दक्षिण में इस तरह की शांति देखकर खानेजहाँ लोदी की छाती पर साँप लोट गया। वह कतई नहीं चाहता था कि बादशाह इस बात को देखे कि जिस मोर्चे पर खानेजहाँ असफल हो गया, वहाँ किसी और ने सफलता के झण्डे गाढ़ दिये। वस्तुतः मुगलिया सल्तनत की स्थापना से लेकर उसके अंत तक मुगल सेनापतियों और अमीर-उमरावों में यह प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर बनी रही कि जीत का श्रेय मेरे ही नाम लिखा जावे।
खानेजहाँ ने जहाँगीर को फिर से खानखाना के विरुद्ध भड़काया कि जब तक खानखाना दक्षिण में रहेगा, कभी भी पूरा दक्षिण मुगलों के अधीन नहीं होगा। खानखाना दक्षिण में अपनी आवश्यकता जतलाकर बादशाह की कृपा का पात्र बने रहना चाहता है तथा इस बहाने से बादशाह से दूर रह कर सत्ता का वास्तविक सुख भोग रहा है। वह दक्षिण में जो भी लूट करता है, अपने बेटों और सिपाहियों में बांट देता है। इसलिये उसके सिपाही मुगलिया सल्तनत के प्रति वफादार न होकर खानखाना के प्रति वफादार हैं। यदि मुझे वहाँ जाने दिया जाये तो दो साल में ही समूचा दक्षिण जहाँगीर के अधीन हो जायेगा।
जहाँगीर फिर से खानेजहाँ की बातों में आ गया और उसने खानेजहाँ को बहुत सी सेना तथा रुपया देकर दक्षिण के लिये रवाना कर दिया। जोधपुर का राजा सूरसिंह भी राजपूतों की सेना सहित उसके साथ भेजा गया।
खानेजहाँ को फिर से दक्षिण में आया देखकर दक्खिनियों में असंतोष तथा बेचैनी फूट पड़ी। उन्होंने मलिक अम्बर के नेतृत्व में खानखाना के बेटे शहनवाजखाँ के डेरे पर आक्रमण किया। शहनवाजखाँ और उसके भाई दाराबखाँ ने दो घड़ी तक ऐसी जर्बदस्त तलवार चलाई कि देखने वालों की आँखें पथरा गयीं। दक्खिनी मोर्चा छोड़कर कोसों दूर तक भागते चले गये।
जब दक्षिण में पुनः शांति स्थापित हो गयी तो जहाँगीर ने परवेज के स्थान पर खुर्रम को दक्षिण में नियुक्त किया। खुर्रम ने खानखाना और उसके बेटों से प्रार्थना की कि अब चाहे जो भी हो सम्पूर्ण दक्षिण मुगलिया सल्तनत में शामिल किया जाये। खानखाना ने कहा कि यदि ऊदाराम ब्राह्मण को तीन हजारी मनसब दिला दिया जाये तो इस काम को किया जाना संभव है।
ऊदाराम ब्राह्मण दक्खिनियों में उन दिनों बड़ी धाक रखता था। वह मलिक अम्बर की सेवा में नियुक्त था। मलिक अम्बर की वास्तविक ताकत ऊदाराम ही था। वह अत्यंत वीर, वचनों का धनी और व्यवहार कुशल सेनापति था। खानखाना ने अकबर के जमाने में ऊदाराम को वचन दिया था कि यदि ऊदाराम मलिक अम्बर को छोड़कर खानखाना की सेवा में आ जाये तो उसे तीन हजारी मनसब दिलवाया दिया जायेगा। ऊदाराम ने खानखाना की शर्त स्वीकार भी कर ली थी किंतु खानखाना अपना वचन पूरा कर सके इससे पहले ही अकबर की मृत्यु हो गयी और उसके बाद तो स्वयं खानखाना को ही दक्षिण से हटा लिया गया था। इस पर ऊदाराम खानखाना का शत्रु होकर घूमता था। अब अवसर आया तो खानखाना ने अपने पुराने वचन को पूरा करने की ठानी।
खुर्रम ने जहाँगीर से कहकर ऊदाराम को तीन हजारी जात और पंद्रह हजारी सवार का मनसब दिलवा दिया। ऊदाराम को खानखाना की सेवा में गया जानकर मलिक अम्बर के हौंसले पस्त हो गये। उसने अपने समस्त किलों की चाबियाँ खुर्रम को भिजवा दीं। यह वही मलिक अम्बर था जिसके कारनामों के कारण चिंतित अकबर ने कई रातें जागते हुए बिताई थीं। मलिक अम्बर को मुगलों की शरण में गया हुआ देखकर दक्षिण के तमाम सरदार शहजादे खुर्रम की सेवा में हाजिर हो गये।
यह सफलता पाकर खुर्रम खानखाना के दोनों बेटों शहनवाजखाँ तथा दाराबखाँ के साथ तमाम दक्षिणी सरदारों को लेकर जहाँगीर के दरबार में उपस्थित हुआ। जहाँगीर ने इस सफलता से प्रसन्न होकर खुर्रम पर मोती जवाहर निछावर किये। उसे तीस हजारी मनसब और दरबार में कुरसी पर बैठने का अधिकार दिया। खुर्रम ने भरे दरबार में बादशाह से अनुरोध किया कि दरबार में कुर्सी पर बैठने का यदि कोई वास्तविक हकदार है तो वह ऊदाराम ब्राह्मण है।
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