Thursday, November 21, 2024
spot_img

भारत में सूफी मत की सफलता के कारण

भारत में सूफी मत का आगमन एक युगांतरकारी घटना थी। सूफ मत ने इस्लाम को तो प्रभावित किया ही, साथ ही हिन्दुओं के मन में भी कुछ आकर्षण उत्पन्न किया।

शरीअत के खिलाफ बगावत

कुछ विद्वानों का मत है कि सूफीवाद, इस्लाम की शरीअत के खिलाफ एक बगावत थी। सूफी मत कोई एक मत नहीं है। इसमें सैंकड़ों सम्प्रदाय हैं तथा प्रत्येक सम्प्रदाय की अलग-अलग मान्यताएं हैं।

सूफियों का इस्लामियां सम्प्रदाय मानता है कि हजरत अली विष्णु के दसवें अवतार थे। हिन्दूओं के मन से मुसलमानों के प्रति कट्टर घृणा का भाव कम करने में इन सूफियों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।

अनेक हिन्दू ‘इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन्ह हिन्दू वारिये’ कहकर सूफियों के अनुयायी हो गये। यही कारण है कि नागौर के सूफी फकीर सुल्तानुत्तारकीन हमीमुद्दीन को हिन्दू तार किशनजी कहते हैं तथा उनके प्रति श्रद्धा रखते हैं।

सादा जीवन

भारत में सूफी मत लाने वाले फकीरों ने धन-सम्पत्ति को ठुकरा कर सादा जीवन व्यतीत किया। इस कारण भी भारतीय समाज उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखने लगा।

नागौर के सूफी फकीर सुल्तानुत्तारकीन हमीमुद्दीन के वंशज ख्वाजा हुसैन नागौरी ने अपनी सारी संपत्ति निर्धन लोगों में बांट दी तथा अपने पास केवल एक छकड़ा रख लिया जिस पर बैठकर वे दूर-दूर की यात्राएं किया करते थे। उन्होंने अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में तथा नागौर में सुल्तानुत्तारकीन हमीमुद्दीन की दरगाह में कुछ भवन बनवाये।

गीत-संगीत की प्रधानता

चूंकि सूफी लोग भी भारतीयों की तरह गीत-संगीत तथा नृत्य के माध्यम से ईश्वर की कृपा प्राप्त करने की चेष्टा करते थे इसलिये बहुत से सूफी फकीर भारतीयों के मन को भा गये।

अमीर खुसरो ने सितार नामक वाद्ययंत्र का तथा ब्रज मिश्रित कव्वाली गायन विधा का विकास किया। इन सूफियों के प्रयासों से भारतीयों के मन में इस्लाम के प्रति वह कट्टरता नहीं रही जो सूफियों के आने से पहले हुआ करती थी। अमीर खुसरो का यह गीत इस संदर्भ में विशेष लोकप्रिय है-

छाप तिलक सब छीनी रे

सैंया ने मोसे नैना मिलाके।

प्रेम भटी का मदवा पिलाके,

मतवाली कर दीनी रे

सैंया ने मो से नैना मिलाके।

बलबल जाऊं मैं तोरे रंगरेजवा

अपनी सी रंग लीनी रे

सैंया ने मौसे नैना मिला के।

हरी-हरी चूड़ियां, गोरी-गोरी बहियां,

हथवा पकड़ हर लीन्ही रे

सैंया ने मो से नैना मिलाके।

खुसरो निजाम के बल बल जइये,

मोहे सुहागन कीन्हीं रे

सैंया ने मो से नैना मिलाके।

वसंतोत्सव का आयोजन

भारतीय परम्पराओं को अपना लेने के कारण सूफी मत भारतीयों का मन जीतने में सफल हुआ। निजामुद्दीन औलिया के शिष्य अमीर खुसरो ने सूफियों में वंसतोत्सव मनाने की परम्परा आरम्भ की।

कहा जाता है कि निजामुद्दीन औलिया ने अपने बहिन के पुत्र इकबाल को अपने पास रखकर पाला किंतु दैवयोग से वह 17-18 साल की आयु में मर गया। इस पर निजामुद्दीन औलिया बहुत दुखी रहने लगे। एक बार वे दिल्ली के निकट महरौली के जंगल में एक तालाब के किनारे दुखी मन से बैठे थे। अमीर खुसरो से अपने गुरु की यह दशा देखी नहीं गई।

उस दिन बसंत पंचमी थी तथा हिन्दू जनता पीले कपड़े पहनकर मंदिरों में पीले फूल चढ़ाने के लिये नाचती गाती जा रही थी। उन्हें देखकर अमीर खुसरो ने भी सरसों के पीले फूल तोड़े तथा निजामुद्दीन औलिया के चरणों में ले जाकर रख दिये। यह देखकर उन्होंने अमीर खुसरो से पूछा कि यह क्या है?

इस पर खुसरो ने जवाब दिया कि आज बसंत पंचमी को हिन्दू अपने देवताओं को पीले फूल चढ़ा रहे हैं इसलिये मैंने भी अपने गुरु को पीले फूल अर्पित किये हैं। शिष्य का यह समर्पण देखकर गुरु के हृदय में आशा और आनंद का संचार हुआ। उसी दिन से सूफी फकीरों की दरगाह पर बसंतोत्सव मनाया जाने लगा।

-डाॅ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source