लोकतंत्र हो अथवा राजतंत्र राजनीति में सत्य को प्रायः दूसरा स्थान मिलता है, पहला स्थान पाखण्ड को मिलता है। इसी पाखण्ड को राजनीति और कूटनीति कहा जाता है। यही कारण है कि कंगना रनौत सत्य बोलकर कई बार विरोधियों के निशाने पर आ जाती हैं। हर बार उन्हें अपने द्वारा बोले गए सत्य के लिए विरोध सहन करना पड़ता है। महाराष्ट्र में भी उनके साथ ऐसा ही कुछ हुआ था।
इस बार जब कंगना रनौत ने यह कहा कि किसान आंदोलन के नाम पर कुछ उपद्रवी तत्व भारत में वैसा ही कुछ करना चाहते थे जैसा कि बांगलादेश में हुआ, तो कंगना की अपनी पार्टी ने ही कंगना के वक्तव्य से किनारा कर लिया। यदि ईमानदारी से देखा जाए तो कंगना रनौत ने गलत क्या कहा?
कंगना रनौत ने वही तो कहा जो राकेश टिकैत ने खुलेआम स्वीकार किया! टिकैत ने कहा कि भारत में बंगलादेश जैसा काम अवश्य होकर रहेगा, हमारी पूरी तैयारी है! यह काम तो उसी दिन हो लेता जिस दिन हम प्रधानमंत्री निवास की बजाय लाल किले की तरफ मुड़ गए थे। हमें किसी न बहकाया नहीं होता तो हम लाल किले की तरफ नहीं जाते, मोदी की तरफ जाते।
कांग्रेस के सारे नेता अलग-अलग शब्दों में यह बात कह चुके हैं कि भारत में भी एक दिन वह होगा जैसा बंगलादेश में हुआ है। बंगलादेश में हुए प्रकरण के बाद सबसे पहले उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने बड़ी कठोर शब्दावली में कहा था कि भारत एक दिन बंगलादेश बनेगा और यह भी बताया था कि क्यों बनेगा!
राउत, टिकैत और अन्य विपक्षी नेताओं के वक्तव्यों के बाद कंगना रनौत ने जो कुछ कहा, उसमें गलत क्या था? फिर भी यदि भारतीय जनता पार्टी ने उनके इस बयान से किनारा कर लिया तो उसका एकमात्र कारण यह दिखाई देता है कि इन दिनों भारत की राजनीति मिथ्या नरेटिव गढ़ने के आधार पर चल रही है। हालांकि सत्य के आधार पर तो शायद ही कभी चली।
विपक्ष के नेता आए दिन एक झूठा नरेटिव गढ़ते हैं और भाजपा को उसमें घेरने का प्रयास करते हैं कि भाजपा किसान विरोधी है, भाजपा मजदूर विरोधी है, भाजपा दलित विरोधी है, भाजपा ओबीसी विरोधी है, भाजपा मुसलमान विरोधी है, भाजपा आरक्षण विरोधी है, भाजपा छात्र विरोधी है, भाजपा महिला विरोधी है। यदि ऐसा है तो फिर देश में ऐसा कौन बच जाता है, भाजपा जिसकी विरोधी नहीं है।
यही कारण है कि यदि भाजपा स्वयं को कंगना के वक्तव्य से अलग नहीं करती तो अवश्य ही विपक्षी दल भाजपा के विरुद्ध इस नरेटिव को और गहरा करने का प्रयास करते कि भाजपा और नरेन्द्र मोदी किसानों को आतंकवादी और खालिस्तानी मानते हैं।
विपक्षी दलों ने किसान आंदोलन को लेकर जो हो-हल्ला मचाया, उसके कारण भारत सरकार और भाजपा कभी भी देश के आम किसान तक यह संदेश नहीं पहुंचा पाईं कि दिल्ली की सीमाओं पर जो कुछ हुआ वह किसान आंदोलन नहीं था, अपति भारत के अरबन नक्सलियों एवं कनाडा में बैठे खालिस्तानी आतंकियों द्वारा किसानों को उकसाकर किया गया एक नक्सली षड़यंत्र था जिसका उद्देश्य देश में अराजकता फैलाकर सरकार की छवि को खराब करना था।
यदि यह नक्सली एवं खालिस्तानी षड़यंत्र नहीं था तो फिर लाल किले से तिरंगा उतारकर क्यों फैंका गया। आंदोलन के दौरान सिक्खों का धर्मग्रंथ फाड़ने से लेकर बलात्कार जैसी तमाम तरह की गैरकानूनी हरकतें क्यों हुईं? यदि यह नक्सली आंदोलन नहीं था तो ‘हाय-हाय मोदी मरजा तू’ जैसे नारे क्यों लगाए गए?
निश्चित रूप से किसानों की आड़ में नक्सली तत्व ही ऐसे नारे लगा रहे थे और खालिस्तानी तत्व भारत का झण्डा उतारकर फैंक रहे थे। यदि उनका उद्देश्य बंगलादेश में हुई घटना जैसा कार्य करने का नहीं था तो और क्या था? यह तो हमारा सौभाग्य है कि देश बहुत बड़ा है और देश की अधिकांश जनता अहिंसक एवं धर्मप्राण है।
जब तक भारत की जनता अपने इस नैसर्गिक स्वरूप में अर्थात् अहिंसक एवं धर्मप्राण बनी रहेगी, तब तक भारत में वैसा कुछ नहीं होगा जैसा श्रीलंका एवं बंगलादेश में हुआ है। जहाँ तक कंगना रनौत का प्रश्न है, उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा अपितु भारत की जनता को षड़यंत्रकारियों के चंगुल में फंसने से रोकने का प्रयास किया है।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता