्बत को चीन अपने दाहिने हाथ की हथेली बताता है तथा लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान, और अरुणाचल प्रदेश को इस हाथ की पांच अंगुलियां बताकर इन पर अपने अधिकार का दावा करता है। यहाँ तक कि चीन अपनी सीमा से 8 हजार किलोमीटर दूर अमेरिका के हवाईद्वीप को भी अपना क्षेत्र बताता है। भारत सहित दुनिया के 23 देश चीन की कुटिल चालों से परेशान हैं।
चीनी विस्तारवादी नीति का प्रतिरोध करने के लिए विश्व की चार महाशक्तियों- अमरीका, जापान, ऑस्ट्रेलिया तथा भारत ने क्वार्ड का गठन किया किंतु इससे चीन की सेहत पर कोई असर शायद ही पड़ा हो। वह अपना खूनी पंजा पूरी दुनिया में बड़ी तेजी से पसार रहा है।
एशिया में रूस, चीन एवं भारत तीन बड़ी शक्तियां हैं। इनमें से रूस और चीन कम्युनिस्ट देश होने के कारण भाई-भाई हैं। भारत की वैश्विक नीतियां ऐसी हैं कि वह किसी का भाई नहीं है, न तो सगा और न सौतेला!
आजादी के बाद से ही वैश्विक मंच पर भारत की नीति ‘सब काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ वाली रही है किंतु दुनिया उसे ‘ना काहू से दोस्ती, सब काहू से बैर’ वाली दृष्टि से देखती है। इस कारण भारत को वैश्विक मंचों पर संतुलन बनाए रखने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है किंतु भारत का मजबूत लोकतंत्र भारत सरकार को वह शक्ति और गरिमा प्रदान करता है कि वैश्विक मंचों पर भारत संतुलन साध लेता है।
फिर भी भारत की जनता को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि हमेशा ऐसे ही चलता रहेगा। भारत के वैश्विक समीकरण ताश के पत्तों की भांति कभी भी ढह सकते हैं। चीन ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए दिन-रात लगा हुआ है। सात एशियाई देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान भूटान, नेपाल, चीन, बर्मा तथा बांगलादेश की सीमाएं भारत से लगती हैं। श्रीलंका की थल सीमा भारत की थल सीमा से भले ही स्पर्श न करती हो किंतु समुद्री मार्ग से भारत और श्रीलंका के बीच केवल 54.8 किलोमीटर की दूरी है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया में जो स्थितियां बनीं, उनके चलते भारत तथा उसके आठ पड़ौसी देशों में से चीन को छोड़कर शेष आठ देशों में सरकारों का निर्माण प्रजातांत्रिक पद्धति से होता है। इन आठ प्रजातांत्रिक देशों में से भूटान, बांगलादेश तथा भारत को छोड़कर शेष सभी देशों में विगत दो वर्षों में चीनी चालबाजियों के चलते प्रजातांत्रिक सरकारों को बलपूर्वक शासन से हटाया गया है।
म्यानमार अथवा बर्मा में फरवरी 2021 में चीन के समर्थन से बर्मी सेना द्वारा विद्रोह करके ‘आन सान सू कुई’ की चुनी हुई सरकार से सत्ता छीनी गई। बर्मी सेना ने जनता की आवाज को बंदूकों के बल पर कुचला। बर्मा में अब चीन अप्रत्यक्ष रूप से शासन कर रहा है तथा चुनी हुई राष्ट्राध्यक्ष सू कुई आज भी जेल में हैं।
नेपाल में मई 2021 में शासक दल के नेताओं की बगावत के द्वारा प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार से सत्ता छीनी गई। इस बगावत का मुख्य कारण यह था कि केपी शर्मा ओली अपने देश को बड़ी तेजी से चीन की गोद में धकेल रहे थे और भारत से शत्रुता का वातावरण बनाते जा रहे थे। केपी शर्मा की सरकार के मौन समर्थन से चीन की सेना ने नेपाली सीमा में कई गांव बसा लिए थे। जबकि दूसरी ओर नेपाली सेना भारतीय जनता को गोलियों से भूनने लगी थी। नेपाली जनता और नेपाल के राजनीतिक दलों के लिए यह स्थिति असह्य थी। इस कारण नेपाल के राजनेताओं ने केपी शर्मा ओली की सरकार को जबर्दस्ती हटा दिया।
अफगानिस्तान में अगस्त 2021 में राष्ट्रपति बाइडन के नेतृत्व में अमरीका के बेशर्म मौन पलायन एवं इमरान खान के नेतृत्व में पाकिस्तान के शैतानी मुखर समर्थन से तालिबानी आतंकवादियों द्वारा, राष्ट्रपति अशरफ गनी की चुनी हुई सरकार से बड़ी क्रूरता पूर्वक सत्ता छीनी गई। सत्ता छीनने वाले आतंकवादियों के पास अमरीकी और चीनी हथियार थे। आतंकवादियों ने जनता को कोड़ों, छुरों और बंदूकों से मौत के घाट उतारा। चुने हुए राष्ट्रपति अशरफ गनी आज भी अपने देश से बाहर शरण लिए हुए हैं।
पाकिस्तान में अप्रेल 2022 में प्रतिपक्षी राजनीतिक दलों ने मौन सैनिक समर्थन से की गई प्रजातांत्रिक बगावत के माध्यम से इमरान खान की सरकार से सत्ता छीनी। प्रतिपक्षी सांसदों की बगावत का मुख्य कारण यह था कि इमरान खान पूरी तरह चीन की गोद में जाकर बैठ गए थे। पाकिस्तान चीन के कर्जे में गले तक डूब गया था और कर्जा न उतार पाने के कारण अपने देश की धरती चीनी बौनों के हाथों खोता जा रहा था। अमरीका इस स्थिति को सहन नहीं कर पा रहा था। इसलिए अमरीका के अप्रत्यक्ष समर्थन से, चीन समर्थित इमरान सरकार का पतन हुआ।
श्रीलंका में जुलाई 2022 में निहत्थी जनता ने बगावत करके अपने ही द्वारा चुनी हुई सरकार के राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री को भगा दिया। जनता ने राष्ट्रपति के महल पर कब्जा कर लिया तथा प्रधानमंत्री का निजी आवास जला दिया। श्रीलंका में बगावत के तीन बड़े कारण बताए जाते हैं। इनमें से एक वर्ष 2019 में कोरोना के कारण व्यापारिक गतिविधियों का ठप्प पड़ जाना, दूसरा वर्ष 2019 में आतंकवादियों द्वारा ईस्टर के अवसर पर तीन चर्चों तथा तीन होटलों में बम विस्फोट करके विदेशी पर्यटकों को मार डालना तथा तीसरा श्रीलंका की सरकार द्वारा चीन से लिए गए कर्ज का ब्याज और किश्त न भर पाना है।
इस प्रकार भारत के इन पांच पड़ौसी देशों के पतन में चीन का ही प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से हाथ रहा है। हाल ही में जापान के पूर्व दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या के पीछे भी विदेशी एजेंसियों को वामपंथी चीनी हाथ होने का संदेह है। शिंजो की हत्या होने के बाद चीन द्वारा दी गई प्रतिक्रिया से भी ऐसी बदबू आती है।
दुनिया भर के अराजकतावादी, हुड़दंगबाज, मोदी विरोधी कबीला, विदेशों में जड़ें जमा चुके खालिस्तानी संगठन, टुकड़ा-टुकड़ा गैंग तथा कुछ प्रतिपक्षी राजनीतिक पार्टियों के नेता भारत के पड़ौसी देशों में घट रही इन घटनाओं में अपने लिए नई संभावनाएं देखते हैं। वे लोग यह सपना पाले हुए हैं कि किसी तरह एक दिन उनके अपने देश में भी सत्ता बदल जाए। हाल ही में हुआ ब्रिटिश प्रधानमंत्री का त्यागपत्र प्रतिपक्षियों के हौंसलों को बढ़ाने वाला है।
वैश्विक पटल पर घट रही इन घटनाओं को देखते हुए भारत की जनता, भारत की सरकार एवं देश के भीतर-बाहर काम कर रही गुप्तचर एजेंसियों को पर्याप्त सतर्क एवं सजग रहने की आवश्यकता है ताकि कोई देशी विदेशी ताकत भारत के लिए किसी तरह का आंतरिक अथवा बाहरी खतरा उत्पन्न न कर सके। भारत को चीन और पाकिस्तान से विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता